रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग-14-
हमने अभी तक सीता के परित्याग से अवतारों के ऊपर पड़े प्रभाव की चर्चा की है।राम, लक्ष्मण, हनुमान सभी अवतार हैं, यहां तक कि भरत और रिपुदमन भी।मुख्य अवतार हैं,भगवान श्री राम।इसलिए राम, राम कथा की पूरी अवधि में जरा सा भी विचलित नहीं होते हैं। शेष सभी अवतार भी थोड़ी देर के लिए ही विचलित होते हैं परंतु फिर अपने आपको झट सम्हाल भी लेते हैं। रामकथा में वर्णित इस प्रसंग को सुनकर हम सोचते हैं कि सीता के परित्याग से प्रजा का क्या हाल हुआ होगा? लवकुश को सीताजी ने कैसे समझाया होगा?वाल्मीकिजी ने लव कुश को उनके पिता के बारे में क्या बताया होगा?
हमारे ये सभी प्रश्न काल्पनिक हैं।संसार जैसा है, सदैव वैसा ही चलता है, रामराज्य आ भी जाये तो भी उसमें कोई विशेष परिवर्तन नहीं हो पाता है। कारण, संसार चलता है केवल आसक्ति और उससे उत्पन्न कामना पर।सुख की आसक्ति से उत्पन्न सुख की कामना जो कभी पूरी हो नहीं हो पाती है। बिना कामना पूरी हुए आसक्ति मिट नहीं सकती और कामना पूरी किसी की भी हो नहीं सकती। यही कारण है कि भले ही राम राज्य स्थापित हो जाये, संतुष्टि किसी को भी मिल नहीं सकती।हम जिस रामराज्य की कल्पना करते हैं, उस राज्य में सभी अपने जीवन में संतुष्ट रहने चाहिए।क्या रामराज्य में अयोध्यावासी पूर्ण रूप से संतुष्ट थे? नहीं थे, अगर होते तो सीता को त्याग देने की परिस्थिति कभी भी नहीं बनती।
प्रत्येक राज्य की प्रजा सुख चाहती है और सुख परमात्मा को भुला देता है।राम के राज्य में सारी प्रजा सुखी थी। सुखी होना और संतुष्ट होने, दोनों अलग अलग हैं।सुख मिलने से भी व्यक्ति असंतुष्ट हो सकता है और दुःख झेलते हुए भी व्यक्ति संतुष्ट रह सकता है।रामराज्य आने से पूर्व भी अयोध्या में दशरथ का राज था परंतु जब राम को वनवास दिया गया तब प्रजा राम के पीछे चल पड़ी थी।इसका कारण राम का भगवान होना बिल्कुल भी नहीं था बल्कि राम के राज सम्हालने पर और अधिक सुख मिलने की आशा थी, जिसके टूटने की संभावना से प्रजा व्यथित होकर उनके पीछे चल दी। 14 वर्ष बाद आया रामराज प्रजा को उम्मीद से अधिक सुख देने वाला सिद्ध हुआ।"दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज यह काहु न व्यापा।।"आम प्रजा को जितना अधिक सुख मिलता है,उसके बाद और अधिक सुख पाने की कामना करने लगती है। इस कारण से लोगों की मानसिक दशा रामराज्य में भी दिन प्रतिदिन बदलने लगती है और राजा के प्रति आलोचना के स्वर तक उठने लगते हैं, उसके प्रत्येक कार्य में प्रजा को कमियां नज़र आने लगती है।परमात्मा भी संसार की इस मानसिक स्थिति का सामना करने से अछूते नहीं रह सकते। ठीक ऐसा ही तो राजा राम के साथ हुआ।धोबी को अपनी पत्नी का घर से बाहर चले जाना रास नहीं आया। इसके लिए अपनी पत्नी को प्रताड़ना देते हुए उसने उदाहरण भी राजा राम और रानी सीता का दिया। ठीक ऐसा ही आज इस युग में भी हो रहा है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।हरि:शरणम्।।
हमने अभी तक सीता के परित्याग से अवतारों के ऊपर पड़े प्रभाव की चर्चा की है।राम, लक्ष्मण, हनुमान सभी अवतार हैं, यहां तक कि भरत और रिपुदमन भी।मुख्य अवतार हैं,भगवान श्री राम।इसलिए राम, राम कथा की पूरी अवधि में जरा सा भी विचलित नहीं होते हैं। शेष सभी अवतार भी थोड़ी देर के लिए ही विचलित होते हैं परंतु फिर अपने आपको झट सम्हाल भी लेते हैं। रामकथा में वर्णित इस प्रसंग को सुनकर हम सोचते हैं कि सीता के परित्याग से प्रजा का क्या हाल हुआ होगा? लवकुश को सीताजी ने कैसे समझाया होगा?वाल्मीकिजी ने लव कुश को उनके पिता के बारे में क्या बताया होगा?
