रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग-7
सीता बाल्यावस्था में एक वाटिका में पेड़ के नीचे बैठी खेल रही थी।पेड़ पर बैठा था,एक तोते का जोड़ा।बैठे हुए दोनों पति पत्नी आपस में बात कर रहे हैं।मादा तोता गर्भ से है।नर तोता अपनी पत्नी को राम कथा सुना रहा है। 'भगवान का राम के रूप में अवतार हो गया है और उनका विवाह जनकनंदिनी सीता से शीघ्र ही होने वाला है।' एक तोते के मुख से अचानक अपना नाम सुनकर सीता चौंक गई।उसने सोचा-अवश्य ही यह तोता मेरे बारे में बहुत कुछ जानता है। उसने उस तोते के जोड़े को पकड़ लिया और महल में लाकर एक पिंजरे में रख दिया।वह तोते से बोली-"मैं ही सीता हूँ। आज से प्रतिदिन तुम मुझे राम की कथा सुनाओगे। मेरे जीवन में आगे भविष्य में क्या क्या होने वाला है? मैं सब कुछ जानना चाहती हूँ'।' तोते ने अपनी पत्नी के गर्भवती होने की दुहाई देते हुए दोनों को पिंजरे से मुक्त कर देने की प्रार्थना की।सीता ने मादा तोते को पिंजरे में ही कैद रखते हुए नर तोते को इस शर्त पर मुक्त कर दिया कि वह प्रतिदिन आकर राम कथा सुनाएगा। इस प्रकार तोता प्रतिदिन महल में आकर सीता को राम कथा सुनाने लगा। गर्भवती मादा तोता पति वियोग को अधिक दिनों तक सहन नहीं कर पाई औऱ उसने अपना शरीर छोड़ते हुए सीता को श्राप दिया कि तुम भी अपने जीवन में गर्भकाल की अवधि में पति के वियोग से दुःखी होगी।
अगले दिन सुबह जब नर तोता सीता के महल में पहुंचा तो मृत पत्नी को देखकर उसने भी अपना शरीर छोड़ दिया। अब कल से सीता को आगे की रामकथा कौन सुनाएगा? पति पत्नी के इस प्रकार देह त्याग देने की घटना से सीता बड़ी दु:खी हुई । उसे उस श्राप से डर लग रहा था जिसके परिणाम स्वरूप उसे गर्भावस्था में पति वियोग सहना पड़ेगा।परंतु अब चिंतित होने से भी कुछ नहीं हो सकता था।कर्म रूपी तीर कमान से छूट चुका था और भविष्य में उस तीर से घायल सीता ही होगी कोई दूसरा नहीं। मैना का दिया हुआ वह श्राप ही वह कारण है जिसके परिणाम स्वरूप सीता अपने समस्त मानव जीवन में कभी भी सुखी नहीं रह सकी।11वर्ष तक वन में अपने पति के साथ भटकते हुए वह कभी भी महलों का सुख नहीं भोग सकी।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
सीता बाल्यावस्था में एक वाटिका में पेड़ के नीचे बैठी खेल रही थी।पेड़ पर बैठा था,एक तोते का जोड़ा।बैठे हुए दोनों पति पत्नी आपस में बात कर रहे हैं।मादा तोता गर्भ से है।नर तोता अपनी पत्नी को राम कथा सुना रहा है। 'भगवान का राम के रूप में अवतार हो गया है और उनका विवाह जनकनंदिनी सीता से शीघ्र ही होने वाला है।' एक तोते के मुख से अचानक अपना नाम सुनकर सीता चौंक गई।उसने सोचा-अवश्य ही यह तोता मेरे बारे में बहुत कुछ जानता है। उसने उस तोते के जोड़े को पकड़ लिया और महल में लाकर एक पिंजरे में रख दिया।वह तोते से बोली-"मैं ही सीता हूँ। आज से प्रतिदिन तुम मुझे राम की कथा सुनाओगे। मेरे जीवन में आगे भविष्य में क्या क्या होने वाला है? मैं सब कुछ जानना चाहती हूँ'।' तोते ने अपनी पत्नी के गर्भवती होने की दुहाई देते हुए दोनों को पिंजरे से मुक्त कर देने की प्रार्थना की।सीता ने मादा तोते को पिंजरे में ही कैद रखते हुए नर तोते को इस शर्त पर मुक्त कर दिया कि वह प्रतिदिन आकर राम कथा सुनाएगा। इस प्रकार तोता प्रतिदिन महल में आकर सीता को राम कथा सुनाने लगा। गर्भवती मादा तोता पति वियोग को अधिक दिनों तक सहन नहीं कर पाई औऱ उसने अपना शरीर छोड़ते हुए सीता को श्राप दिया कि तुम भी अपने जीवन में गर्भकाल की अवधि में पति के वियोग से दुःखी होगी।
अगले दिन सुबह जब नर तोता सीता के महल में पहुंचा तो मृत पत्नी को देखकर उसने भी अपना शरीर छोड़ दिया। अब कल से सीता को आगे की रामकथा कौन सुनाएगा? पति पत्नी के इस प्रकार देह त्याग देने की घटना से सीता बड़ी दु:खी हुई । उसे उस श्राप से डर लग रहा था जिसके परिणाम स्वरूप उसे गर्भावस्था में पति वियोग सहना पड़ेगा।परंतु अब चिंतित होने से भी कुछ नहीं हो सकता था।कर्म रूपी तीर कमान से छूट चुका था और भविष्य में उस तीर से घायल सीता ही होगी कोई दूसरा नहीं। मैना का दिया हुआ वह श्राप ही वह कारण है जिसके परिणाम स्वरूप सीता अपने समस्त मानव जीवन में कभी भी सुखी नहीं रह सकी।11वर्ष तक वन में अपने पति के साथ भटकते हुए वह कभी भी महलों का सुख नहीं भोग सकी।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
ये कथा कहाँ पर लिखी गयी है , मैंने प्रथम बार ही पढ़ी है
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