पुनर्जन्म-23
अब प्रश्न यह उठता है कि 'स्व' में स्थित कैसे हुआ जाय? 'स्व' में स्थित होने के लिए कौन से प्रयास करने होंगे ? समस्या यही तो है कि हमें प्रयास करने की आदत पड़ गयी है।नदी बह रही है, उसमें बह रही वस्तु को पकड़ने के लिए प्रयास करना पड़ता है।संसार प्रतिपल बह रहा है, उसको आप पकड़ना चाहते हैं तो प्रयास करना पड़ेगा।परंतु जो अविनाशी है, अक्षर है, उसको पकड़ने में प्रयास की नहीं विश्राम लेने की आवश्यकता होगी। परमात्मा जो कि अक्षर अविनाशी है, को पाने के लिए भी प्रयास करते हैं, कितने बड़े मूर्ख हैं हम? पकड़ना और त्यागना दो ऐसे शब्द हैं, जिनके अर्थ को जानना महत्वपूर्ण है।पकड़ोगे उसको जो दूर जा रहा हो,दूर जाने वाला पकड़ में नहीं आएगा और अगर कभी थोड़ा बहुत पकड़ में आ भी गया तो नित्य पकड़ा हुआ नहीं रह सकता,एक दिन छूट ही जायेगा। हमें त्यागना भी उसी को पाने के प्रयास को है जिसे प्रयास करके भी सदैव के लिए अथवा हो सकता है कभी भी पकड़ा न जा सके।पकड़ने में प्रयास करना पड़ता है जबकि त्यागने में किसी भी प्रकार के प्रयास की आवश्यकता नहीं है।अतः मन और इंद्रियों से भोगों को पकड़ने का प्रयास मत करो, वे सब आपको संतुष्ट नहीं कर सकेंगे।करना है तो भोगों को प्राप्त करने की कामना का त्याग करें फिर मन और इंद्रियों को नियंत्रण में करने का प्रयास भी नहीं करना पड़ेगा।आपकी कामना, चाहना कभी पूरी नहीं होगी क्योंकि एक के पूरी होने से पहले नई चाहना उत्पन्न हो जाएगी। चाहना के बंधन से मुक्त होने का यह एक मार्ग होगा कि मन में किसी प्रकार की चाहना ही न बने।फिर ये मन, इन्द्रियां, बुद्धि आदि को नियंत्रित करने की बातें बेमानी हो जाएगी क्योंकि इनको वश में करने के लिए बहुत प्रयास करना पड़ता है और अंत में यह प्रयास प्रायः असफल ही सिद्ध होता है।
कल समापन कड़ी
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
अब प्रश्न यह उठता है कि 'स्व' में स्थित कैसे हुआ जाय? 'स्व' में स्थित होने के लिए कौन से प्रयास करने होंगे ? समस्या यही तो है कि हमें प्रयास करने की आदत पड़ गयी है।नदी बह रही है, उसमें बह रही वस्तु को पकड़ने के लिए प्रयास करना पड़ता है।संसार प्रतिपल बह रहा है, उसको आप पकड़ना चाहते हैं तो प्रयास करना पड़ेगा।परंतु जो अविनाशी है, अक्षर है, उसको पकड़ने में प्रयास की नहीं विश्राम लेने की आवश्यकता होगी। परमात्मा जो कि अक्षर अविनाशी है, को पाने के लिए भी प्रयास करते हैं, कितने बड़े मूर्ख हैं हम? पकड़ना और त्यागना दो ऐसे शब्द हैं, जिनके अर्थ को जानना महत्वपूर्ण है।पकड़ोगे उसको जो दूर जा रहा हो,दूर जाने वाला पकड़ में नहीं आएगा और अगर कभी थोड़ा बहुत पकड़ में आ भी गया तो नित्य पकड़ा हुआ नहीं रह सकता,एक दिन छूट ही जायेगा। हमें त्यागना भी उसी को पाने के प्रयास को है जिसे प्रयास करके भी सदैव के लिए अथवा हो सकता है कभी भी पकड़ा न जा सके।पकड़ने में प्रयास करना पड़ता है जबकि त्यागने में किसी भी प्रकार के प्रयास की आवश्यकता नहीं है।अतः मन और इंद्रियों से भोगों को पकड़ने का प्रयास मत करो, वे सब आपको संतुष्ट नहीं कर सकेंगे।करना है तो भोगों को प्राप्त करने की कामना का त्याग करें फिर मन और इंद्रियों को नियंत्रण में करने का प्रयास भी नहीं करना पड़ेगा।आपकी कामना, चाहना कभी पूरी नहीं होगी क्योंकि एक के पूरी होने से पहले नई चाहना उत्पन्न हो जाएगी। चाहना के बंधन से मुक्त होने का यह एक मार्ग होगा कि मन में किसी प्रकार की चाहना ही न बने।फिर ये मन, इन्द्रियां, बुद्धि आदि को नियंत्रित करने की बातें बेमानी हो जाएगी क्योंकि इनको वश में करने के लिए बहुत प्रयास करना पड़ता है और अंत में यह प्रयास प्रायः असफल ही सिद्ध होता है।
कल समापन कड़ी
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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