रामकथा-34-रामावतार के हेतु-
जब हम अपने जीवन के सर्वोत्तम बिंदु पर होते है,तब उस स्थिति पर सदैव बने रहना चाहते हैं।हम यह भूल जाते हैं कि इस संसार में स्थायित्व के भाव का अभाव है। स्थिति और परिस्थिति का बदलना निश्चित है। फिर भी हम न जाने क्यों सदैव परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाये रखना चाहते हैं। यही तो प्रतापभानु कर रहा है। राज्य अक्षुण रहना चाहिए, चाहे किसी प्रकार का कर्मकांड करने से ऐसा संभव हो। कपटी तपस्वी ने ऐसा ही एक उपाय बता दिया है। कल वह कर्मकांड सम्पन्न कर सदैव के लिए अपने राज्य की ओर से निश्चिंत हो जाएंगे। यही कल्पना करते करते रात को प्रतापभानु वहीं सो जाते हैं।
सुबह अपने राजमहल में ही उनकी नींद खुलती है। आश्चर्य होता है उन्हें, कैसे पहुंचा मैं यहां?दौड़कर घुड़साल पहुंचते हैं,देखते हैं कि उनका अश्व भी वहां बंधा है।सब कपटी तपस्वी की बनाई योजना के अनुसार ही हो रहा है। राज उपरोहित के वेश में वह कपटी वहां आता है और विप्रों को आमंत्रित कर भोजन बनाने में व्यस्त हो जाता है। कई ब्राह्मण भोजन करने आते हैं।राजा प्रतापभानु उन्हें भोजन परोसने ही वाले होते हैं कि आकाशवाणी होती है।"हे विप्रजन, उठो।इस भोजन को करोगे तो आप पथभ्रष्ट हो जाओगे। इस भोजन में ब्राह्मणों का मांस मिला हुआ है ।"
इतना सुनते ही सभी विप्रजन क्रोधित होकर भोजन करने से पूर्व ही उठ गए और राजा प्रतापभानु को श्राप दे डाला।" इसी वर्ष के मध्य तक तुम्हारा सर्वस्व नष्ट हो जाएगा। तुम्हें जलांजलि देने को भी कोई नहीं रहेगा।" तत्काल ही पुनः आकाशवाणी हुई कि "हे ब्राह्मणों, इसमें राजा का कोई दोष नहीं है।" परंतु अब ब्राह्मणों के शाप से बचना असंभव है। अंततः ब्राह्मणों के श्राप के अनुसार ही तो सब कुछ होना है। यही तो विधि का विधान है। कैकय प्रदेश पर कपटी तपस्वी एकतनु और उसके सहयोगी राजाओं का संगठित आक्रमण होता है। राजा प्रतापभानु,उनका भाई अरिमर्दन,सचिव धर्मरूचि सहित सारी सेना खेत रहती है।
इन्हीं राजा प्रतापभानु का लंका में रावण, उसके छोटे भाई अरिमर्दन का कुम्भकरण और उनके सचिव धर्मरूचि का विभीषण के रूप में पुनर्जन्म होता है।इस प्रकार जय विजय को दूसरी आसुरी योनि मिल चुकी है, श्राप तीन ऐसी ही योनियों का सनकादिक ऋषियों से मिला हुआ है, अतः सत्य तो सिद्ध होना ही है। रामावतार का एक और कारण बन गया है क्योंकि इन असुर योनियों से जय विजय को मुक्त केवल श्रीहरि ही कर सकते हैं अन्य कोई नहीं।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम् ।।
जब हम अपने जीवन के सर्वोत्तम बिंदु पर होते है,तब उस स्थिति पर सदैव बने रहना चाहते हैं।हम यह भूल जाते हैं कि इस संसार में स्थायित्व के भाव का अभाव है। स्थिति और परिस्थिति का बदलना निश्चित है। फिर भी हम न जाने क्यों सदैव परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाये रखना चाहते हैं। यही तो प्रतापभानु कर रहा है। राज्य अक्षुण रहना चाहिए, चाहे किसी प्रकार का कर्मकांड करने से ऐसा संभव हो। कपटी तपस्वी ने ऐसा ही एक उपाय बता दिया है। कल वह कर्मकांड सम्पन्न कर सदैव के लिए अपने राज्य की ओर से निश्चिंत हो जाएंगे। यही कल्पना करते करते रात को प्रतापभानु वहीं सो जाते हैं।
सुबह अपने राजमहल में ही उनकी नींद खुलती है। आश्चर्य होता है उन्हें, कैसे पहुंचा मैं यहां?दौड़कर घुड़साल पहुंचते हैं,देखते हैं कि उनका अश्व भी वहां बंधा है।सब कपटी तपस्वी की बनाई योजना के अनुसार ही हो रहा है। राज उपरोहित के वेश में वह कपटी वहां आता है और विप्रों को आमंत्रित कर भोजन बनाने में व्यस्त हो जाता है। कई ब्राह्मण भोजन करने आते हैं।राजा प्रतापभानु उन्हें भोजन परोसने ही वाले होते हैं कि आकाशवाणी होती है।"हे विप्रजन, उठो।इस भोजन को करोगे तो आप पथभ्रष्ट हो जाओगे। इस भोजन में ब्राह्मणों का मांस मिला हुआ है ।"
इतना सुनते ही सभी विप्रजन क्रोधित होकर भोजन करने से पूर्व ही उठ गए और राजा प्रतापभानु को श्राप दे डाला।" इसी वर्ष के मध्य तक तुम्हारा सर्वस्व नष्ट हो जाएगा। तुम्हें जलांजलि देने को भी कोई नहीं रहेगा।" तत्काल ही पुनः आकाशवाणी हुई कि "हे ब्राह्मणों, इसमें राजा का कोई दोष नहीं है।" परंतु अब ब्राह्मणों के शाप से बचना असंभव है। अंततः ब्राह्मणों के श्राप के अनुसार ही तो सब कुछ होना है। यही तो विधि का विधान है। कैकय प्रदेश पर कपटी तपस्वी एकतनु और उसके सहयोगी राजाओं का संगठित आक्रमण होता है। राजा प्रतापभानु,उनका भाई अरिमर्दन,सचिव धर्मरूचि सहित सारी सेना खेत रहती है।
इन्हीं राजा प्रतापभानु का लंका में रावण, उसके छोटे भाई अरिमर्दन का कुम्भकरण और उनके सचिव धर्मरूचि का विभीषण के रूप में पुनर्जन्म होता है।इस प्रकार जय विजय को दूसरी आसुरी योनि मिल चुकी है, श्राप तीन ऐसी ही योनियों का सनकादिक ऋषियों से मिला हुआ है, अतः सत्य तो सिद्ध होना ही है। रामावतार का एक और कारण बन गया है क्योंकि इन असुर योनियों से जय विजय को मुक्त केवल श्रीहरि ही कर सकते हैं अन्य कोई नहीं।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम् ।।
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