पुनर्जन्म-18
विभिन्न प्राणियों की देह में भ्रमण करने का क्रम अनवरत तब तक चलता है जब तक व्यक्ति का मानस पटल किसी कामना,कर्म व आसक्ति के अंकित होने से वंचित नहीं हो जाता। ज्योंहि मन शुद्ध हुआ, आत्मा को फिर नए शरीर की आवश्यकता ही नहीं रहती और वह अपने मूल स्वरूप को प्राप्त हो जाती है।परंतु ऐसा होना तब तक संभव नहीं है,जब तक मनुष्य के जीवन में उसके मन में अहंता, ममता,आसक्ति,कर्ता भाव, विषयभोग की कामनाएं आदि बनी रहेगी।
गुरु नानक अपने शिष्यों के साथ एक शहर के बाजार से गुज़र रहे थे । उसी समय एक दूकान का मालिक बोरे में रखे धान में मुंह मार रहे बकरे को लकड़ी से पीटकर भगाने का प्रयास कर रहा था। यह देखकर गुरु नानक को हंसी आ गयी। शिष्यों ने उनसे हंसी आने का कारण पूछा । गुरु नानक ने कहा कि इस बकरे को देख रहे हो न, वह इस दूकान पर बैठे हुए व्यक्ति का बाप है।इसके बाप की आसक्ति इस दूकान में थी। देह त्याग के बाद यह अपनी आसक्ति के कारण बकरा बनकर यहां पहुंच गया है।रात को इसी दूकान के बाहर बैठता है। भूख लगी तो कुछ खाने को यहीं आ जाता है।उसके लड़के को,जोकि अब इस दूकान का मालिक है,पता नहीं है कि यह बकरा इसका बाप ही है और वह इसको पीटकर दूर भाग रहा है । इसका बकरा बना बाप भी यह नहीं समझता है कि अब यह दूकान उसकी नहीं है और बार बार लौटकर वापिस अपनी दूकान समझकर यहां आ जाता है।
यह दृष्टांत स्पष्ट करता है कि आसक्ति कई जन्म तक नहीं छूटती है । इसकी प्रक्रिया है-आसक्ति की भावना,उसका अंकन, संचयन, कलन और अंततः बकरे के शरीर की प्राप्ति । वही जीवात्मा,वही दूकान और वही पुत्र।अंतर केवल इतना कि न दूकान उसको अपना समझती है और न ही उसका लड़का। वास्तव में सत्य भी यही है कि इस संसार में कोई किसी का नहीं है । यह केवल एक यात्रा है जिसमें केवल चलते जाना है, ठहरना कहीं नहीं है, सब कुछ पीछे छूट जाना है।ऐसी ही भ्रांति लेकर हम सब जी रहे हैं कि यह मेरा लड़का, यह मेरी दूकान ।इससे पहले की देह छोड़ने के बाद बकरा बनना पड़े,पहले ही यह जीवन रहते मुक्त हो जाएं, जीवन मुक्त।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
विभिन्न प्राणियों की देह में भ्रमण करने का क्रम अनवरत तब तक चलता है जब तक व्यक्ति का मानस पटल किसी कामना,कर्म व आसक्ति के अंकित होने से वंचित नहीं हो जाता। ज्योंहि मन शुद्ध हुआ, आत्मा को फिर नए शरीर की आवश्यकता ही नहीं रहती और वह अपने मूल स्वरूप को प्राप्त हो जाती है।परंतु ऐसा होना तब तक संभव नहीं है,जब तक मनुष्य के जीवन में उसके मन में अहंता, ममता,आसक्ति,कर्ता भाव, विषयभोग की कामनाएं आदि बनी रहेगी।
गुरु नानक अपने शिष्यों के साथ एक शहर के बाजार से गुज़र रहे थे । उसी समय एक दूकान का मालिक बोरे में रखे धान में मुंह मार रहे बकरे को लकड़ी से पीटकर भगाने का प्रयास कर रहा था। यह देखकर गुरु नानक को हंसी आ गयी। शिष्यों ने उनसे हंसी आने का कारण पूछा । गुरु नानक ने कहा कि इस बकरे को देख रहे हो न, वह इस दूकान पर बैठे हुए व्यक्ति का बाप है।इसके बाप की आसक्ति इस दूकान में थी। देह त्याग के बाद यह अपनी आसक्ति के कारण बकरा बनकर यहां पहुंच गया है।रात को इसी दूकान के बाहर बैठता है। भूख लगी तो कुछ खाने को यहीं आ जाता है।उसके लड़के को,जोकि अब इस दूकान का मालिक है,पता नहीं है कि यह बकरा इसका बाप ही है और वह इसको पीटकर दूर भाग रहा है । इसका बकरा बना बाप भी यह नहीं समझता है कि अब यह दूकान उसकी नहीं है और बार बार लौटकर वापिस अपनी दूकान समझकर यहां आ जाता है।
यह दृष्टांत स्पष्ट करता है कि आसक्ति कई जन्म तक नहीं छूटती है । इसकी प्रक्रिया है-आसक्ति की भावना,उसका अंकन, संचयन, कलन और अंततः बकरे के शरीर की प्राप्ति । वही जीवात्मा,वही दूकान और वही पुत्र।अंतर केवल इतना कि न दूकान उसको अपना समझती है और न ही उसका लड़का। वास्तव में सत्य भी यही है कि इस संसार में कोई किसी का नहीं है । यह केवल एक यात्रा है जिसमें केवल चलते जाना है, ठहरना कहीं नहीं है, सब कुछ पीछे छूट जाना है।ऐसी ही भ्रांति लेकर हम सब जी रहे हैं कि यह मेरा लड़का, यह मेरी दूकान ।इससे पहले की देह छोड़ने के बाद बकरा बनना पड़े,पहले ही यह जीवन रहते मुक्त हो जाएं, जीवन मुक्त।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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