Wednesday, January 9, 2019

सहिष्णुता

सहिष्णुता
       एक बार एक महात्माजी से किसी जिज्ञासु ने पूछा-"आप में इतनी सहिष्णुता कैसे है ? आपने सहिष्णु होना कहाँ से सीखा है?" 
     महात्मा ने उत्तर दिया-"जब मैं ऊपर की ओर देखता हूँ तो सोचता हूँ कि मुझे ऊपर की ओर जाना है,तो फिर किसी के कलुषित व्यवहार से खिन्न होकर गुस्सा क्यों करूँ और फिर नीचे जमीन की ओर देखता हूँ तो सोचता हूँ कि मुझे उठने, बैठने और सोने के लिए थोड़ी सी भूमि की आवश्यकता है,तो फिर मैं संग्रही क्यों बनूँ ?फिर जब आसपास देखता हूँ तो मन में विचार आता है कि इस संसार में ऐसे हज़ारों व्यक्ति है, जो मेरे से अधिक दुखी,चिंतित और व्यथित हैं तो फिर मैं दुखी क्यों बनूँ ? इतना सब देखकर मेरे भीतर उठने को तत्पर हुआ आवेश शांत हो जाता है।मैंने इसी प्रकार सहिष्णुता का पाठ सीखा है।"
सार-
हमारा मान सम्मान  बनाये रखने का भाव, अधिकाधिक संग्रह करने का लोभ और दूसरे को सुखी देखकर अपने को दुखी मानना ही हमें असहिष्णु बनाता है।अतः इन तीनों भावों को मन से निकाल देना ही सहिष्णु होने की तरफ बढ़ने का कदम है।
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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