Thursday, January 24, 2019

पुनर्जन्म-8

पुनर्जन्म - 8
       एक ओर निराकार (आत्मा) है दूसरी ओर साकार(भौतिक शरीर) है और इन दोनों को जोड़ता है एक तरल(मन)।मन के भी दो भाग हैं, एक जो चैतन्य (आत्मा) के निकट है वह चित्त कहलाता है और दूसरा जो साकार शरीर के निकट होता है वह मन कहलाता है। नए शरीर मे आत्मा चित्त के साथ प्रवेश करती है। चित्त में ही पूर्व मानव जीवन की स्मृतियां अंकित रहती हैं।आत्मा तो मस्तिष्क के neocortex भाग में स्थान ग्रहण कर लेती है और चित्त मस्तिष्क के thalamus नामक भाग में, जोकि इस चित्त का ही एक भौतिक रूप है, में स्थित हो जाता है। चित्त का प्रवेश आत्मा के साथ होता तो मस्तिष्क ही है परंतु फिर उसका क्षेत्र हृदय तक विस्तारित हो जाता है। हृदय में प्रवेश पाकर स्थित हो जाने पर वह मन कहलाने लगता है।वैसे मन और चित्त, दोनों एक ही हैं, केवल देह त्याग के समय ही दोनों में विभाजन होता है।
      निराकार जब साकार के रूप में विस्तारित होता है,तब वह पहले तरल रूप बनता है और फिर ठोस साकार।जिस प्रकार वाष्प से बर्फ में बनने के लिए  पहले उसकी जलीय अवस्था आती है।वाष्प,जल और बर्फ आपस में भिन्न थोड़े ही हैं।इस प्रकार इन तीनों, आत्मा , मन और शरीर में आपस में तात्विक रूप से किसी प्रकार की कोई भिन्नता नहीं है। भिन्नता न होते हुए भी तरल (मन) और ठोस (शरीर) असत है क्योंकि इनमें परिवर्तन होते रहते हैं, इनका विनाश होना निश्चित है।अपरिवर्तनीय, अविनाशी और सत्य तो केवल एक ही है,परमात्मा जिसका अंश है,आत्मा।
      तरल मन ही मस्तिष्क (प्रज्ञा,बुद्धि)को नियंत्रण में ले लेता है और फिर इंद्रियों से अपने अनुसार कार्य लेता है।तरल में तरंगे सर्वाधिक उठती है, इसीलिए मन को चंचल कहा गया है।मन मस्तिष्क की क्रियाओं को अपने अनुसार परिवर्तित कर देता है।जिस संवेद (सम+वेद) का मस्तिष्क प्रत्यक्ष ज्ञान करा सकता है मन उस संवेद अर्थात सही ज्ञान को प्रत्यक्ष ज्ञान में व्यक्त करने के स्थान पर अपने अनुसार संवेदन (sensation) के रूप में व्यक्त कर देता है। संवेदन सही ज्ञान नहीं रहता बल्कि मन को जो अच्छा लगता है,वह उसी अनुसार ज्ञान को शरीर के माध्यम से परदर्शित कर देता है। मन के बारे में पूर्व की कई श्रृंखलाओं में चर्चा हो चुकी है अतः उसके अधिक विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है। अब संवेदन पर थोड़ी जानकारी ले लेते हैं।
क्रमशः
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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