स्वर्गाश्रम,ऋषिकेश(उत्तराखंड)में काली कमली वालों के ट्रस्ट का एक भवन है,वानप्रस्थ आश्रम।उसके परिसर में छोटे छोटे पट्ट लगे हुए हैं, उनमें से प्रत्येक पर कुछ सद् वाक्य लिखे हुए हैं। जब आप उस आश्रम के परिसर में टहलते है, तब उन सद् वाक्यों पर दृष्टि चली ही जाती है। उनमें से एक पट्ट पर एक वाक्य लिखा हुआ है, जो आपके साथ साझा करना चाहूंगा।वह वाक्य है-"हम अपने जीवन काल में अपनी आधी ऊर्जा जो हम नहीं है,उसको दिखाने में और शेष आधी ऊर्जा जो हम हैं,उसको छिपाने में लगा देते हैं।"
आज धनवान गरीब होने का नाटक कर रहा है,हम सब विवाह समारोह में दिखावा कर रहे हैं, जो कुछ पास में है उससे अधिक दिखा रहे हैं, बालों में खिजाब लगाकर बुढापा छुपा रहे हैं, पार्षद तक को न जानने वाले मुख्यमंत्री से अपने अंतरंग सम्बंध होना बता रहे हैं आदि ऐसे अनेकों काल्पनिक बातें हम प्रतिदिन कर रहे हैं। जिनके कंधों पर सनातन संस्कृति के प्रचार प्रसार की जिम्मेवारी है, वे प्रवचन में तो बड़ी बड़ी बातें कहते हैं और व्यास पीठ छोड़ते ही उन बातों के विपरीत आचरण करते हैं।ऐसे में युवा पीढ़ी में संस्कार कहाँ से आएंगे ?सत्य तो यह है कि हमने अपनी वास्तविक दुनियां के स्थान पर एक आभासी संसार का निर्माण कर लिया है जिसमें कहीं पर भी सत्य नज़र नहीं आ रहा है।
कहने का अर्थ है कि हम अपने जीवन को सहज होकर अपने स्वाभाविक रूप से जी नहीं पा रहे हैं। जब तक जीवन में सहजता नहीं आएगी तब तक संसार के जाल से मुक्त हो जाने की कल्पना भी नहीं कर सकते। संसार से मुक्त होना ही वास्तविकता में मुक्ति है।इसलिए जीवन को सहज रहकर अपने स्वभावानुसार जीना चाहिए।परमात्मा ने हमें जो शरीर दिया है, हमारे पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार ही दिया है। मिले हुए उस शरीर का हमें सहज रहकर सदुपयोग करना चाहिए।
अब्राहम लिंकन को एक बार किसी समारोह में भाग लेने जाना था। उनके सचिव ने कहा कि आप कपड़े बदल लीजिए, फिर कार्यक्रम में चलते हैं।लिंकन ने कहा-"क्यों, इन कपड़ों में क्या कमी है? जो मुझे जानते हैं, उनके लिए मेरा महत्व है पहने हुए कपड़ों का नहीं, वे मुझे इन कपड़ों में ही पहचान जाएंगे। जो मुझे जानते नहीं है,उनके लिए मैं चाहे कपड़े कितने ही अच्छे पहन लूँ, वे मुझे पहचानेंगे नहीं ।अच्छे परिधान से उन पर मेरा कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला।" लिंकन का ऐसा कहना उनके सहज स्वभाव को प्रदर्शित करता है।
यह सत्य है कि असहज होकर जीने में आपकी वास्तविक क्षमता खो जाती है और जो छद्म क्षमता दिखलाई पड़ती है, उस पर आप खरे नहीं उतर सकते। इसलिए आप जैसे भी हैं उसी रूप में अपने जीवन को जियें। यही जीवन में सफल होने का मूल मंत्र है।
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।
आज धनवान गरीब होने का नाटक कर रहा है,हम सब विवाह समारोह में दिखावा कर रहे हैं, जो कुछ पास में है उससे अधिक दिखा रहे हैं, बालों में खिजाब लगाकर बुढापा छुपा रहे हैं, पार्षद तक को न जानने वाले मुख्यमंत्री से अपने अंतरंग सम्बंध होना बता रहे हैं आदि ऐसे अनेकों काल्पनिक बातें हम प्रतिदिन कर रहे हैं। जिनके कंधों पर सनातन संस्कृति के प्रचार प्रसार की जिम्मेवारी है, वे प्रवचन में तो बड़ी बड़ी बातें कहते हैं और व्यास पीठ छोड़ते ही उन बातों के विपरीत आचरण करते हैं।ऐसे में युवा पीढ़ी में संस्कार कहाँ से आएंगे ?सत्य तो यह है कि हमने अपनी वास्तविक दुनियां के स्थान पर एक आभासी संसार का निर्माण कर लिया है जिसमें कहीं पर भी सत्य नज़र नहीं आ रहा है।
कहने का अर्थ है कि हम अपने जीवन को सहज होकर अपने स्वाभाविक रूप से जी नहीं पा रहे हैं। जब तक जीवन में सहजता नहीं आएगी तब तक संसार के जाल से मुक्त हो जाने की कल्पना भी नहीं कर सकते। संसार से मुक्त होना ही वास्तविकता में मुक्ति है।इसलिए जीवन को सहज रहकर अपने स्वभावानुसार जीना चाहिए।परमात्मा ने हमें जो शरीर दिया है, हमारे पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार ही दिया है। मिले हुए उस शरीर का हमें सहज रहकर सदुपयोग करना चाहिए।
अब्राहम लिंकन को एक बार किसी समारोह में भाग लेने जाना था। उनके सचिव ने कहा कि आप कपड़े बदल लीजिए, फिर कार्यक्रम में चलते हैं।लिंकन ने कहा-"क्यों, इन कपड़ों में क्या कमी है? जो मुझे जानते हैं, उनके लिए मेरा महत्व है पहने हुए कपड़ों का नहीं, वे मुझे इन कपड़ों में ही पहचान जाएंगे। जो मुझे जानते नहीं है,उनके लिए मैं चाहे कपड़े कितने ही अच्छे पहन लूँ, वे मुझे पहचानेंगे नहीं ।अच्छे परिधान से उन पर मेरा कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला।" लिंकन का ऐसा कहना उनके सहज स्वभाव को प्रदर्शित करता है।
यह सत्य है कि असहज होकर जीने में आपकी वास्तविक क्षमता खो जाती है और जो छद्म क्षमता दिखलाई पड़ती है, उस पर आप खरे नहीं उतर सकते। इसलिए आप जैसे भी हैं उसी रूप में अपने जीवन को जियें। यही जीवन में सफल होने का मूल मंत्र है।
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।
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