Sunday, January 20, 2019

पुनर्जन्म-4

पुनर्जन्म -4
संवेद(sense)-
        वेदना, संवेदना को जान लेने के बाद हम आते हैं, संवेद पर।संवेद का अर्थ है,सम+वेद अर्थात समान ज्ञान अथवा सही ज्ञान।संवेद का एक पर्यायवाची है, इन्द्रिय-बोध।हमारे शरीर में 11 इन्द्रियां है जिनमें पांच तो ज्ञानेन्द्रियाँ और पांच ही कर्मेन्द्रियाँ और इन दसों का मालिक है, मन जो कि इन इंद्रियों से कार्य लेता है।हमारी पांच ज्ञानेंद्रियों का कार्य है, संवेद अर्थात सही ज्ञान कराना।ये ज्ञानेन्द्रियाँ हैं-कान,त्वचा,जिह्वा,नेत्र और नाक।प्रत्येक ज्ञानेन्द्रिय के कार्य से आप भली भांति परिचित हैं ही।व्यक्तिगत स्तर पर इंद्रियों का एक ही कार्य है, जो जैसा है उसको वैसे का वैसा ही मस्तिष्क (Brain)तक पहुंचा देना।
      ज्ञानेन्द्रियाँ में  संवेदक (sensory neurones) होते हैं । ज्ञानेन्द्रिय के संपर्क में जो भी जैसा आयेगा उसे ग्रहण करती है, संवेदक उससे संवेद का निर्माण करते हैं और फिर उस संवेद को संवेदी तंत्रिकाओं (Sensory nerves)के माध्यम से मस्तिष्क तक जस का तस पहुंचा देती है।जैसे अभी शीत लहर (Cold wave) का मौसम है, शीत लहर जब त्वचा के संपर्क में आती है तब त्वचा उसका आकलन(Analysis) कर संवेद (sense)का निर्माण करती है और उस संवेद का संदेश (message)संवेदी तंत्रिकाओं के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुंचा देती है।इसी प्रकार कान सुने हुए,नाक गंध के,नेत्र दृश्य के और जीभ स्वाद के संवेद को जस का तस (as it is) मस्तिष्क को प्रेषित कर देती है। शब्द,स्पर्श,रूप,रस और गंध इन इंद्रियों के विषय कहलाते हैं।हमारी ज्ञानेंद्रियों का बस इतना सा ही कार्य है कि जो जैसा है उसका वैसा ही संदेश हमारे मस्तिष्क तक पहुंचा देना।
         अब यहां आकर प्रश्न उठता है कि जब ज्ञानेन्द्रियाँ संवेद को जस का तस मस्तिष्क तक पहुंचा देती है,तो फिर ज्ञानीजन इंद्रियों पर नियंत्रण (control) स्थापित करने का क्यों कहते हैं?उचित है इस प्रश्न का उठना।प्रथम दृष्टि से देखें तो इन ज्ञानेंद्रियों का कहीं कोई दोष प्रतीत नहीं हो रहा है।नेत्र का कार्य है देखना,वह तो दृश्य जो सामने है उसे देखेगी ही, इसमें भला नेत्रों का क्या दोष?नाक तक गंध जैसी पहुंचेगी,वह उसको सूंघना ही पड़ेगा,इसमें भला नाक का क्या दोष?कान में ध्वनि तरंगे पहुंचेगी,तो कान को उन्हें सुनना ही होगा, भला इसमें कानों की क्या गलती?त्वचा के संपर्क में जो भी आएगा,उसके संवेद को ग्रहण करना उसका कार्य है,उसको वह कार्य करना ही है,इसमें बेचारी त्वचा की क्या त्रुटि?इसी प्रकार जीभ पर जब कोई पदार्थ रखा जाएगा,उसे तो सही रूप से उसके स्वाद को बताना ही पड़ेगा,इसमें जीभ भला कहाँ से गलत हुई? जब किसी ज्ञानेन्द्रिय का कोई दोष नहीं है तो फिर उन पर नियंत्रण क्यों करना ?प्रश्न अभी आज तो अनुत्तरित रहा है। चिंतन चल रहा है,कल देखते हैं, क्या होता है ?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम्।।

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