Sunday, March 17, 2019

रामकथा-21-रामावतार के हेतु-

रामकथा-21- रामावतार के हेतु-
     हमारे आचार, विचार,व्यवहार और कर्म एक दूसरे को प्रभावित अवश्य करते हैं। इनके प्रभाव से हम में से प्रत्येक का वर्तमान जीवन तो प्रभावित होता ही है, साथ ही भावी जीवन भी प्रभावित होता है।मन से अगर हम किसी कर्म को करने का विचार भी करते हैं,तो उसका फल भी हमें मिलना निश्चित है। ऐसे कर्म को मानस कर्म कहते हैं और मिलने वाले फल को मानस फल। मानस कर्म मनुष्य की मानसिक दशा को परिवर्तित कर फलीभूत होते हैं। परमात्मा के अवतार लेने में भौतिक कर्मों के साथ साथ मानस कर्मों की भी भूमिका रहती है।
        परमात्मा भी अवतार लेने से पहले विभिन्न मनुष्यों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के कर्म करवाते हैं परंतु स्वयं "न करोति न लिप्यते" बने रहते हैं।इस बात को समझना बहुत आवश्यक है। परमात्मा हमें साकार रूप में कर्म करते दृष्टिगत अवश्य होते हैं परंतु वे कर्म करते नहीं है बल्कि कर्म करने का नाटक करते हैं।इसी को परमात्मा की लीला कहा जाता है। यही कारण है कि वनभ्रमण की अवधि में सीता हरण पर राम को व्याकुल देखकर भी शंकर तो ब्रह्म को पहचान गए थे परंतु सती उन्हें नहीं पहचान सकी।इसी कारण से सती के मन में संशय पैदा हो गया। अपने मन का संशय तो सती ने तत्काल सीता का वेश बनाकर दूर कर लिया परंतु इस कर्म(सीता का वेश धारण) के कारण वह अपने पति को खो बैठी। वापिस शंकर के पास लौटते ही भगवान ने उन्हें वाम भाग में स्थान देने की बजाय अपने सामने आसान दिया। यह शंकर का सती को अपनी पत्नी के पद से त्यागना था। परमात्मा में क्षणिक समय के लिए उत्पन्न हुए संशय ने सती को पुनर्जन्म लेने को बाध्य कर दिया। रामचरितमानस के प्रारम्भ में ही वह पार्वती बनकर शंकर को पति के रूप में पा चुकी है। भविष्य में परमात्मा के प्रति किसी प्रकार का संशय न रहे, अतः वे शंकर से रामकथा सुनाने का आग्रह कर रही है।
      आइए,अब रामकथा पर आगे बढ़ते हैं।श्री रामचरित मानस में पार्वतीजी अपने पति शंकर भगवान से रामकथा सुनाने का आग्रह कर रही है।
बहुरि कहहु करुनायतन कीन्ह जो अचरज राम।
प्रजा सहित रघुबंसमनि किमि गवने निज धाम।।
                                 ।।मानस-1/110।।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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