हमारे ये सभी प्रश्न काल्पनिक हैं।संसार जैसा है, सदैव वैसा ही चलता है, रामराज्य आ भी जाये तो भी उसमें कोई विशेष परिवर्तन नहीं हो पाता है। कारण, संसार चलता है केवल आसक्ति और उससे उत्पन्न कामना पर।सुख की आसक्ति से उत्पन्न सुख की कामना जो कभी पूरी हो नहीं हो पाती है। बिना कामना पूरी हुए आसक्ति मिट नहीं सकती और कामना पूरी किसी की भी हो नहीं सकती। यही कारण है कि भले ही राम राज्य स्थापित हो जाये, संतुष्टि किसी को भी मिल नहीं सकती।हम जिस रामराज्य की कल्पना करते हैं, उस राज्य में सभी अपने जीवन में संतुष्ट रहने चाहिए।क्या रामराज्य में अयोध्यावासी पूर्ण रूप से संतुष्ट थे? नहीं थे, अगर होते तो सीता को त्याग देने की परिस्थिति कभी भी नहीं बनती।
प्रत्येक राज्य की प्रजा सुख चाहती है और सुख परमात्मा को भुला देता है।राम के राज्य में सारी प्रजा सुखी थी। सुखी होना और संतुष्ट होने, दोनों अलग अलग हैं।सुख मिलने से भी व्यक्ति असंतुष्ट हो सकता है और दुःख झेलते हुए भी व्यक्ति संतुष्ट रह सकता है।रामराज्य आने से पूर्व भी अयोध्या में दशरथ का राज था परंतु जब राम को वनवास दिया गया तब प्रजा राम के पीछे चल पड़ी थी।इसका कारण राम का भगवान होना बिल्कुल भी नहीं था बल्कि राम के राज सम्हालने पर और अधिक सुख मिलने की आशा थी, जिसके टूटने की संभावना से प्रजा व्यथित होकर उनके पीछे चल दी। 14 वर्ष बाद आया रामराज प्रजा को उम्मीद से अधिक सुख देने वाला सिद्ध हुआ।"दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज यह काहु न व्यापा।।"आम प्रजा को जितना अधिक सुख मिलता है,उसके बाद और अधिक सुख पाने की कामना करने लगती है। इस कारण से लोगों की मानसिक दशा रामराज्य में भी दिन प्रतिदिन बदलने लगती है और राजा के प्रति आलोचना के स्वर तक उठने लगते हैं, उसके प्रत्येक कार्य में प्रजा को कमियां नज़र आने लगती है।परमात्मा भी संसार की इस मानसिक स्थिति का सामना करने से अछूते नहीं रह सकते। ठीक ऐसा ही तो राजा राम के साथ हुआ।धोबी को अपनी पत्नी का घर से बाहर चले जाना रास नहीं आया। इसके लिए अपनी पत्नी को प्रताड़ना देते हुए उसने उदाहरण भी राजा राम और रानी सीता का दिया। ठीक ऐसा ही आज इस युग में भी हो रहा है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।हरि:शरणम्।।
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