वेदना
मनुष्य के जीवन में विभिन्न उतार चढ़ाव आते रहते है। इन्हीं उतार चढ़ाव को हम सुख दुःख का नाम दे देते हैं।वास्तव में देखा जाए तो सुख दुःख नाम का कोई अनुभव होता ही नहीं है।सुख दुःख हमारी मानसिक स्थिति को व्यक्त करते हैं।किसी व्यक्ति का सुख आपका दुःख का कारण बन सकता है और इसका विपरीत भी हो सकता है। सुख का हम अपने जीवन में स्वागत करते हैं और दुःख के नाम से ही हम भयग्रस्त हो जाते हैं।
सुख तो सुख है, मिलने पर स्वागत करते है परंतु दुःख को तो हम स्वयं आमंत्रित करते हैं।दुःख का अर्थ है पीड़ा ।दुःख मिलने से हम अपने आपको पीड़ित समझते हैं।पीड़ा दो प्रकार की है, शारीरिक और मानसिक।मानस में दुःख के तीन प्रकार बताए हैं-दैहिक,दैविक और भौतिक। वैसे दैहिक और भौतिक शरीर के दुःख हैं और दैविक मानसिक दुःख है। वैसे सुख-दुःख दोनों ही हमारे पूर्व मानव जन्म के कर्मों के फल हैं परंतु इस जन्म में समता का आचरण कर दुःख के प्रभाव को कम कर सकते हैं।
शारीरिक दुःख को पीड़ा कहा जाता है जिसको सहन किया जा सकता है।समय पाकर यह पीड़ा ठीक भी हो जाती है परंतु मानसिक दुःख का समय पाकर भी ठीक होना मुश्किल है क्योंकि हमारा अज्ञान इस पीड़ा से हमें मुक्त होने ही नहीं देता।मानसिक दुःख को वेदना भी कहा जाता है।वेदना का अर्थ है,वेद(ज्ञान) को नकारना अर्थात अज्ञान। कहने का अर्थ है कि दुःख अज्ञान से पैदा होता है।
संसार का सबसे बड़ा दुःख क्या है जिससे व्यक्ति जीवन भर बाहर निकल नहीं पाता? वह दुःख है, अपने प्रिय व्यक्ति से विछोह।आज त्यौहार के दिन ऐसे दुःख का मिलना रह रह कर वेदना देता है। इस दुःख का दिल और दिमाग से निकलना संभव नहीं है क्योंकि यह दुःख हमारे अज्ञान की उपज है। आज तो दो वर्ष हुए हैं, कल बीस वर्ष भी हो जाएंगे और इसी प्रकार हम कभी भी वेदना के बियावान से निकल ही नहीं पाएंगे। हो सकता है इसी पीड़ा को झेलने के लिए भी कई जन्म लेने पड़ें।यह दुःख केवल ज्ञान मिलने से ही दूर हो सकता है।वेद (ज्ञान) ही इस वेदना से हमें मुक्त कर सकता है।मृत्यु शाश्वत सत्य है, यह ज्ञान है। जाने वाला लौटकर उसी रूप में फिर कभी भी नहीं आने वाला।केवल इस ज्ञान को स्वीकार कर लेना ही हमारे दुःख को दूर कर सकता है। ज्ञान हमें मानसिक संबल प्रदान करता है। परमात्मा ऐसे वेदनाग्रस्त प्रत्येक परिवार को ज्ञान से परिपूर्ण कर दे और वेदना मुक्त कर दे।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
आप सभी को मकर सक्रांति की शुभकामनाएं।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
मनुष्य के जीवन में विभिन्न उतार चढ़ाव आते रहते है। इन्हीं उतार चढ़ाव को हम सुख दुःख का नाम दे देते हैं।वास्तव में देखा जाए तो सुख दुःख नाम का कोई अनुभव होता ही नहीं है।सुख दुःख हमारी मानसिक स्थिति को व्यक्त करते हैं।किसी व्यक्ति का सुख आपका दुःख का कारण बन सकता है और इसका विपरीत भी हो सकता है। सुख का हम अपने जीवन में स्वागत करते हैं और दुःख के नाम से ही हम भयग्रस्त हो जाते हैं।
सुख तो सुख है, मिलने पर स्वागत करते है परंतु दुःख को तो हम स्वयं आमंत्रित करते हैं।दुःख का अर्थ है पीड़ा ।दुःख मिलने से हम अपने आपको पीड़ित समझते हैं।पीड़ा दो प्रकार की है, शारीरिक और मानसिक।मानस में दुःख के तीन प्रकार बताए हैं-दैहिक,दैविक और भौतिक। वैसे दैहिक और भौतिक शरीर के दुःख हैं और दैविक मानसिक दुःख है। वैसे सुख-दुःख दोनों ही हमारे पूर्व मानव जन्म के कर्मों के फल हैं परंतु इस जन्म में समता का आचरण कर दुःख के प्रभाव को कम कर सकते हैं।
शारीरिक दुःख को पीड़ा कहा जाता है जिसको सहन किया जा सकता है।समय पाकर यह पीड़ा ठीक भी हो जाती है परंतु मानसिक दुःख का समय पाकर भी ठीक होना मुश्किल है क्योंकि हमारा अज्ञान इस पीड़ा से हमें मुक्त होने ही नहीं देता।मानसिक दुःख को वेदना भी कहा जाता है।वेदना का अर्थ है,वेद(ज्ञान) को नकारना अर्थात अज्ञान। कहने का अर्थ है कि दुःख अज्ञान से पैदा होता है।
संसार का सबसे बड़ा दुःख क्या है जिससे व्यक्ति जीवन भर बाहर निकल नहीं पाता? वह दुःख है, अपने प्रिय व्यक्ति से विछोह।आज त्यौहार के दिन ऐसे दुःख का मिलना रह रह कर वेदना देता है। इस दुःख का दिल और दिमाग से निकलना संभव नहीं है क्योंकि यह दुःख हमारे अज्ञान की उपज है। आज तो दो वर्ष हुए हैं, कल बीस वर्ष भी हो जाएंगे और इसी प्रकार हम कभी भी वेदना के बियावान से निकल ही नहीं पाएंगे। हो सकता है इसी पीड़ा को झेलने के लिए भी कई जन्म लेने पड़ें।यह दुःख केवल ज्ञान मिलने से ही दूर हो सकता है।वेद (ज्ञान) ही इस वेदना से हमें मुक्त कर सकता है।मृत्यु शाश्वत सत्य है, यह ज्ञान है। जाने वाला लौटकर उसी रूप में फिर कभी भी नहीं आने वाला।केवल इस ज्ञान को स्वीकार कर लेना ही हमारे दुःख को दूर कर सकता है। ज्ञान हमें मानसिक संबल प्रदान करता है। परमात्मा ऐसे वेदनाग्रस्त प्रत्येक परिवार को ज्ञान से परिपूर्ण कर दे और वेदना मुक्त कर दे।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
आप सभी को मकर सक्रांति की शुभकामनाएं।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
No comments:
Post a Comment