रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग-9
लखन और हनुमान भी भगवान राम की लीला देखकर कुछ समय के लिए भ्रमित हो जाते हैं।भक्त हैं दोनों भगवान के परंतु साथ ही साथ मनुष्य और वानर भी तो है।भला एक व्यक्ति अपनी भाभी को भाई के कहने पर वन में छोड़ आने के आदेश पर प्रश्न कैसे नहीं करेगा?एक भक्त अपनी माता को वन में जाते हुए देखकर अपने भगवान की ओर व्यथित होकर क्यों नहीं देखेगा?यही तो आज लक्ष्मण और हनुमान के साथ हुआ है। "नहीं, मैं नहीं कर सकता ऐसा?" लखन ने कहा।राम ने लखन को समझाया।" त्रेता में मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ, अतः मेरी आज्ञा का पालन करो। द्वापर में तुम बन जाना,मेरे बड़े भाई। तब मैं तुम्हारी आज्ञा का पालन करूंगा । द्वापर दरवाजे पर खड़ा है, चलो जल्दी करो मेरे भाई। तुरंत सीता को वाल्मीकि आश्रम छोड़ आओ।" त्रेता-द्वापर, बड़ा-छोटा, क्या कह रहे हैं भाई, किस युग की और किस लोक की बात कर रहे हैं ?अचानक एक बिजली सी कौंधी और जैसे लखन की स्मृति लौट आई हो। इसी के साथ लक्ष्मण एक झटके से आ जाते हैं, आसमान से जमीन पर।"हे भगवान! मैं भी शेष का अवतार होते हुए भी मनुष्य की तरह व्यवहार क्यों करने लग गया था? एक ये महापुरुष हैं जो मनुष्य राम होकर भी अपने मूल स्वरूप को नहीं भूले हैं।मेरे इस भ्रम का निवारण भी इन्होंने मेरी धृष्टता क्षमा करते हुए द्वापर में मुझे अपना बड़ा भाई बनाकर किया है।क्षमा कर दें प्रभु! मैं ही भ्रम में था,आप नहीं।इस जन्म में तो क्या, मैं तो सदैव ही आपकी आज्ञा का पालन करूंगा, द्वापर में दाऊ होकर भी।" समझ गए लखन, राम जो भी कर रहे हैं सीता को वनवास देकर, सब कुछ लीला है इनकी, नाटक है इनका, सत्य से कोसों दूर।सीता को राम से आज तक कोई अलग कर पाया है भला। प्रकृति पुरुष से दूर हो ही नहीं सकती। दोनों का अस्तित्व एक दूसरे पर टिका हुआ है।पुरुष के बिना प्रकृति कुछ भी नहीं है और प्रकृति के अभाव में पुरुष भी व्यक्त नहीं हो सकता। वाह!क्या लीला है प्रभु आपकी?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
लखन और हनुमान भी भगवान राम की लीला देखकर कुछ समय के लिए भ्रमित हो जाते हैं।भक्त हैं दोनों भगवान के परंतु साथ ही साथ मनुष्य और वानर भी तो है।भला एक व्यक्ति अपनी भाभी को भाई के कहने पर वन में छोड़ आने के आदेश पर प्रश्न कैसे नहीं करेगा?एक भक्त अपनी माता को वन में जाते हुए देखकर अपने भगवान की ओर व्यथित होकर क्यों नहीं देखेगा?यही तो आज लक्ष्मण और हनुमान के साथ हुआ है। "नहीं, मैं नहीं कर सकता ऐसा?" लखन ने कहा।राम ने लखन को समझाया।" त्रेता में मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ, अतः मेरी आज्ञा का पालन करो। द्वापर में तुम बन जाना,मेरे बड़े भाई। तब मैं तुम्हारी आज्ञा का पालन करूंगा । द्वापर दरवाजे पर खड़ा है, चलो जल्दी करो मेरे भाई। तुरंत सीता को वाल्मीकि आश्रम छोड़ आओ।" त्रेता-द्वापर, बड़ा-छोटा, क्या कह रहे हैं भाई, किस युग की और किस लोक की बात कर रहे हैं ?अचानक एक बिजली सी कौंधी और जैसे लखन की स्मृति लौट आई हो। इसी के साथ लक्ष्मण एक झटके से आ जाते हैं, आसमान से जमीन पर।"हे भगवान! मैं भी शेष का अवतार होते हुए भी मनुष्य की तरह व्यवहार क्यों करने लग गया था? एक ये महापुरुष हैं जो मनुष्य राम होकर भी अपने मूल स्वरूप को नहीं भूले हैं।मेरे इस भ्रम का निवारण भी इन्होंने मेरी धृष्टता क्षमा करते हुए द्वापर में मुझे अपना बड़ा भाई बनाकर किया है।क्षमा कर दें प्रभु! मैं ही भ्रम में था,आप नहीं।इस जन्म में तो क्या, मैं तो सदैव ही आपकी आज्ञा का पालन करूंगा, द्वापर में दाऊ होकर भी।" समझ गए लखन, राम जो भी कर रहे हैं सीता को वनवास देकर, सब कुछ लीला है इनकी, नाटक है इनका, सत्य से कोसों दूर।सीता को राम से आज तक कोई अलग कर पाया है भला। प्रकृति पुरुष से दूर हो ही नहीं सकती। दोनों का अस्तित्व एक दूसरे पर टिका हुआ है।पुरुष के बिना प्रकृति कुछ भी नहीं है और प्रकृति के अभाव में पुरुष भी व्यक्त नहीं हो सकता। वाह!क्या लीला है प्रभु आपकी?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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