Wednesday, February 27, 2019

रामकथा -कुछ अनछुए प्रसंग-3

रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग-3
गोस्वामीजी से बढ़कर रामकथा कोई कह ही नहीं सकता।वे मानस के लेखन को प्रारम्भ करते हुए कहते हैं-
बुध बिश्राम सकल जन रंजनि।रामकथा कलि कलुष बिभंजनि।।
रामकथा कलि पंनग भरनी।पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी।।
रामकथा कलि कामद गाई।सुजन सजीवनि मूरि सुहाई।।
-मानस1/31/5-7
रामकथा बुद्धिमानों को विश्राम देने वाली,सब मनुष्यों को प्रसन्न करने वाली और पापों का नाश करने वाली है।यह कलियुगरूपी सांप के लिए मोरनी है और विवेक रूपी अग्नि को प्रकट करने वाली अरणि(मथनी)है। यह कथा सब मनोरथों को पूरा करनेवाली कामधेनु गौ है और सज्जनों के लिए संजीवन बूटी है।
       गोस्वामीजी रामकथा का उद्देश्य प्रारम्भ में ही स्पष्ट कर देते हैं। जब इस कथा से विवेक उत्पन्न होता है तो फिर कथा के प्रसंग को पढ़ सुनकर विकल कैसे हो सकते हैं? विकल करते हैं विरह के प्रसंग।अगर विरह की कथा हमें विकल करती है तो इसका एक ही अर्थ है, हममें अभी तक विवेक जाग्रत नहीं हुआ है।अतः इस कथा को सुनकर विकल होना हमें उसके उद्देश्य से दूर कर देता है। तो आइए,ऐसी पावन कथा के भीतर डुबकी लगाने हेतु विरह प्रसंग के भीतर प्रवेश करते हैं।
        राम और कृष्ण, दोनों ही परम ब्रह्म के अवतार हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है।जब परम ब्रह्म अवतार लेता है तो उसे इस भौतिक संसार में मनुष्य के रूप में आकर जीना पड़ता है। फिर भी वह अपना वास्तविक स्वरूप भूलता नहीं है।इसीलिए उसके मनुष्य के जीवन को लीला(नाटक) कहा जाता है।हम भी उसी परम ब्रह्म के अंश है परंतु हम मनुष्य बनकर इस जीवन को एक लीला न समझकर सत्य समझ बैठे हैं। यही अंतर है परमात्मा और हममें। राम मनुष्य होकर भी पत्नी अपहरण में दिखावे के तौर पर रोते अवश्य हैं परंतु भीतर से वे रोते नहीं हैं।हम रामकथा में सीता के विरह में राम को बिलखते देखकर बाहर और भीतर,दोनों ही ओर से रोने लगते हैं परंतु मनुष्य राम केवल बाहर से दिखावे के लिए रोते हैं, भीतर के परम् ब्रह्म राम तो निश्चल बने रहते हैं।राम को मनुष्य के रूप में लीला पत्नी विरह में  रोते हुए मनुष्य की करनी होती है जबकि परम ब्रह्म राम जानते हैं कि यह वास्तविक सीता नहीं है बल्कि माया की सीता है।हम भी मानस/रामायण पढ़ते हुए जानते हैं कि यह सीता न होकर उसकी छाया मात्र है, केवल माया है, फिर भी राम के स्थान पर स्वयं को रखकर उस विरह को स्वयं का विरह अनुभव कर रोने लगते हैं।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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