पुनर्जन्म-19
गमन(Departure/Exit) -
मनुष्य जीवन के रहते ही संचित कामनाओं, कर्मों आदि का आकलन और गणना होती रहती है। शरीर के जर्जर होने अथवा किसी दुर्घटना में क्षत विक्षत हो जाने या फिर आत्महत्या कर लेने पर जीवात्मा को तुरंत ही यह शरीर छोड़ देना पड़ता है।ऐसा होते ही चैतन्य शरीर अचेतनता को प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार आत्मा के सूक्ष्म शरीर के साथ स्थूल शरीर को छोड़ देने को ही जीवात्मा का शरीर से गमन करना कहा जाता है ।
कई बार ऐसी स्थिति आती है जब चिकित्सक किसी व्यक्ति को brain dead घोषित कर देते हैं, ऐसा होने पर जीवात्मा की स्थिति क्या होती है, वह शरीर में ही रहती है अथवा शरीर छोड़ चुकी होती है ? ऐसे व्यक्ति के शरीर के सभी अंग जैसे हृदय, यकृत,फेंफड़े और गुर्दे आदि सुचारू रूप से कार्य करते रहते हैं परंतु मस्तिष्क मर जाता है अर्थात मस्तिष्क की चेतना समाप्त हो जाती है। शास्त्रों के अनुसार ऐसे व्यक्ति के स्थूल शरीर को जीवात्मा छोड़ चुकी होती है। आत्मा का इस प्रकार गमन करने के बाद दो परिणाम हो सकते हैं।प्रथम तो वह जीवात्मा कोई दूसरा शरीर प्राप्त कर चुकी होती है अथवा वह स्वर्गादि लोक में से किसी एक लोक में जाकर कलन के अनुसार वहां के भोगों को भोगने लगती है।
Brain dead घोषित करने पर चिकित्सक उस व्यक्ति के परिवार जनों को अंगदान करने की सलाह देते हैं।अंगदान से किसी एक या अधिक व्यक्तियों के जीवनकाल को बढ़ाया जा सकता है जिनमें वे अंग क्रियाशील न रहे हो परंतु मस्तिष्क पूर्ण रूप से स्वस्थ हो। जिस व्यक्ति को brain dead व्यक्ति का अंग लगा हो उस पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है, क्या उस व्यक्ति में अंगदाता के अंग देने से कोई परिवर्तन आता है ? वैज्ञानिक इस पर शोध कर रहे हैं। हृदय के अतिरिक्त अन्य अंगों के प्रत्यारोपण से कोई परिवर्तन नहीं आता, परंतु हृदय प्रत्यारोपण में चौंकाने वाले परिणाम सामने आये हैं,जो हमारे ऋषि मुनियों के द्वारा कही गयी बात को सत्य सिद्ध कर रहे हैं। एक शराब के आदी (alcohol addict)व्यक्ति को एक brain dead हुए सदैव शराब से दूर रहने वाले व्यक्ति का हृदय प्रत्यारोपित किया गया। हृदय प्रत्यारोपण किये गए व्यक्ति के पूर्णरूप से स्वस्थ होने पर पाया गया कि शराब के नशे का आदी वह व्यक्ति अब उसी प्रकार शराब से घृणा करने लगा जैसी शराब के प्रति घृणा उस हृदय देने वाले व्यक्ति को जीवित रहते थी। मन का विस्तार हृदय तक होता है, ऐसा शताब्दियों पहले ऋषियों ने कह दिया था, वही बात आज सत्य साबित हो रही है। भौतिक शरीर से गमन के बाद कामनाओं, ममता और कर्म के फल को पाने के लिए वापिस यहीं इसी संसार में एक नए शरीर के साथ लौटना होगा, पुनर्जन्म लेकर । इस प्रकार पुनरागमन की प्रक्रिया से ही तो यह संसार निरंतर गतिमान बना हुआ है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
गमन(Departure/Exit) -
मनुष्य जीवन के रहते ही संचित कामनाओं, कर्मों आदि का आकलन और गणना होती रहती है। शरीर के जर्जर होने अथवा किसी दुर्घटना में क्षत विक्षत हो जाने या फिर आत्महत्या कर लेने पर जीवात्मा को तुरंत ही यह शरीर छोड़ देना पड़ता है।ऐसा होते ही चैतन्य शरीर अचेतनता को प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार आत्मा के सूक्ष्म शरीर के साथ स्थूल शरीर को छोड़ देने को ही जीवात्मा का शरीर से गमन करना कहा जाता है ।
कई बार ऐसी स्थिति आती है जब चिकित्सक किसी व्यक्ति को brain dead घोषित कर देते हैं, ऐसा होने पर जीवात्मा की स्थिति क्या होती है, वह शरीर में ही रहती है अथवा शरीर छोड़ चुकी होती है ? ऐसे व्यक्ति के शरीर के सभी अंग जैसे हृदय, यकृत,फेंफड़े और गुर्दे आदि सुचारू रूप से कार्य करते रहते हैं परंतु मस्तिष्क मर जाता है अर्थात मस्तिष्क की चेतना समाप्त हो जाती है। शास्त्रों के अनुसार ऐसे व्यक्ति के स्थूल शरीर को जीवात्मा छोड़ चुकी होती है। आत्मा का इस प्रकार गमन करने के बाद दो परिणाम हो सकते हैं।प्रथम तो वह जीवात्मा कोई दूसरा शरीर प्राप्त कर चुकी होती है अथवा वह स्वर्गादि लोक में से किसी एक लोक में जाकर कलन के अनुसार वहां के भोगों को भोगने लगती है।
Brain dead घोषित करने पर चिकित्सक उस व्यक्ति के परिवार जनों को अंगदान करने की सलाह देते हैं।अंगदान से किसी एक या अधिक व्यक्तियों के जीवनकाल को बढ़ाया जा सकता है जिनमें वे अंग क्रियाशील न रहे हो परंतु मस्तिष्क पूर्ण रूप से स्वस्थ हो। जिस व्यक्ति को brain dead व्यक्ति का अंग लगा हो उस पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है, क्या उस व्यक्ति में अंगदाता के अंग देने से कोई परिवर्तन आता है ? वैज्ञानिक इस पर शोध कर रहे हैं। हृदय के अतिरिक्त अन्य अंगों के प्रत्यारोपण से कोई परिवर्तन नहीं आता, परंतु हृदय प्रत्यारोपण में चौंकाने वाले परिणाम सामने आये हैं,जो हमारे ऋषि मुनियों के द्वारा कही गयी बात को सत्य सिद्ध कर रहे हैं। एक शराब के आदी (alcohol addict)व्यक्ति को एक brain dead हुए सदैव शराब से दूर रहने वाले व्यक्ति का हृदय प्रत्यारोपित किया गया। हृदय प्रत्यारोपण किये गए व्यक्ति के पूर्णरूप से स्वस्थ होने पर पाया गया कि शराब के नशे का आदी वह व्यक्ति अब उसी प्रकार शराब से घृणा करने लगा जैसी शराब के प्रति घृणा उस हृदय देने वाले व्यक्ति को जीवित रहते थी। मन का विस्तार हृदय तक होता है, ऐसा शताब्दियों पहले ऋषियों ने कह दिया था, वही बात आज सत्य साबित हो रही है। भौतिक शरीर से गमन के बाद कामनाओं, ममता और कर्म के फल को पाने के लिए वापिस यहीं इसी संसार में एक नए शरीर के साथ लौटना होगा, पुनर्जन्म लेकर । इस प्रकार पुनरागमन की प्रक्रिया से ही तो यह संसार निरंतर गतिमान बना हुआ है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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