पुनर्जन्म-2
पुनर्जन्म क्यों और कैसे होता है, इस बारे में अध्ययन और चिंतन करने से पता चलता है कि मनुष्य को भौतिक सुख की कामनाएं, उनको प्राप्त करने के मार्ग और विभिन्न प्रकार की आसक्तियां ही पुनर्जन्म के मूल में है।मनुष्य ही वह एकमात्र प्राणी है, जिसको इस भौतिक संसार से सुख चाहिए।सुख प्राप्त करने की कामना ही उसे कर्म करने को विवश करती है।प्रत्येक कर्म का एक फल निश्चित होता है।वह प्रत्येक मनुष्य को भोगना ही पड़ता है।अगर किसी कर्म का फल भोगने से पूर्व शरीर छूट जाता है तो किसी अन्य प्राणी अथवा मनुष्य का शरीर प्राप्त कर इस संसार में आकर पूर्व जन्म के कर्मों का फल भोगना पड़ता है।दूसरा कारण है, अधूरी रही कामनाएं। अगर कोई एक भी कामना मनुष्य देह रहते पूरी नहीं होती तो पुनः नया शरीर लेकर कामनाएं पूरी करने आना ही होगा।तीसरा किसी भी मित्र, पारिवारिक सदस्य अथवा प्रियजन में रही ममता/आसक्ति भी देह त्यागने के पश्चात नई देह के साथ आपको इस संसार में पुनः ले आएगी, जहां आकर आपका उस प्रियजन से मिलन होना संभव होगा। ये तीन मुख्य आधार तैयार करते हैं, मनुष्य को नया शरीर प्राप्त कर पुनर्जन्म लेने के लिए।
मनुष्य को छोड़ कोई भी अन्य प्राणी ऐसे कर्म करता ही नहीं है जो उसे नया शरीर मिले।वह तो केवल पूर्व मानव जीवन के कर्मफलों और आसक्तियों को भोगने के लिए ही अन्य प्राणी के शरीर में व्यक्त हुआ है।महाराजा भरत जंगल में रहकर तपस्या करने लगे थे।शरीर की मृत्यु होने का दिन आने से पूर्व एक मृग छौने में उनकी आसक्ति हो गई थी।उस आसक्ति के चलते भरत को उस जीवन की तपस्या का लाभ तत्काल नहीं मिल सका और देह त्याग के बाद उन्हें मृग की देह मिली।
अतः यह स्पष्ट है कि कर्म,कामनाएं और आसक्ति मनुष्य जीवन में शेष रह जाते हैं, तो नया जन्म होना निश्चित है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमारे ऋषि मुनियों ने अन्वेषण कर पुनर्जन्म की प्रक्रिया को शास्त्रों में वर्णित किया है।सभी ने एक स्वर में इंद्रियों को ही मुख्य रूप से जिम्मेदार माना है।इन्द्रियां 11 हैं, पांच ज्ञानेन्द्रियाँ,पांच कर्मेन्द्रियाँ और एक मन। मन 10 इंद्रियों का नेता है।इन 11 इंद्रियों में मुख्य रूप से मन को ही पुनर्जन्म के लिए उत्तरदायी माना गया है। अब यह देखना है कि 10 इंद्रियों के कार्यों के लिए मन कैसे जिम्मेदार है?इस प्रक्रिया को समझने से हमें किसको और कैसे नियंत्रण में रखना चाहिए, समझ में आ जायेगा।
कबीर ने पुनर्जन्म के बारे में बड़ा सुंदर कहा है-
मन मरा न ममता मरी,मर मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर ।।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम्।।
पुनर्जन्म क्यों और कैसे होता है, इस बारे में अध्ययन और चिंतन करने से पता चलता है कि मनुष्य को भौतिक सुख की कामनाएं, उनको प्राप्त करने के मार्ग और विभिन्न प्रकार की आसक्तियां ही पुनर्जन्म के मूल में है।मनुष्य ही वह एकमात्र प्राणी है, जिसको इस भौतिक संसार से सुख चाहिए।सुख प्राप्त करने की कामना ही उसे कर्म करने को विवश करती है।प्रत्येक कर्म का एक फल निश्चित होता है।वह प्रत्येक मनुष्य को भोगना ही पड़ता है।अगर किसी कर्म का फल भोगने से पूर्व शरीर छूट जाता है तो किसी अन्य प्राणी अथवा मनुष्य का शरीर प्राप्त कर इस संसार में आकर पूर्व जन्म के कर्मों का फल भोगना पड़ता है।दूसरा कारण है, अधूरी रही कामनाएं। अगर कोई एक भी कामना मनुष्य देह रहते पूरी नहीं होती तो पुनः नया शरीर लेकर कामनाएं पूरी करने आना ही होगा।तीसरा किसी भी मित्र, पारिवारिक सदस्य अथवा प्रियजन में रही ममता/आसक्ति भी देह त्यागने के पश्चात नई देह के साथ आपको इस संसार में पुनः ले आएगी, जहां आकर आपका उस प्रियजन से मिलन होना संभव होगा। ये तीन मुख्य आधार तैयार करते हैं, मनुष्य को नया शरीर प्राप्त कर पुनर्जन्म लेने के लिए।
मनुष्य को छोड़ कोई भी अन्य प्राणी ऐसे कर्म करता ही नहीं है जो उसे नया शरीर मिले।वह तो केवल पूर्व मानव जीवन के कर्मफलों और आसक्तियों को भोगने के लिए ही अन्य प्राणी के शरीर में व्यक्त हुआ है।महाराजा भरत जंगल में रहकर तपस्या करने लगे थे।शरीर की मृत्यु होने का दिन आने से पूर्व एक मृग छौने में उनकी आसक्ति हो गई थी।उस आसक्ति के चलते भरत को उस जीवन की तपस्या का लाभ तत्काल नहीं मिल सका और देह त्याग के बाद उन्हें मृग की देह मिली।
अतः यह स्पष्ट है कि कर्म,कामनाएं और आसक्ति मनुष्य जीवन में शेष रह जाते हैं, तो नया जन्म होना निश्चित है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमारे ऋषि मुनियों ने अन्वेषण कर पुनर्जन्म की प्रक्रिया को शास्त्रों में वर्णित किया है।सभी ने एक स्वर में इंद्रियों को ही मुख्य रूप से जिम्मेदार माना है।इन्द्रियां 11 हैं, पांच ज्ञानेन्द्रियाँ,पांच कर्मेन्द्रियाँ और एक मन। मन 10 इंद्रियों का नेता है।इन 11 इंद्रियों में मुख्य रूप से मन को ही पुनर्जन्म के लिए उत्तरदायी माना गया है। अब यह देखना है कि 10 इंद्रियों के कार्यों के लिए मन कैसे जिम्मेदार है?इस प्रक्रिया को समझने से हमें किसको और कैसे नियंत्रण में रखना चाहिए, समझ में आ जायेगा।
कबीर ने पुनर्जन्म के बारे में बड़ा सुंदर कहा है-
मन मरा न ममता मरी,मर मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर ।।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम्।।
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