Sunday, January 6, 2019

अविरल जीवन(Life is continuous)-20

अविरल जीवन (Life is continuous)-20
           परमात्मा के स्पंदित होने का क्या उद्देश्य हो सकता है ? उनको स्पन्दित होने की कौन सी आवश्यकता आन पड़ी थी ? इसका उत्तर मिलते ही मानव जीवन का उद्देश्य स्पष्ट हो जाएगा।जिस प्रकार स्पंदन से सुर निकलते हैं और उन सुरों के संयोजन से राग निकलती है, इस राग को सुनकर हम आनंदित होते हैं।परमात्मा ने भी अपने आनंद के लिए स्वयं में स्पंदन पैदा किया। क्या सुरों से आनंदित हुआ जा सकता है? हाँ, आनंद सुरों के उचित संयोजन से ही मिल सकता है। अगर सुरों का संयोजन बेमेल हो जाए तो सुर सुर न होकर बेसुरा हो जाता है।अतः सुरों का संयोजन सही होना चाहिए। परमात्मा के स्पंदन से सुर निकले जिनसे सर्वप्रथम मन उत्पन्न हुआ। मन भी एक इन्द्रिय है, जो अन्य सभी दस इंद्रियों की कक्षा की मॉनिटर है। आज मन ही दस बारातियों की बारात का एक दूल्हा है।जब दूल्हे के मुँह से लार टपकेगी तो फिर बाराती भला स्वादिष्ट भोजन करने से क्यों कर चूकेंगे? इसीलिए मन को ही शरीर रूपी साज का तार कहा जाता है। जैसा तार स्पन्दित होगा, वैसा ही सुर निकलेगा अर्थात मन की चंचलता के अनुरूप ही इन्द्रियां कार्य करेगी।
      अब आप समझ ही गए होंगे कि मन के स्पंदन पर नियंत्रण रखकर ही हम आनंदित हो सकते हैं अन्यथा इस मानव जीवन को बेसुरा कर महाजीवन की अंतहीन शारीरिक श्रृंखला से बाहर निकल ही नहीं पाएंगे। ऐसे में परम जीवन की कल्पना केवल दूर की कौड़ी ही बन कर रह जायेगी।हम ही परमात्मा हैं और हमें ही आनंद प्राप्त करना है।यही हमारे इस जीवन का उद्देश्य होना चाहिए न कि इन्द्रिय सुखों को ही जीवन का आनंद समझने लगें।जरा सोचिए!हमें मिले इस बहुमूल्य जीवन का सदुपयोग कैसे करें?
           मन शरीर रूपी साज का तार है ।उसको सहजता के साथ इतना ही खींचे की आनन्दित करने वाले सुर निकले।ढीला छोड़ोगे तो यह जीवन बेसुरा हो जाएगा, यह निश्चित है।जब कक्षा का मॉनिटर ही ढीला ढाला होगा तो कक्षा में दसों बालक शोर ही मचाएंगे, उत्पात ही करेंगे।अतः संभालिये अपने मन को।हाँ, यह  सत्य है कि मन है तो जीवन है परंतु शांत मन ही परम जीवन है और परम जीवन ही आनंद स्वरूप है।इसीलिए परमात्मा को सच्चिदानंद स्वरूप कहा गया है।परमात्मा से उपहार स्वरूप मिले स्पन्दित मन से इस शरीर रूपी साज से शास्त्रीय संगीत निकालिये,जिससे यह जीवन सफल हो सके।आखिर इस साज के तार को स्पन्दित करने वाले आप स्वयं ही तो हैं ।
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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