Wednesday, March 13, 2019

रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग-17

रामकथा-17
      इस प्रकार हमने अभी तक इस श्रृंखला में सीता के विरह से संबंधित प्रसंगों पर चर्चा की है। राम कथा केवल एक कहानी मात्र ही नहीं है इसीलिए इसका विश्लेषण कर गहराई तक पहुंचना आवश्यक है।स्वाभाविक है इसको पढ़कर मन में प्रश्नों का उठना। अगर गंभीरता से हम इस कथा पर चिंतन मनन करें और साथ ही संतों का संग भी करें तो प्रश्नों के उत्तर भी मिल जाते हैं। एक बात स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि हम राम कहानी पर चर्चा नहीं कर रहे हैं,रामकथा पर चर्चा कर रहे हैं जिसमें मुख्यतः 'क्यों हुआ' पर विचार रखे जाते हैं।इसलिए आपस में कुछ मत भिन्नता उत्पन्न हो सकती है। चर्चा की अवधि में कुछ प्रश्न उठें तो आप तुरंत पूछ सकते हैं।हाँ, प्रश्न रामकथा से संबंधित हो तो अच्छा रहेगा।रामकथा का प्रारम्भ जहां से होता है, आइए! अब उसी ओर चलते हैं।
       राम और सीता दोनों ने इस संसार में केवल एक बार ही जन्म लिया हो, ऐसा नहीं है।कई जन्म हो चुके हैं इनके और भविष्य में भी होंगे,परंतु हम इन सबको नहीं जानते। गीता के चौथे अध्याय के प्रारम्भ में ही भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कह देते हैं कि तुम्हारे और मेरे कई जन्म हो चुके हैं।उन सब जन्मों को तू नहीं जानता परंतु मैं जानता हूँ।
"बहूनि मे व्यतिनानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप।।4/5।।"
 अर्जुन भगवान से पूछते हैं कि मनुष्य पूर्वजन्मों के बारे में कुछ भी नहीं जानता, हे प्रभो!ऐसा क्यों होता है?क्या उत्तर दे कृष्ण इस प्रश्न का। भगवान रह गए, कुछ तो अंतर मनुष्य और भगवान में बना रहना ही चाहिए न। सभी कहते हैं कि अर्जुन का प्रश्न अनुत्तरित रहा। क्या आप भी इस बात से सहमत हैं?
          भगवान हमसे केवल मनुष्य के रूप में आकर ही मिलते हों, ऐसा नहीं है। हमारी बुद्धि को न जाने क्या हो गया है जो हम उनको पहचान ही नहीं पाते। हमें तो अगर वे मनुष्य रूप में भी हमारे सामने आ जाये तो भी हमें वे एक साधारण मनुष्य मात्र ही प्रतीत होंगे।उनके इस संसार से विदा हो जाने के बाद ही हमें अनुभव होता है कि अरे! वे तो ब्रह्म थे। आज जो कथा हम पढ सुन रहे हैं, सनातन शास्त्रों में उनके अवतरण की ऐसी अनेकों कथाएं भरी पड़ी है।दशावतार के बारे में हम प्रायः सभी जानते हैं, रामकथा उनमें से परमब्रह्म के सातवें अवतार की कथा है।  पहले छः अवतार हो चुके हैं और सातवें अवतार की तैयारी चल रही है। क्यों लेना पड़ता है बार बार अवतार प्रभु को? अवतार लेने का कारण क्या है? बड़ा ही गूढ़ प्रश्न उठा है मन में।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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