Monday, March 11, 2019

रामकथा-कुछअनछुए प्रसंग-15

रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग-15
        धोबी की बात राजा राम के कानों में पड़ गयी। उन्होंने अपने सुख पर प्रजा के सुख को महत्व दिया। उनका उदाहरण देते हुए धोबी मानसिक रूप से दुःखी क्यों हो?अपनी प्रजा के लिए राजा राम द्वारा तत्काल ही सीता का त्याग कर दिया गया।आदेश दिया लखन को, छोड़ आओ अपनी भाभी को वाल्मीकिजी के आश्रम में। लखन ले जा रहे हैं, सीता मां को, अश्रुधारा बह रही है नयनों से।आज प्रजा क्यों नहीं गयी, सीता के पीछे पीछे, वाल्मीकिजी के आश्रम तक?क्योंकि आज प्रजा राम राज्य के कारण सुखी थी और सुख में भगवान तक भूला दिए जाते हैं।राम भगवान थे, यह अनुभव अयोध्या की प्रजा को उनके सरयू में समा जाने के बाद ही हुआ। जिसको उनके रहते उनके ब्रह्म होने का अनुभव हुआ वे तो तत्काल ही भगवान की शरण में पहुंच गए। उन्होंने तो अपने सुख की कामना तुरंत ही छोड़ दी। इसलिए यह कहना कि रामराज्य सर्वोच्च सुखी और संतुष्ट राज्य था, केवल एक कल्पना मात्र है क्योंकि सुख की कोई सर्वोच्च अवस्था नहीं होती है।व्यक्ति के जीवन में सुख का तो सदैव अभाव ही बना रहता है।
        सीता का त्याग केवल एक परिवार और उससे संबंधित लोगों की समस्या बनकर रह गयी थी, अयोध्या की प्रजा को इससे कोई मतलब नहीं था। वाल्मीकिजी संत थे, उनके आश्रम में सीता के स्थान पर अगर कोई अन्य स्त्री भी आई होती तो वे उसकी भी इसी प्रकार सहायता करते। इसी आश्रम में लव कुश का जन्म होता है, सीता उनकी माँ है।बच्चों का पालन पोषण करना एक मां का मुख्य दायित्व है। प्रारम्भिक शिक्षा हमें मां ही देती है।सीता ने भी उनको इसी प्रकार शिक्षित किया कि वे बड़े होकर अपने पिता से मिलकर असहज न हो उठे।
          राजवंश, रघुवंश के उत्तराधिकारी की शिक्षा भी उसी प्रकार होनी चाहिए जिसके वे अधिकारी हैं। महर्षि वाल्मीकि ने उनको शास्त्र विद्या के साथ साथ शस्त्र विद्या में भी निपुण किया। लव कुश के द्वारा अपने पिता के बारे में प्रश्न किये जाने पर दोनों ही मौन साध लेते थे क्योंकि सीता प्रकृति है, जानती है आगे क्या होना है।रही बात वाल्मीकिजी की, वे तो त्रिकालज्ञ हैं, यह सर्व विदित है।भला, उनसे कभी भूत भविष्य छुपा रह सकता है क्या? फिर वर्तमान के छुपे रहने की बात ही कहाँ रह जाती है?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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