रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग-5
सब लीला हो रही है, धरती का भार उतारने और वापस लौट जाने के लिए।अब आ पहुंचे है,शबरी के पास।शबरी ने पता दिया सुग्रीव का।उधर सुग्रीव भी पत्नी विरह में, इधर राम भी, मिल गयी दोनों की जोड़ी। सुग्रीव वानर है और राम मनुष्य।साथ ही राम ब्रह्म भी है,अतः पहले काम सुग्रीव का।बाली वध हुआ, पेड़ की आड़ से तीर चलाकर। क्यों भई?राम ब्रह्म है, सामने आकर अथवा केवल अंगुली के इशारे से भी तो बाली को मार सकते थे। परन्तु नहीं, वे ब्रह्म होते हुए भी मनुष्य योनि में हैं।मनुष्य बने हैं तो उसी अनुसार ही तो कर्म करने होंगे, ब्रह्म है तो क्या हुआ?कर्म तो करने ही पड़ेंगे जैसा कि गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है। राम सोचते हैं,यहां भी लीला करो। मार दिया बाली को। बाली कहता है-'क्यों मारा छिपकर मुझे?मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था?' राम ने कारण बताया सब कुछ समझाया। कहानी होती तो नहीं बतलाती कि राम ने बाली को क्यों मारा ? वह तो केवल यही कहती है,"बाली निर्दलनं" राम ने बाली को मारा। यही तो कथा की विशेषता है कि वह स्पष्ट करती है कि बाली क्यों मारा गया ? भगवान दयालु है, अपनी ओर से बाली को एक अवसर मरने से बचने का भी देते हैं।भगवान कहते हैं-'अचल करो तनु राखेउ प्राना।' बाली समझ जाता है कि जो मुझे मारने के उद्देश्य से तीर मारकर भी प्राण बचाने का कह सकता है, वह ब्रह्म के अतिरिक्त अन्य कोई हो ही नहीं सकता।अब क्यों जीऊं और किसके लिए जीऊं?जो मानव जीवन का उद्देश्य है, परमात्मा को पाना, वे तो मेरे समक्ष खड़े हैं।भला, इससे अच्छा अवसर मुझे भविष्य में कहाँ मिलेगा? नहीं भगवन नहीं, मुझे अपनी शरण में ले लो। मुझे आपके दर्शन हो गए हैं, मैं आपको पहचान चुका हूं, अब इस तन को रखकर मुझे क्या करना है ?"जनम जनम मुनि जतन कराहीं।अन्त राम कहीं आवत नाहीं।।" आप तो मेरे सामने हैं, मुझे एक न एक दिन तो जाना ही है, फिर आज और अभी क्यों नहीं?आप अपने अवतरण का उद्देश्य पूरा कर फिर आ जाना। आज आपने मुझे मारने का जो कर्म किया है, उसका फल भी तो आपको आगे भुगतना है। त्रेता में आप मुझे मार रहे हो आगे द्वापर में मैं आपका वध करूंगा। यह आपका ही तो बनाया हुआ विधान है कि आज जिसको जो मारेगा उसको उसी के हाथों भविष्य में मरना पड़ेगा।"मां स भक्षयते यस्मान भक्षयिष्य तस्मान तमप्य्ह्म"।।महाभारत।। इस आधार पर द्वापर में भी तो आपके साथ लीला करने का एक बार और अवसर मिलेगा। त्रेता में आपने मेरी लीला समाप्त की, द्वापर में मैं आपकी लीला समाप्त करूंगा, फिर हिसाब बराबर होगा। द्वापर में कृष्ण की मनुष्य लीला समाप्त करने का अवसर एक भील को मिला था,सोते हुए श्री कृष्ण पर तीर चलाकर। द्वापर का वह भील त्रेता का बाली ही था।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
सब लीला हो रही है, धरती का भार उतारने और वापस लौट जाने के लिए।अब आ पहुंचे है,शबरी के पास।शबरी ने पता दिया सुग्रीव का।उधर सुग्रीव भी पत्नी विरह में, इधर राम भी, मिल गयी दोनों की जोड़ी। सुग्रीव वानर है और राम मनुष्य।साथ ही राम ब्रह्म भी है,अतः पहले काम सुग्रीव का।बाली वध हुआ, पेड़ की आड़ से तीर चलाकर। क्यों भई?राम ब्रह्म है, सामने आकर अथवा केवल अंगुली के इशारे से भी तो बाली को मार सकते थे। परन्तु नहीं, वे ब्रह्म होते हुए भी मनुष्य योनि में हैं।मनुष्य बने हैं तो उसी अनुसार ही तो कर्म करने होंगे, ब्रह्म है तो क्या हुआ?कर्म तो करने ही पड़ेंगे जैसा कि गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है। राम सोचते हैं,यहां भी लीला करो। मार दिया बाली को। बाली कहता है-'क्यों मारा छिपकर मुझे?मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था?' राम ने कारण बताया सब कुछ समझाया। कहानी होती तो नहीं बतलाती कि राम ने बाली को क्यों मारा ? वह तो केवल यही कहती है,"बाली निर्दलनं" राम ने बाली को मारा। यही तो कथा की विशेषता है कि वह स्पष्ट करती है कि बाली क्यों मारा गया ? भगवान दयालु है, अपनी ओर से बाली को एक अवसर मरने से बचने का भी देते हैं।भगवान कहते हैं-'अचल करो तनु राखेउ प्राना।' बाली समझ जाता है कि जो मुझे मारने के उद्देश्य से तीर मारकर भी प्राण बचाने का कह सकता है, वह ब्रह्म के अतिरिक्त अन्य कोई हो ही नहीं सकता।अब क्यों जीऊं और किसके लिए जीऊं?जो मानव जीवन का उद्देश्य है, परमात्मा को पाना, वे तो मेरे समक्ष खड़े हैं।भला, इससे अच्छा अवसर मुझे भविष्य में कहाँ मिलेगा? नहीं भगवन नहीं, मुझे अपनी शरण में ले लो। मुझे आपके दर्शन हो गए हैं, मैं आपको पहचान चुका हूं, अब इस तन को रखकर मुझे क्या करना है ?"जनम जनम मुनि जतन कराहीं।अन्त राम कहीं आवत नाहीं।।" आप तो मेरे सामने हैं, मुझे एक न एक दिन तो जाना ही है, फिर आज और अभी क्यों नहीं?आप अपने अवतरण का उद्देश्य पूरा कर फिर आ जाना। आज आपने मुझे मारने का जो कर्म किया है, उसका फल भी तो आपको आगे भुगतना है। त्रेता में आप मुझे मार रहे हो आगे द्वापर में मैं आपका वध करूंगा। यह आपका ही तो बनाया हुआ विधान है कि आज जिसको जो मारेगा उसको उसी के हाथों भविष्य में मरना पड़ेगा।"मां स भक्षयते यस्मान भक्षयिष्य तस्मान तमप्य्ह्म"।।महाभारत।। इस आधार पर द्वापर में भी तो आपके साथ लीला करने का एक बार और अवसर मिलेगा। त्रेता में आपने मेरी लीला समाप्त की, द्वापर में मैं आपकी लीला समाप्त करूंगा, फिर हिसाब बराबर होगा। द्वापर में कृष्ण की मनुष्य लीला समाप्त करने का अवसर एक भील को मिला था,सोते हुए श्री कृष्ण पर तीर चलाकर। द्वापर का वह भील त्रेता का बाली ही था।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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