रामकथा-33-रामावतार के हेतु-
कपटी तपस्वी द्वारा प्रतापभानु को पास में स्थित सरोवर का रास्ता बात दिया गया। प्यास बुझाकर प्रतापभानु लौट आये और तपस्वी के पास बैठकर उनसे बातचीत करने लगे।तपस्वी ने अपना नाम एकतनु बताते हुए राजा से उनका परिचय पूछा। प्रतापभानु ने अपना वास्तविक परिचय नहीं दिया। कपटी तपस्वी ने उनका वास्तविक परिचय बता कर अपने प्रभाव में ले लिया। अब विजित राजा पराजित राजा के प्रभाव में आ गए हैं । सब कुछ ऐसे हो रहा है जैसे पूर्व में ही वैसा होना निश्चित किया जा चुका हो।हमारे जीवन में भी सब कुछ ऐसे ही होता है। सब विधि का विधान है।
तुलसी जसि भवतब्यता,तैसी मिलइ सहाइ।
आपनु आवइ ताहिं पहि,ताहि तहां लै जाइ।।
-मानस-1/159ख।।
तुलसी बाबा कह रहे हैं कि होनी को कोई टाल नहीं सकता। परिस्थितियां स्वतः ही ऐसी बन जाती है कि विधि को जहां उसे ले जाना होता हैं वहां वह जैसे तैसे पहुंच ही जाता है।राजा प्रतापभानु के विधि विपरीत है, उसे नए जीवन में असुर होना है, परिस्थितियां उसी अनुसार स्वतः ही बनती जा रही है।
बैरी पुनि छत्री पुनि राजा।
छल बल कीन्ह चहइ निज काजा।।1/160/6।।
तुलसीदासजी कह रहे हैं कि एक तो शत्रु, फिर क्षत्रिय और इनसे भी ऊपर एक राजा , ये तीनों छल और बल से अपना काम करना चाहते हैं।एकतनु कपटी तपस्वी है, वह तपस्वी न होकर प्रतापभानु से पराजित हुआ एक राजा है, उसमें तुलसीदासजी द्वारा बतलाई गई तीनों विशेषताएं हैं। भला, वह प्रतिशोध के लिए हाथ लगे इस सुनहरे अवसर को व्यर्थ क्यों जाने देगा?
एकतनु तपस्वी वेषधारी राजा आज बगुला भगत बन गया है।राजा प्रतापभानु को अनेकों ज्ञान की बातें बताकर अपने वश में कर लिया है।अब इस स्थिति में होनी को कोई नहीं टाल सकता।प्रतापभानु को अपने वश में जानकर उसने उसके मर्म पर आखिरी चोट की। कपटी तपस्वी बोला-"आपका राज्य अक्षुण रहेगा, अगर आप ब्राह्मणों को खुश कर दो। आपका नाश केवल विप्र श्राप से ही हो सकता है। मैं एक ऐसा उपाय जानता हूँ जिसके कर देने मात्र से ही आप के राज्य के सभी विप्र जन आप पर प्रसन्न हो जाएंगे। ऐसे में आपको विप्र श्राप मिलने की संभावना का भय सदैव के लिए भी समाप्त हो जाएगा और फिर आपके राज्य का कोई नाश नहीं कर सकेगा।"
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
कपटी तपस्वी द्वारा प्रतापभानु को पास में स्थित सरोवर का रास्ता बात दिया गया। प्यास बुझाकर प्रतापभानु लौट आये और तपस्वी के पास बैठकर उनसे बातचीत करने लगे।तपस्वी ने अपना नाम एकतनु बताते हुए राजा से उनका परिचय पूछा। प्रतापभानु ने अपना वास्तविक परिचय नहीं दिया। कपटी तपस्वी ने उनका वास्तविक परिचय बता कर अपने प्रभाव में ले लिया। अब विजित राजा पराजित राजा के प्रभाव में आ गए हैं । सब कुछ ऐसे हो रहा है जैसे पूर्व में ही वैसा होना निश्चित किया जा चुका हो।हमारे जीवन में भी सब कुछ ऐसे ही होता है। सब विधि का विधान है।
तुलसी जसि भवतब्यता,तैसी मिलइ सहाइ।
आपनु आवइ ताहिं पहि,ताहि तहां लै जाइ।।
-मानस-1/159ख।।
तुलसी बाबा कह रहे हैं कि होनी को कोई टाल नहीं सकता। परिस्थितियां स्वतः ही ऐसी बन जाती है कि विधि को जहां उसे ले जाना होता हैं वहां वह जैसे तैसे पहुंच ही जाता है।राजा प्रतापभानु के विधि विपरीत है, उसे नए जीवन में असुर होना है, परिस्थितियां उसी अनुसार स्वतः ही बनती जा रही है।
बैरी पुनि छत्री पुनि राजा।
छल बल कीन्ह चहइ निज काजा।।1/160/6।।
तुलसीदासजी कह रहे हैं कि एक तो शत्रु, फिर क्षत्रिय और इनसे भी ऊपर एक राजा , ये तीनों छल और बल से अपना काम करना चाहते हैं।एकतनु कपटी तपस्वी है, वह तपस्वी न होकर प्रतापभानु से पराजित हुआ एक राजा है, उसमें तुलसीदासजी द्वारा बतलाई गई तीनों विशेषताएं हैं। भला, वह प्रतिशोध के लिए हाथ लगे इस सुनहरे अवसर को व्यर्थ क्यों जाने देगा?
एकतनु तपस्वी वेषधारी राजा आज बगुला भगत बन गया है।राजा प्रतापभानु को अनेकों ज्ञान की बातें बताकर अपने वश में कर लिया है।अब इस स्थिति में होनी को कोई नहीं टाल सकता।प्रतापभानु को अपने वश में जानकर उसने उसके मर्म पर आखिरी चोट की। कपटी तपस्वी बोला-"आपका राज्य अक्षुण रहेगा, अगर आप ब्राह्मणों को खुश कर दो। आपका नाश केवल विप्र श्राप से ही हो सकता है। मैं एक ऐसा उपाय जानता हूँ जिसके कर देने मात्र से ही आप के राज्य के सभी विप्र जन आप पर प्रसन्न हो जाएंगे। ऐसे में आपको विप्र श्राप मिलने की संभावना का भय सदैव के लिए भी समाप्त हो जाएगा और फिर आपके राज्य का कोई नाश नहीं कर सकेगा।"
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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