Tuesday, March 19, 2019

रामकथा-23-रामावतार के हेतु-


रामकथा-23-रामावतार के हेतु-
        रामकथा कहने,सुनने का तभी लाभ है जब मन के सभी संशय दूर हो जाये अन्यथा तो यह कथा भी मात्र एक कहानी बनकर रह जायेगी।
रामकथा सुंदर कर तारी।
संसय विहग उड़ावनिहारी।।
रामकथा कलि बिटप कुठारी।
सादर सुनु गिरिराजकुमारी।।1/114/1-2।।
    रामकथा उस दोनों हाथों से बजाई जाने वाली ताली की तरह है, जिसके बजाते ही संशय रूपी पंछी उड़ जाते हैं।कलियुग रूपी पेड़ को वह जड़ से उखाड़ फेंकती है, उस कथा को हे पार्वती, तुम आदर सहित सुनो।
          रामावतार के पूर्व से लेकर उनके लीला संवरण करने तक की यात्रा में कई प्रश्न मन में उठते हैं और यह स्वाभाविक भी है। किसी कहानी के सुनने से मन में प्रश्न तो उठेंगे ही परंतु इस कहानी को श्रद्धा रखकर कथा बना लेंगे तो हमें सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे और सारा संशय दूर हो जाएगा।
       गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में जो कथा कही है, उसमें संशय करने का कोई कारण नहीं बनता। वैसे हम संशय करने की जिद्द ही कर लें तो संसार और परमात्मा की प्रत्येक बात में संशय कर सकते हैं।संशय दूर करने के लिए केवल ग्रंथों का अध्ययन करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उसके लिए दीर्घकालीन सत्संग की आवश्यकता होती है। बिना सत्संग के संशय दूर नहीं हो सकता।पूर्व जन्म में सती ने राम की कहानी शंकर से भी सुनी थी, फिर भी आज पार्वती शंकर के साथ रामकथा सुनने के लिए सत्संग कर रही है। पूर्वजन्म में कहानी सुनी थी, इसलिए राम के ब्रह्म होने पर संशय पैदा हुआ ।अब रामकथा पर सत्संग कर रही है।सत्संग सभी शंकाओं का समाधान कर देता है।यह सत्संग उसे भविष्य में संशय से सदैव मुक्त रखेगा।
अब हम 'रामावतार के हेतु' विषय पर चर्चा को आगे बढ़ाएंगे।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

No comments:

Post a Comment