पुनर्जन्म-20
पुनरागमन(Re entry) -
प्रत्येक जीवात्मा के मनुष्य शरीर को त्यागने के पश्चात कलन के आधार पर पुनः इस संसार में लौटना निश्चित है। नए शरीर को लेकर जीवात्मा के इस प्रकार संसार में लौटने को पुनर्जन्म अथवा उसका पुनरागमन कहा जाता है। पूर्व मानव देह त्यागने के उपरांत नई देह प्राप्त करने में कितना समय लगता है, यह कलन पर निर्भर करता है। कलन के अनुसार निर्धारित क्रम में सबसे पहले जिस प्राणी की देह मिलनी है, वह अगर तत्काल उपलब्ध न हो तो उसमें कुछ समय लग सकता है ।तब तक जीवात्मा को अंतरिक्ष में इंतज़ार करना पड़ता है। देह मिलने का क्रम जो कलन के अनुसार निश्चित किया जा चुका है, वह किसी भी साधारण परिस्थिति में टूट नहीं सकता ।
मनुष्य के अतिरिक्त अन्य सभी प्राणियों में एक देह से दूसरी देह को प्राप्त करने में जीवात्मा को कोई समय नही लगता क्योंकि इन समस्त प्राणियों की योनियां केवल भोग योनियां हैं।कलन के अनुसार उनको मिलने वाले विभिन्न शरीरों का क्रम पहले ही निश्चित किया जा चुका होता है।मनुष्य की योनि भोग और कर्म, दोनों प्रकार की योनि है अर्थात मनुष्य देह पाकर पूर्व मानव जन्म के शेष रहे कर्मों के फलों को भोगना और अपनी इच्छानुसार नये कर्म करना, दोनों एक साथ किये जा सकते हैं। मनुष्य देह की प्राप्ति से पूर्व गर्भ काल के 9 महीनों की अवधि में जीवात्मा अनेकों बार गर्भ में प्रवेश करती है और बाहर निकल आती है। गर्भावस्था के पूर्ण हो जाने पर ही उस शरीर के बारे में पूर्णतया संतुष्ट होने के उपरांत ही जीवात्मा उसमें एक जीवन के लिए प्रवेश करती है ।
पुनरागमन की एक अन्य विधि परकाया प्रवेश भी है, जिसमें योगी अपनी जर्जर होती देह को त्याग कर अपने सामने उपलब्ध हुए युवा शरीर में अपनी जीवात्मा को प्रवेश करा लेता है । ऐसी क्षमता प्राप्त कर पाना बड़ा ही दुर्लभ है।ऐसा होना केवल तभी सम्भव है, जब योग की उच्चावस्था पर योगी पहुंच चुका होऔर उसको मानव जीवन में परमार्थ के लिए परमात्मा की इच्छानुसार दीर्घावधि तक बने रहना आवश्यक होता है।
मनुष्य योनि भोग और कर्म योनि के साथ साथ योग योनि भी है । मनुष्य शरीर मिलने का मूल उद्देश्य ही योग है, परमात्मा से योग। मनुष्य योनि में रहते हुए व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त हो सकता है। इस शरीर में जीवन के रहते हुए भी व्यक्ति परम जीवन अर्थात मोक्ष को उपलब्ध हो सकता है। ऐसी अवस्था को 'जीवन मुक्ति' कहा जाता है अर्थात व्यक्ति जीवन मुक्त हो जाता है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
पुनरागमन(Re entry) -
प्रत्येक जीवात्मा के मनुष्य शरीर को त्यागने के पश्चात कलन के आधार पर पुनः इस संसार में लौटना निश्चित है। नए शरीर को लेकर जीवात्मा के इस प्रकार संसार में लौटने को पुनर्जन्म अथवा उसका पुनरागमन कहा जाता है। पूर्व मानव देह त्यागने के उपरांत नई देह प्राप्त करने में कितना समय लगता है, यह कलन पर निर्भर करता है। कलन के अनुसार निर्धारित क्रम में सबसे पहले जिस प्राणी की देह मिलनी है, वह अगर तत्काल उपलब्ध न हो तो उसमें कुछ समय लग सकता है ।तब तक जीवात्मा को अंतरिक्ष में इंतज़ार करना पड़ता है। देह मिलने का क्रम जो कलन के अनुसार निश्चित किया जा चुका है, वह किसी भी साधारण परिस्थिति में टूट नहीं सकता ।
मनुष्य के अतिरिक्त अन्य सभी प्राणियों में एक देह से दूसरी देह को प्राप्त करने में जीवात्मा को कोई समय नही लगता क्योंकि इन समस्त प्राणियों की योनियां केवल भोग योनियां हैं।कलन के अनुसार उनको मिलने वाले विभिन्न शरीरों का क्रम पहले ही निश्चित किया जा चुका होता है।मनुष्य की योनि भोग और कर्म, दोनों प्रकार की योनि है अर्थात मनुष्य देह पाकर पूर्व मानव जन्म के शेष रहे कर्मों के फलों को भोगना और अपनी इच्छानुसार नये कर्म करना, दोनों एक साथ किये जा सकते हैं। मनुष्य देह की प्राप्ति से पूर्व गर्भ काल के 9 महीनों की अवधि में जीवात्मा अनेकों बार गर्भ में प्रवेश करती है और बाहर निकल आती है। गर्भावस्था के पूर्ण हो जाने पर ही उस शरीर के बारे में पूर्णतया संतुष्ट होने के उपरांत ही जीवात्मा उसमें एक जीवन के लिए प्रवेश करती है ।
पुनरागमन की एक अन्य विधि परकाया प्रवेश भी है, जिसमें योगी अपनी जर्जर होती देह को त्याग कर अपने सामने उपलब्ध हुए युवा शरीर में अपनी जीवात्मा को प्रवेश करा लेता है । ऐसी क्षमता प्राप्त कर पाना बड़ा ही दुर्लभ है।ऐसा होना केवल तभी सम्भव है, जब योग की उच्चावस्था पर योगी पहुंच चुका होऔर उसको मानव जीवन में परमार्थ के लिए परमात्मा की इच्छानुसार दीर्घावधि तक बने रहना आवश्यक होता है।
मनुष्य योनि भोग और कर्म योनि के साथ साथ योग योनि भी है । मनुष्य शरीर मिलने का मूल उद्देश्य ही योग है, परमात्मा से योग। मनुष्य योनि में रहते हुए व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त हो सकता है। इस शरीर में जीवन के रहते हुए भी व्यक्ति परम जीवन अर्थात मोक्ष को उपलब्ध हो सकता है। ऐसी अवस्था को 'जीवन मुक्ति' कहा जाता है अर्थात व्यक्ति जीवन मुक्त हो जाता है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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