Monday, March 4, 2019

रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग-8

रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग-8
    कहने का अर्थ है कि हमारे सभी कर्म भले ही उनको हम किसी भी कारण से कर रहे हों,अंततः उनका फल हमें ही भुगतना है,चाहे वह फल सुख दे अथवा दुःख।परमात्मा ऐसी व्यवस्था कर देते हैं कि जहाँ, जिससे, जिसको और जैसा फल भुगतना अथवा भुगताना होता है, येन केन प्रकारेण वह, वहाँ पहुंच ही जाता है।हमारे हाथ में फल भुगतना अथवा भुगताना है ही नहीं, वह तो प्रकृति और परमात्मा के हाथ है।हमारे हाथ में दुःखी अथवा सुखी होने के अलावा एक और बात है, वह है फल के रूप में मिलने वाले सुख-दुःख को सहन करते हुए उसके प्रभाव को देखना।इससे हम सुख में ज्यादा उछलने नहीं लगेंगे और दुख में अधिक व्यथित भी नहीं होंगे।राम और सीता ने केवल दुःख के प्रभाव को देखा, इसी कारण से वे अपने जीवन में सहज रह सके। कल राज तिलक होना है,तो भी ज्यादा खुश नहीं।राज के बदले प्रातः काल वनवास मिल गया तो दुःखी भी नहीं हुए।
        राम कथा में घटना आती है गर्भवती सीता के वनवास की। अपने शेष बचे मानव जीवन को एक परित्यक्ता का जीवन जीने के लिए विवश हुई सीता की कथा। राम रावण का वध कर लौटते हैं अयोध्या।राज्याभिषेक हो जाता है।एक धोबी के कथन पर सीता का परित्याग कर दिया जाता है। उसे केवल त्यागा ही नहीं गया बल्कि त्याग कर वनवास भी दे दिया गया, वन में वाल्मीकि आश्रम में भेज दिया गया।क्यों? क्या राम के लिए आज धोबी अधिक विश्वसनीय हो गया था,लखन और हनुमान की तुलना में? क्या राम नहीं जानते थे कि रावण ने माया की सीता का अपहरण किया था, वास्तविक सीता का नहीं?वे परम ब्रह्म हैं, सब कुछ जानते हुए भी कुछ भी न जानने की लीला कर रहे हैं।सीता को वन में जाना ही होगा क्योंकि परम ब्रह्म राम को अपनी लीला जो समेटनी है। यह राम कथा के उत्तरार्ध का अंतिम भाग है।राम हमारी तरह केवल मनुष्य मात्र ही होते तो राज्य का सुख भोगते, पत्नी को अपने से कभी भी अलग नहीं होने देते,अपने दोनों पुत्रों को गोद में खिलाते।परंतु नहीं,वे परम ब्रह्म राम है, उनके अवतरण का उद्देश्य पूरा हो गया है,उन्हें वैकुंठ लौटना ही होगा। मनुष्य रूप में है,अतः कर्मों की आड़ में कर्मफल भोगते हुए और आगे भोगने के लिए एक बार वैकुंठ लौट रहे हैं।सीता ने पृथ्वी से जन्म लिया है, उन्हें तो पृथ्वी में ही समाना होगा। अपने दोनों पुत्रों को राम को सौंप कर, सांसारिक कर्तव्य को पूरा करने की मिशाल बनकर पृथ्वी में समा जाती है, सीता।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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