अविरल जीवन (Life is continuous)-14
हम भौतिकता के जाल में इस स्तर तक उलझ गए हैं कि इस मनुष्य जन्म के जीवन को एक मात्र जीवन समझ रहे हैं | शरीर के समाप्त हो जाने के बाद यह जीवन भी समाप्त हो जायेगा और इस जीवन के बाद न तो नया कोई जन्म है और न ही जीवन | ऐसी मानसिकता वाले जीवन को एक जन्म तक ही मानते हैं | इस जीवन के रूप को हम ‘साधारण जीवन’ अथवा केवल "जीवन" कह सकते हैं, जिसका प्रारम्भ एक शरीर के जन्म के साथ होता है और उस शरीर की समाप्ति के साथ अंत | ऐसी मानसिकता के लोग पुनर्जन्म में कतई विश्वास नहीं रखते हैं और एक जन्म के बाद जीवन की समाप्ति हो जाना स्वीकार करते हैं |
दूसरी मानसिकता के व्यक्ति पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं और एक शरीर के त्याग देने के बाद दूसरे शरीर में हो रहे जीवन के प्रवाह को मानते भी हैं | ऐसी मानसिकता वाले लोगों के अनुसार हम जीवन के इस रूप को ‘महाजीवन’ कह सकते हैं | महाजीवन को मानने वाले व्यक्ति यह मानते हैं कि हमारी देह की समाप्ति के बाद भी हम वही बने रहते हैं और नया शरीर प्राप्त कर जीवन की धारा को अविरल बनाये रखते हैं | शरीर की समाप्ति और नया शरीर प्राप्त करते रहने की इस श्रृंखला का कहीं अंत नहीं होता | यही कारण है कि ऐसे जीवन को साधारण जीवन न कहकर महाजीवन कहा गया है | मोक्ष की कल्पना ऐसी मानसिकता रखने वाले व्यक्तियों ने की ही नहीं है |
मैं यह तो नहीं कह सकता कि महाजीवन ही जीवन का अविरल होना है क्योंकि इससे यह सिद्ध हो सकता है कि जब तक शरीर है तब तक जीवन है, शरीर की समाप्ति के बाद नहीं | जबकि वास्तविकता यह है कि शरीर के बाद भी जीवन रहता है और शरीर से पहले भी जीवन था | अगर शरीर के पूर्व और उत्तर में जीवन नहीं होता तो फिर इस शरीर की प्राप्ति भी कैसे होती ? शरीर तो जीवन की अभिव्यक्ति मात्र है परन्तु केवल शरीर का होना ही जीवन होना नहीं है | फिर प्रश्न उठता है कि शरीर के अभाव में जीवन कहाँ है ? आइये, आगे बढ़ते हैं, इस जीवन की वास्तविकता को जानने और उसे स्वीकार करने की दिशा में |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
हम भौतिकता के जाल में इस स्तर तक उलझ गए हैं कि इस मनुष्य जन्म के जीवन को एक मात्र जीवन समझ रहे हैं | शरीर के समाप्त हो जाने के बाद यह जीवन भी समाप्त हो जायेगा और इस जीवन के बाद न तो नया कोई जन्म है और न ही जीवन | ऐसी मानसिकता वाले जीवन को एक जन्म तक ही मानते हैं | इस जीवन के रूप को हम ‘साधारण जीवन’ अथवा केवल "जीवन" कह सकते हैं, जिसका प्रारम्भ एक शरीर के जन्म के साथ होता है और उस शरीर की समाप्ति के साथ अंत | ऐसी मानसिकता के लोग पुनर्जन्म में कतई विश्वास नहीं रखते हैं और एक जन्म के बाद जीवन की समाप्ति हो जाना स्वीकार करते हैं |
दूसरी मानसिकता के व्यक्ति पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं और एक शरीर के त्याग देने के बाद दूसरे शरीर में हो रहे जीवन के प्रवाह को मानते भी हैं | ऐसी मानसिकता वाले लोगों के अनुसार हम जीवन के इस रूप को ‘महाजीवन’ कह सकते हैं | महाजीवन को मानने वाले व्यक्ति यह मानते हैं कि हमारी देह की समाप्ति के बाद भी हम वही बने रहते हैं और नया शरीर प्राप्त कर जीवन की धारा को अविरल बनाये रखते हैं | शरीर की समाप्ति और नया शरीर प्राप्त करते रहने की इस श्रृंखला का कहीं अंत नहीं होता | यही कारण है कि ऐसे जीवन को साधारण जीवन न कहकर महाजीवन कहा गया है | मोक्ष की कल्पना ऐसी मानसिकता रखने वाले व्यक्तियों ने की ही नहीं है |
मैं यह तो नहीं कह सकता कि महाजीवन ही जीवन का अविरल होना है क्योंकि इससे यह सिद्ध हो सकता है कि जब तक शरीर है तब तक जीवन है, शरीर की समाप्ति के बाद नहीं | जबकि वास्तविकता यह है कि शरीर के बाद भी जीवन रहता है और शरीर से पहले भी जीवन था | अगर शरीर के पूर्व और उत्तर में जीवन नहीं होता तो फिर इस शरीर की प्राप्ति भी कैसे होती ? शरीर तो जीवन की अभिव्यक्ति मात्र है परन्तु केवल शरीर का होना ही जीवन होना नहीं है | फिर प्रश्न उठता है कि शरीर के अभाव में जीवन कहाँ है ? आइये, आगे बढ़ते हैं, इस जीवन की वास्तविकता को जानने और उसे स्वीकार करने की दिशा में |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
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