Friday, February 1, 2019

पुनर्जन्म-16

पुनर्जन्म-16
    चित्त में स्मृतियां बनने और उसके संचित होने का कारण है, स्वयं को कर्ता और भोक्ता मान लेना। कर्ता और भोक्ता होना अहंता और ममता पैदा करता है।यह कार्य मैंने किया, उसको मैं सबक सीखा दूंगा, मैं और अधिक धन का संग्रह करूंगा, यह/वह सुख भोगूँगा, पुत्र अथवा पत्नी मेरे प्रिय हैं उनको कभी भी अपने से अलग नहीं होने दूंगा आदि कई कारण है जो स्मृति बन कर मन में संचित हो जाते हैं।सभी के पीछे एक मात्र अहं और मम अर्थता 'मैं' और 'मेरा' भाव का होना है।
       जब आप कर्ता बनोगे तो यह निश्चित है कि भोक्ता भी आपको ही बनना होगा कोई दूसरा उस कर्म का भोक्ता बन ही नहीं सकता।कुछ सांसारिक सुख चाहोगे तो कर्म करने होंगे और ऐसे में कर्मों का फल मिलना अवश्यम्भावी है, वह भी अभी नहीं बल्कि भावी जीवन  में मिलने हैं। सुख की चाहना ही दुःख के द्वार खोलती है।मनुष्य को कर्मों के अनुसार ही भावी जीवन में फल प्राप्त होंगे और उन्हीं योनियों में मिलेंगे, जिन योनियों की उसने इस जीवन में रहते चाहना की है।इस सारी प्रक्रिया को, संचित भावन की गणना जिससे भावी योनि और कर्म फल मिलने निश्चित होते हैं, उसको कलन (calculus) कहा जाता है।कलन अर्थात गणना करना। तो आइए, चलते हैं इन सब कर्मों, स्मृतियों और अंकित हो गई कामनाओं, आसक्तियों आदि के साथ एक मात्र गणक चित्रगुप्त के पास, अपने द्वारा संचित की गई समस्त सामग्रियों का आकलन करने ।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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