रामकथा-20-अवतार के हेतु-
इतने विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि परमात्मा अवतार लेते हैं, ज्ञानी भक्तों के लिए।हरि:शरणम् आश्रम बेलड़ा, हरिद्वार के आचार्य श्री गोविंद राम शर्मा कहते हैं कि भगवान अपने सभी भक्तों पर बराबर दया रखते हैं परंतु उनकी विशेष कृपा कुछ ही भक्तों पर होती है। दया के पात्र अर्थार्थी और आर्त भक्त हैं ही, जिज्ञासु और ज्ञानी भक्तों पर भगवान की विशेष कृपा होती है।इनमें भी जिज्ञासु भक्त,जो कि परमात्मा को जानने की कामना रखते हैं, को तो भगवान सद्गुरु उपलब्ध करा देते हैं परंतु ज्ञानी भक्त की तो कोई कामना ही नहीं होती। ऐसे परम ज्ञानी भक्त पर उनकी विशेष कृपा रहती है।जब ज्ञानी भक्त कष्ट सहते हैं तब वे किंचित मात्र भी व्यथित नहीं होते। परंतु भगवान से अपने इन सर्वाधिक प्रिय भक्तों का कष्ट सहना असह्य हो जाता है और उन्हें संसार में अवतरित होना पड़ता है।
रामावतार भी इसीलिए हुए था क्योंकि पृथ्वी पर अत्याचार इतने अधिक बढ़ गए थे कि केवल साधारण मनुष्य ही नहीं बल्कि ऋषि मुनि जैसे तपस्वी ज्ञानी भक्तों पर भी अत्याचार होने लगे थे।जब असुर जन ज्ञानी भक्तों को एक सीमा से अधिक पीड़ा देने लगते हैं तब भगवान से यह सहन नहीं होता और उनको अवतार लेना ही पड़ता है। ऋषि मुनि जैसे ज्ञानी भक्त कभी भी भगवान को नहीं कहते कि हे प्रभो!इन आततायियों से हमारी रक्षा करो।आप समस्त ग्रंथ उठाकर देख लीजिए, कभी भी कोई ज्ञानी भक्त भगवान से यह प्रार्थना करता नहीं मिलेगा कि हे प्रभो!मुझे इन राक्षसों से बचाओ।
प्रभु को ऐसे ही ज्ञानी भक्तों की रक्षा के लिए अवतार लेना पड़ता है, जो कि जिन्होंने पीड़ा सहते हुए भी आर्त भाव से अपने प्रभु को कभी भी नहीं पुकारा। परमात्मा को इनके लिए आना ही पड़ता है परंतु परमात्मा अवतार लेकर मनुष्य रूप में आये तो आये कैसे?उन्होंने ही तो इस धरा पर जन्म लेने का भी एक विधान बना रखा है-कर्म।अतः अवतार लेने से पूर्व उन्हें भी हम मनुष्यों से कुछ ऐसे कर्म करवाने पड़ते हैं, जिनकी आड़ लेकर वे इस पृथ्वी पर मनुष्य रूप में अवतरित हो सकें। त्रेता युग में यही कर्म रामावतार के हेतु बने थे।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
इतने विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि परमात्मा अवतार लेते हैं, ज्ञानी भक्तों के लिए।हरि:शरणम् आश्रम बेलड़ा, हरिद्वार के आचार्य श्री गोविंद राम शर्मा कहते हैं कि भगवान अपने सभी भक्तों पर बराबर दया रखते हैं परंतु उनकी विशेष कृपा कुछ ही भक्तों पर होती है। दया के पात्र अर्थार्थी और आर्त भक्त हैं ही, जिज्ञासु और ज्ञानी भक्तों पर भगवान की विशेष कृपा होती है।इनमें भी जिज्ञासु भक्त,जो कि परमात्मा को जानने की कामना रखते हैं, को तो भगवान सद्गुरु उपलब्ध करा देते हैं परंतु ज्ञानी भक्त की तो कोई कामना ही नहीं होती। ऐसे परम ज्ञानी भक्त पर उनकी विशेष कृपा रहती है।जब ज्ञानी भक्त कष्ट सहते हैं तब वे किंचित मात्र भी व्यथित नहीं होते। परंतु भगवान से अपने इन सर्वाधिक प्रिय भक्तों का कष्ट सहना असह्य हो जाता है और उन्हें संसार में अवतरित होना पड़ता है।
रामावतार भी इसीलिए हुए था क्योंकि पृथ्वी पर अत्याचार इतने अधिक बढ़ गए थे कि केवल साधारण मनुष्य ही नहीं बल्कि ऋषि मुनि जैसे तपस्वी ज्ञानी भक्तों पर भी अत्याचार होने लगे थे।जब असुर जन ज्ञानी भक्तों को एक सीमा से अधिक पीड़ा देने लगते हैं तब भगवान से यह सहन नहीं होता और उनको अवतार लेना ही पड़ता है। ऋषि मुनि जैसे ज्ञानी भक्त कभी भी भगवान को नहीं कहते कि हे प्रभो!इन आततायियों से हमारी रक्षा करो।आप समस्त ग्रंथ उठाकर देख लीजिए, कभी भी कोई ज्ञानी भक्त भगवान से यह प्रार्थना करता नहीं मिलेगा कि हे प्रभो!मुझे इन राक्षसों से बचाओ।
प्रभु को ऐसे ही ज्ञानी भक्तों की रक्षा के लिए अवतार लेना पड़ता है, जो कि जिन्होंने पीड़ा सहते हुए भी आर्त भाव से अपने प्रभु को कभी भी नहीं पुकारा। परमात्मा को इनके लिए आना ही पड़ता है परंतु परमात्मा अवतार लेकर मनुष्य रूप में आये तो आये कैसे?उन्होंने ही तो इस धरा पर जन्म लेने का भी एक विधान बना रखा है-कर्म।अतः अवतार लेने से पूर्व उन्हें भी हम मनुष्यों से कुछ ऐसे कर्म करवाने पड़ते हैं, जिनकी आड़ लेकर वे इस पृथ्वी पर मनुष्य रूप में अवतरित हो सकें। त्रेता युग में यही कर्म रामावतार के हेतु बने थे।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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