पुनर्जन्म-17
कलन(Calculus)-
कहा जाता है कि जर्जर देह को छोड़ने के बाद जीव जाता है, चित्रगुप्त के पास जो कि हमारे कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं । यह चित्रगुप्त कौन है?हमारे चित्त में गुप्त रूप से अंकित चित्र के रूप में शेष रही हमारी कामनाएं,पीछे छूटी गई ममता व आसक्तियां तथा फलित होने से शेष रह गए कर्म हैं । वह चित्त और उससे संलग्न चैतन्य आत्मा ही चित्रगुप्त है।
चित्त में अंकित भावन और उस अंकन के संचयन को देखने से पता चलता है कि कौन कौन सी बातें इस मनुष्य जीवन की उसके मानस (मन के)पटल पर अंकित हुई है।इन सबका अवलोकन कर लेने के उपरांत ही आत्मा निर्णय करती है कि कौन सी कामना किस प्राणी के शरीर को प्राप्त किये जाने से पूरी होगी? पूर्वजन्म में किये गए कौन से कर्म का क्या फल प्राप्त होगा और उन फलों को कौन कौन से प्राणी के शरीरों को प्राप्त कर भोगना होगा? इसी प्रकार जिस प्राणी अथवा वस्तु में ममता अथवा आसक्ति शेष रह गयी है, उस व्यक्ति अथवा वस्तु तक कौन से प्राणी का शरीर प्राप्त कर सुगमता से पहुंचा जा सकता है? इन सब की गणित चलती रहती है और फिर इन तीनों (कामना, ममता/आसक्ति और कर्मफल) की पूर्णता को प्राप्त करने के लिए मिलने वाली योनियों का एक निश्चित क्रम तय किया जाता है।इस क्रम में अंतिम स्थान पर पुनः मानव शरीर मिलना निश्चित होता है। कहने का अर्थ है कि सभी भोग योनियों को भोगने के बाद अंत में मनुष्य देह मिलना निश्चित है। इस प्रकार सभी योनियों के अंत में जब मानव योनि मिलती है, तब उसका एक मात्र उद्देश्य संसार में आवागमन से मुक्त होना ही है। परंतु मनुष्य अपने उद्देश्य एक बार फिर भूल जाता है और आवागमन के चक्र से मुक्त नहीं हो पाता।
यह संचयन का कलन (calculus) कब होता है ? हमारे मन मे एक धारणा बैठी हुई है कि यह कलन देह की मृत्यु के बाद प्रारम्भ होता है। नहीं, चित्त में अंकित भावन के संचयन का कलन आत्मा मनुष्य शरीर में रहते हुए करती रहती है तभी तो देह के जर्जर होते ही वह चित्त(मन), बुद्धि और अहंकार के साथ शरीर छोड़ देती है और अंतरिक्ष में विचरण करने लगती है।चित्त, मन, बुद्धि और अहंकार सूक्ष्म शरीर कहलाते हैं और आत्मा कारण शरीर कहलाती है । आत्मा सूक्ष्म शरीर को लेकर (जीवात्मा) कलन के अनुसार निश्चित किये गए क्रम में विभिन्न प्राणियों के शरीर प्राप्त करती और छोड़ती रहती है और अंत में पुनः मनुष्य शरीर को प्राप्त कर लेती है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम्।।
कलन(Calculus)-
कहा जाता है कि जर्जर देह को छोड़ने के बाद जीव जाता है, चित्रगुप्त के पास जो कि हमारे कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं । यह चित्रगुप्त कौन है?हमारे चित्त में गुप्त रूप से अंकित चित्र के रूप में शेष रही हमारी कामनाएं,पीछे छूटी गई ममता व आसक्तियां तथा फलित होने से शेष रह गए कर्म हैं । वह चित्त और उससे संलग्न चैतन्य आत्मा ही चित्रगुप्त है।
चित्त में अंकित भावन और उस अंकन के संचयन को देखने से पता चलता है कि कौन कौन सी बातें इस मनुष्य जीवन की उसके मानस (मन के)पटल पर अंकित हुई है।इन सबका अवलोकन कर लेने के उपरांत ही आत्मा निर्णय करती है कि कौन सी कामना किस प्राणी के शरीर को प्राप्त किये जाने से पूरी होगी? पूर्वजन्म में किये गए कौन से कर्म का क्या फल प्राप्त होगा और उन फलों को कौन कौन से प्राणी के शरीरों को प्राप्त कर भोगना होगा? इसी प्रकार जिस प्राणी अथवा वस्तु में ममता अथवा आसक्ति शेष रह गयी है, उस व्यक्ति अथवा वस्तु तक कौन से प्राणी का शरीर प्राप्त कर सुगमता से पहुंचा जा सकता है? इन सब की गणित चलती रहती है और फिर इन तीनों (कामना, ममता/आसक्ति और कर्मफल) की पूर्णता को प्राप्त करने के लिए मिलने वाली योनियों का एक निश्चित क्रम तय किया जाता है।इस क्रम में अंतिम स्थान पर पुनः मानव शरीर मिलना निश्चित होता है। कहने का अर्थ है कि सभी भोग योनियों को भोगने के बाद अंत में मनुष्य देह मिलना निश्चित है। इस प्रकार सभी योनियों के अंत में जब मानव योनि मिलती है, तब उसका एक मात्र उद्देश्य संसार में आवागमन से मुक्त होना ही है। परंतु मनुष्य अपने उद्देश्य एक बार फिर भूल जाता है और आवागमन के चक्र से मुक्त नहीं हो पाता।
यह संचयन का कलन (calculus) कब होता है ? हमारे मन मे एक धारणा बैठी हुई है कि यह कलन देह की मृत्यु के बाद प्रारम्भ होता है। नहीं, चित्त में अंकित भावन के संचयन का कलन आत्मा मनुष्य शरीर में रहते हुए करती रहती है तभी तो देह के जर्जर होते ही वह चित्त(मन), बुद्धि और अहंकार के साथ शरीर छोड़ देती है और अंतरिक्ष में विचरण करने लगती है।चित्त, मन, बुद्धि और अहंकार सूक्ष्म शरीर कहलाते हैं और आत्मा कारण शरीर कहलाती है । आत्मा सूक्ष्म शरीर को लेकर (जीवात्मा) कलन के अनुसार निश्चित किये गए क्रम में विभिन्न प्राणियों के शरीर प्राप्त करती और छोड़ती रहती है और अंत में पुनः मनुष्य शरीर को प्राप्त कर लेती है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम्।।
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