Wednesday, March 27, 2019

रामकथा-31-रामावतार के हेतु-

रामकथा-31-रामावतार के हेतु-
   भारतवर्ष के उत्तरपश्चिम में एक कैकय प्रदेश हुआ करता था। उसके राजा थे,सत्यकेतु। सत्यकेतु के दो पुत्र थे, बड़े पुत्र प्रतापभानु और छोटे पुत्र अरिमर्दन।सत्यकेतु जब संन्यास अवस्था की ओर बढ़ने लगे तो उन्होंने अपना राज्य उत्तराधिकारी बड़े बेटे प्रतापभानु को देकर वन में प्रस्थान कर गए। प्रतापभानु के मुख्य सचिव थे, धर्मरूचि।प्रतापभानु के राजकाज में सहयोग करते थे,उनके अनुज अरिमर्दन।अरिमर्दन भी अपने अग्रज की तरह ही बाहुबली थे। प्रतापभानु के राज में प्रजा पूर्ण रूप से संतुष्ट थी । सभी धर्माचरण ही करते थे, पाप कर्म का कोई स्थान नहीं था।
           जिस राजा का अरिमर्दन जैसा बाहुबली भाई हो, उस राजा को अपने राज्य के विस्तार करने का मोह हो ही जाता है। राजा प्रतापभानु नहीं जानते थे कि एक दिन राज्य के विस्तार का यह मोह उन्हीं के पतन का कारण बनेगा। आसपास के कई राज्यों को जीतकर उन्होंने अपने राज्य का विस्तार कर लिया था। उसके राज्य में प्रजा बड़ी सुखी थी।अपने राजा से उसे किसी भी प्रकार की कोई शिकायत नहीं थी।प्रतापभानु रात भर राज्य में घूमकर प्रजा की सुरक्षा की जांच करते ।इस प्रकार कहा जा सकता है कि उनके राज्य में प्रजा को किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं थी।
       जिन राज्यों के ऊपर कैकय प्रदेश ने आक्रमण किया था, प्रायः उन राज्यों के राजा लोगों ने प्रतापभानु की शक्ति को स्वीकार करते हुए।उनकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। परंतु एक दो राज्य के राजा ऐसे भी थे, जिन्होंने अधीनता स्वीकार करने के स्थान पर या तो लड़कर वीरगति को प्राप्त करना उचित समझा अथवा अपनी हार सम्मुख देखकर जंगल की ओर भाग लिए।जंगल में जाकर उन्होंने अपना वेश बदल लिया और प्रतिशोध लेने के लिए उचित समय का इंतज़ार करने लगे।कहा जाता है कि पराजित शत्रु अगर युद्ध मैदान पर मारे जाने के स्थान पर युद्ध भूमि छोड़कर भाग जाए, वह शत्रु भविष्य में विजयी राजा के लिए एक दिन बहुत बड़ा खतरा सिद्ध होता है।कुछ ऐसा ही राजा प्रतापभानु के साथ हुआ।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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