Tuesday, January 29, 2019

पुनर्जन्म-13

पुनर्जन्म-13
भावन(Emotions) और उनका अंकन (Record)-
       मन अपने अनुसार मस्तिष्क से प्राप्त अवगम को समझता है और संवेदन के रूप में उस ज्ञान को व्यक्त कर देता है। कुछ संवेदन मन को रुचिकर लगते हैं और कुछ अरुचिकर।दोनों ही प्रकार के संवेदन भावन के रूप में मन प्रकट करता है।रुचिकर संवेदन के संवेद का ज्ञान मस्तिष्क के माध्यम से मन बार बार प्राप्त करना चाहता है और अरुचिकर संवेद के ज्ञान को मन ठुकराना चाहता है।यह ऐसी स्थिति है, जब कामनाओं का जन्म होता है । कामना के कारण मन कर्मेन्द्रियों से कर्म करवाता है।कामना पूरी हो गई तो उस कर्म के प्रति आसक्ति और कर्मफल में ममता पैदा हो जाती है। नहीं पूरी हुई तो क्रोध, फिर राग-द्वेष आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं। अहंता और ममता की जनक भी कामनाएं हैं।
      मनुष्य के साथ सबसे बड़ी विडम्बना यही है कि ज्ञान के प्रस्तुतिकरण का निर्णय मन करता है, बुद्धि नहीं । यह ज्ञान का प्रस्तुतिकरण मन भावन (emotions) के रूप में करता है।बुद्धि अगर मन पर प्रभावी हुई तो बात अलग है।बहुधा तो मन ही बुद्धि पर भारी पड़ता है क्योंकि हम कई निर्णय बुद्धि अर्थात मस्तिष्क  से न कर हृदय(मन) से करते हैं।इसीलिए भावना का सम्बन्ध मस्तिष्क से न होकर हृदय से होता है। ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर व्यक्ति की बुद्धि निश्चयात्मक होनी आवश्यक है,नहीं तो मन प्रभावी हो जाएगा।भावन से ही भावना शब्द बना है।गोस्वामीजी ने रामचरितमानस में लिखा है-
जिन्ह कें रही भावना जैसी।प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।।   
 ।।श्री रामचरितमानस-1/241/4।।
अर्थात जिसकी भावना जैसी थी, प्रभु राम को लोगों ने उसी रूप में देखा। सीता स्वयम्बर के समय राजा जनक की सभा में बैठे राम को उनमें सुकोमल राजकुमार दिखाई दिए, असुरों को काल के समान,राजा जनक को निकट प्रिय संबंधी और योगियों  को साक्षात सच्चिदानन्द परम ब्रह्म।इसीलिए कहा जाता है कि मन में भावना को शुद्ध रखें तभी आपको परमात्मा के दर्शन होंगे अन्यथा वे भी एक साधारण व्यक्ति की तरह ही नज़र आएँगे।इस भावन के अनुरूप ही हमारी सभी कामनाएं,कर्म और ममता,आसक्तियां आदि चित्त में गुप्त रूप से अंकित होती रहती है।यह अंकन स्मृति के रूप में और चित्र की तरह अंकित होते हैं।देह छोड़ते समय व्यक्ति को उपरोक्त सभी अंकन चलचित्र की भांति दिखलाई पड़ते हैं।यही कारण है कि देह छोड़ने से पूर्व व्यक्ति टकटकी लगाकर एक ओर देखता रहता है और उन स्मृतियों के बारे में कुछ बुदबुदाता भी रहता है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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