रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग -1
सनातन धर्म में विभिन्न कथाओं के माध्यम से परमब्रह्म और उससे स्फुटित होने वाले जीवन को बहुत ही अच्छे तरीके से समझाया गया है।ग्रंथों में कई कथाएं वर्णित है और कुछ ग्रंथ तो केवल एक ही कथा पर आधारित है। परम ब्रह्म से मिले अपने जीवन को हम कैसे जियें जिससे कि हमारा जीवन श्रेष्ठ बन सके, इन कथाओं के माध्यम से सीखा जा सकता है।परम ब्रह्म जब भी अवतार लेते हैं, तब उनके जीवन को देखकर हमें कुछ दुविधाएं या यूं कहूँ कि मन में कुछ शंकाएं उत्पन्न हो जाती है।कहानियाँ शंका पैदा नहीं करती और न ही कुछ सोचने को मजबूर कर सकती क्योंकि कहानी घटना में "क्या हुआ था?" केवल इतना ही बतलाती है।जबकि कथा, कहानी से एकदम विपरीत होती है। कथा घटनाक्रम "क्यों हुआ था?" यह बतलाती है इसलिए व्यक्ति कथा सुन/पढ़कर उस पर मनन करता है। यही मनन कई बार कथा में वर्णित घटना के बारे में शंका उत्पन्न कर सकता है। कहानी सदैव काल्पनिक ही होती है, जबकि कथा सत्य घटना पर आधारित। कथा में वर्णित सत्य को स्वीकार करना कहानी की कल्पना को स्वीकार करने की तुलना में मनुष्य के लिए जरा मुश्किल होता है। इसलिए कथा को सुन पढ़कर मन में प्रश्न उठना स्वाभाविक है।आज से मैं ऐसी ही एक कथा से उठे कुछ प्रश्नों और शंकाओं का समाधान करने का प्रयास करने जा रहा हूँ।
कृष्ण कथा से अधिक प्रश्न रामकथा को पढ़कर मन में उठते हैं। कारण, कृष्ण द्वापर के अंतिम भाग में हुए थे, इस कारण से वे हमें आज इस कलियुग के पूर्व भाग में अधिक विश्वसनीय लगते हैं क्योंकि कलियुग के प्रारम्भ और द्वापर के अंत में विशेष समयान्तर नहीं है। कृष्ण हमारे अधिक पास है, राम की तुलना में।राम त्रेता में हुए जबकि हम कलियुग में है। इस बीच मे पूरा द्वापर बीत चुका है। इन दोनों युगों में बहुत अधिक समयांतर है।कलियुग में राम काल्पनिक लग सकते हैं परंतु त्रेता युग में जाकर देखेंगे तो वे ही वास्तविक नज़र आएंगे।इसी कारण से रामकथा मन में अधिक प्रश्न उत्पन्न करती है क्योंकि हम त्रेता को कलियुग के परिपेक्ष्य में देखने की गलती कर रहे हैं।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
सनातन धर्म में विभिन्न कथाओं के माध्यम से परमब्रह्म और उससे स्फुटित होने वाले जीवन को बहुत ही अच्छे तरीके से समझाया गया है।ग्रंथों में कई कथाएं वर्णित है और कुछ ग्रंथ तो केवल एक ही कथा पर आधारित है। परम ब्रह्म से मिले अपने जीवन को हम कैसे जियें जिससे कि हमारा जीवन श्रेष्ठ बन सके, इन कथाओं के माध्यम से सीखा जा सकता है।परम ब्रह्म जब भी अवतार लेते हैं, तब उनके जीवन को देखकर हमें कुछ दुविधाएं या यूं कहूँ कि मन में कुछ शंकाएं उत्पन्न हो जाती है।कहानियाँ शंका पैदा नहीं करती और न ही कुछ सोचने को मजबूर कर सकती क्योंकि कहानी घटना में "क्या हुआ था?" केवल इतना ही बतलाती है।जबकि कथा, कहानी से एकदम विपरीत होती है। कथा घटनाक्रम "क्यों हुआ था?" यह बतलाती है इसलिए व्यक्ति कथा सुन/पढ़कर उस पर मनन करता है। यही मनन कई बार कथा में वर्णित घटना के बारे में शंका उत्पन्न कर सकता है। कहानी सदैव काल्पनिक ही होती है, जबकि कथा सत्य घटना पर आधारित। कथा में वर्णित सत्य को स्वीकार करना कहानी की कल्पना को स्वीकार करने की तुलना में मनुष्य के लिए जरा मुश्किल होता है। इसलिए कथा को सुन पढ़कर मन में प्रश्न उठना स्वाभाविक है।आज से मैं ऐसी ही एक कथा से उठे कुछ प्रश्नों और शंकाओं का समाधान करने का प्रयास करने जा रहा हूँ।
कृष्ण कथा से अधिक प्रश्न रामकथा को पढ़कर मन में उठते हैं। कारण, कृष्ण द्वापर के अंतिम भाग में हुए थे, इस कारण से वे हमें आज इस कलियुग के पूर्व भाग में अधिक विश्वसनीय लगते हैं क्योंकि कलियुग के प्रारम्भ और द्वापर के अंत में विशेष समयान्तर नहीं है। कृष्ण हमारे अधिक पास है, राम की तुलना में।राम त्रेता में हुए जबकि हम कलियुग में है। इस बीच मे पूरा द्वापर बीत चुका है। इन दोनों युगों में बहुत अधिक समयांतर है।कलियुग में राम काल्पनिक लग सकते हैं परंतु त्रेता युग में जाकर देखेंगे तो वे ही वास्तविक नज़र आएंगे।इसी कारण से रामकथा मन में अधिक प्रश्न उत्पन्न करती है क्योंकि हम त्रेता को कलियुग के परिपेक्ष्य में देखने की गलती कर रहे हैं।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
Nice
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