Sunday, March 24, 2019

रामकथा-28-रामावतार के हेतु-

रामकथा-28-रामावतार के हेतु-
          गंभीरता से दोनों घटनाओं पर विचार करें तो इस प्रश्न का एक ही उत्तर निश्चित रूप से सामने आता है।पहले जय विजय को श्राप मिला था और बाद में मनु शतरूपा को वरदान।दोनों द्वारपालों जय और विजय को श्राप प्रभु के भक्तों सनकादिक ऋषियों से मिला था और प्रभु सदैव अपने भक्तों के वचनों को मिथ्या होने से बचाते हैं।भगवान चाहते तो सीधे सीधे जय विजय को श्राप से मुक्त करा सकते थे लेकिन वे अपने भक्त के वचन को सत्य सिद्ध कराते ही हैं।
      मनु शतरूपा को दिया गया वरदान ही प्रभु की एक लीला थी। दोनों की मति (बुद्धि) परिवर्तित कर देना केवल परमात्मा के वश में ही था अन्यथा मोक्ष के लिए तपस्या करने वाला व्यक्ति मुक्ति से कम कैसे स्वीकार कर सकता है ? पाना था परमात्मा को, निराकार में अपने साकार शरीर को विलीन करने का अनुपम अवसर था मनु शतरूपा के पास।देखिए मति का फेर, उल्टे निराकार परमात्मा को ही साकार पुत्र के रूप में पाने का वर मांग लिया। क्या मनु को पता नहीं था कि परमात्मा के साकार रूप जैसा केवल परमात्मा ही हो सकता है? इस प्रकार मनु ने अप्रत्यक्ष रूप से ही सही परमात्मा को ही अपने पुत्र के रूप में मांग लिया।क्या मनु यह नहीं जानते थे कि परमात्मा को पुत्र बना लेना, उन्हें पुनः सांसारिकता में उलझा कर रख देगा।सब कुछ जानते थे मनु । अपने भक्तों और पार्षदों के कारण परमात्मा की इच्छा थी अवतार लेने की और एक तपस्वी युगल के घर में अवतार लेने से अच्छी जगह उनके लिए दूसरी अन्य केउन सी हो सकती थी ? मनु शतरूपा ने परमात्मा की इस इच्छा को स्वीकार कर अपनी इच्छा बना लिया और अपने घर पुत्र रूप में आने का वरदान ले लिया। मनु ने प्रभु सर कहा,"भावी जीवन में मैं आपको पुत्र ही समझूँ, परमात्मा नहीं। इसलिए जब आप पुत्र रूप में पधारें तो मुझे यह याद नहीं रहे कि आप ब्रह्म हैं।"  परंतु शतरूपा मनु से अधिक समझदार निकली।वह जानती थी कि पुनर्जन्म में जाने पर पूर्वजन्म की कोई स्मृति साथ में नहीं रहती।अतः उन्होंने श्रीहरि को कहा-"आप पुत्र रूप में जन्म लेने से पहले अपना चतुर्भुज स्वरूप मुझे अवश्य दिखलाएं।ऐसा हो जाने पर जीवन भर मैं आपको अपना पुत्र मानते हुए भी आपका परमात्मा होना विस्मृत नहीं कर सकूंगी।" इस प्रकार वरदान में मिलने वाले फल के साथ श्रीहरि के दर्शन की इच्छा कर कम से कम शतरूपा ने तो अपनी तपस्या को सही दिशा दे दी।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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