Thursday, February 28, 2019

रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग-4

रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग-4
        व्यक्ति का विरह में विकल होना मंच पर अभिनय होता है और मंच के अतिरिक्त विकल होना अभी तक विवेक का जाग्रत न होना प्रदर्शित करता है।विरह के प्रसंग से व्यक्ति विभोर,विह्वल अथवा विकल-इन तीनों में से एक दशा को प्राप्त हो सकता है।विकलता वह मानसिक दशा है जिसमें हम अभिनय को वास्तविकता समझ बैठते हैं और अभिनीत पात्र और अभिनय कर्ता के अंतर को भूला बैठते हैं। हम यह नहीं समझ पाते कि अभिनीत पात्र और उस पात्र की भूमिका निभाने वाले अलग अलग हैं,एक नहीं है। हम सामने दिखाई पड़ने वाले दृश्य को ही वास्तविक समझ बैठते हैं। दूसरी अवस्था, विह्वलता व्यक्ति की  वह मानसिक दशा होती है जिसमें वह अभिनय को अभिनय समझते हुए भी उस अभिनय को वास्तविकता के अधिक निकट अनुभव कर, अपना विवेक अल्प समय के लिए खो देता है। इस अवस्था में थोड़ी देर बाद व्यक्ति अपनी सामान्य अवस्था में आ जाता है। तीसरी दशा भी अभिनय में डूब जाना है। वह मन की भाव विभोर अवस्था है परंतु इसमें अभिनय करने वाले कलाकार की वास्तविकता को हम भूलते नहीं है बल्कि उसके अभिनय को देखकर आनन्दित होते हैं। सोचते हैं, वह प्रभु! आपकी लीला अपरम्पार है।भगवन!आप भी क्या क्या खेल रचते,खेलते और खिलाते हैं? मन की इन तीन स्थितियों को ध्यान में रखते हुए हम विरह के इस प्रसंग की चर्चा में आगे बढ़ेंगे।
     राम कथा में सीता हरण पहला अवसर था, जब सीता राम से अलग होकर बहुत दूर चली गयी थी।सीता प्रकृति है,राम पुरुष।दोनों एक से ही प्रकट हुए हैं,परम ब्रह्म से।"यदा यदा ही धर्मस्य ...." पृथ्वी का भार कम करने के लिए।अवतार लेकर आ तो गए परंतु वापिस जाना भी तो है।मनुष्य रूप में है, बिना किसी आधार के सीधे सीधे छोड़कर तो  कैसे जा सकते हैं? अवतार लेने के लिए कर्म का सहारा लिया था,उन कर्मों के फल को भोगने की आड़ में ।अब सब काम करके वापिस जाने के लिए भी तो कोई कर्म करना होगा जिससे वैकुंठ लौट सके।सीता हरण हो गया,तब यह निश्चित हो गया था कि अब रावण आदि राक्षसों से धरा पूर्णरूप से रिक्त कर दी जाएगी।राम ब्रह्म है, सोचते हैं वापिस जाने के लिए कुछ तो लीला करो, कर्म करने का नाटक तो करो,जिससे उनका फल भोगते हुए वैकुंठ लौटा जा सके।राम जानते थे सीता कहाँ है, कौन ले गया है?फिर भी पेड़ पौधों से रोते हुए पूछ रहे हैं,क्योंकि मनुष्य रूप में भगवान है। मनुष्य के रूप में हैं तो पत्नी विरह में रोना भी पड़ेगा और भगवान होते हुए, सब कुछ जानते समझते हुए भी सीता की खोज करने का नाटक करते हैं क्योंकि उन्हें अभी  अपने भक्तों जटायु आदि का उद्धार भी तो करना है।बस, कथा चलती जा रही है, केवल 'क्या' हो रहा है बताने के लिए नहीं बल्कि यह बताने के लिए कि ऐसा 'क्यों' हो रहा है?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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