Friday, March 22, 2019

रामकथा-26-रामावतार के हेतु-

रामकथा-26-रामावतार के हेतु-
      मनु-शतरूपा को परमात्मा से मिले वरदान में कुछ भी नहीं मांगना चाहिए था परंतु उनके मन की गहराई में पुत्र मोह कहीं अभी भी सांसे ले रहा था। संसार में पुत्र को छोड़ आये हैं और संसार से मुक्ति पाने के स्थान पर श्रीहरि जैसा ही पुत्र मांग लिया। अब पुत्र मांगा है तो अप्रत्यक्ष रूप से संसार में एक नया जन्म भी मांग लिया फिर मोक्ष का क्या हुआ? मोक्ष से वंचित हो जाना तप की असफलता ही है। हरि तो रह गए, अपने भक्तों के वश में, कह दिया- "मेरे जैसा पुत्र कहाँ से लाऊं, मैं स्वयं ही तुम्हारा पुत्र बनकर आऊंगा।" यही तो भगवान की विशेष बात है कि जो मांगोगे, बिना उस पर विचार किये भक्त को दे डालते हैं। इसे तो मैं मनुष्य की विडंबना ही कहूँगा कि साक्षात परमात्मा वरदान दे रहे हैं और हम वर में उन्हें न मांग कर सांसारिक वस्तुएं ही मांग बैठते हैं।जिस संसार को हम छोड़कर आये हैं, पुनः उसी संसार में डूबने के लिए पुत्र पाने का वर मांग रहे हैं। अरे मनु महाराज, पुत्र उत्तानपाद को तो छोड़कर आये हैं । क्या वह पुत्र नहीं था जो फिर पुत्र ही मांग लिया।हम भी मनु शतरूपा की तरह ही करते हैं? परमात्मा को भजते हैं, मोक्ष के लिए और वर मिलते ही पुनः उसी संसार को मांग लेते हैं जिससे मुक्त होना चाहते हैं।आखिर परमात्मा हमारा कल्याण करे तो कैसे करे?
        श्रीहरि को पुत्र रूप में पाने के वरदान के कारण, मनु शतरूपा को वैकुण्ठ मिलने के स्थान पर संसार मिलना निश्चित हो गया है।श्रीहरि चाहे पुत्र रूप में आ जाये, यह मन उसमें भी अपनी ममता पैदा कर लेगा और फिर उसी हरि को भुला बैठेगा।अब वह श्रीहरि न होकर उनका पुत्र राम होगा। पिता दशरथ के लिए तो राम सदैव पुत्र ही रहेंगे, उनके लिए वे परमात्मा कैसे हो सकते हैं? राम को पुत्र न मानकर उनमें श्रीहरि को देखते तो मृत्यु उनका वरण कर ही नहीं सकती थी।समस्त स्थान में हरि को देखने वाले अमर होते हैं, शेष सभी तो सांस लेते हुए केवल शरीर का बोझ ढो रहे होते हैं। दशरथ की पुत्र राम में ममता हुई, मोह हुआ अगर उसके स्थान पर पुत्र में परमात्मा को देखते हुए उनसे स्नेह रखते तो रामकथा कुछ और ही होती ।
       मनु हो चाहे दशरथ अथवा हम, हमारे में से कोई भी पुत्र मोह से मुक्त नहीं हैं।तप का फल वरदान और उससे मांगे वर ने परमात्मा को अवतार लेने के लिए विवश कर दिया है।अब परमात्मा कोई साधारण मनुष्य तो है नहीं, सीधे सीधे तो अवतार कैसे ले लेंगे,उसके लिए कुछ न कुछ तो भूमिका बनानी पड़ेगी।उस भूमिका को बनाने में किन किन का और किस प्रकार का सहयोग रहा, अब उस ओर थोड़ी दृष्टि डाल लेते हैं।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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