कभी कभी अध्यात्म की तात्विक बातों से बाहर निकलकर अवलोकन करना चाहिए कि इस पावन धरा पर सनातन धर्म की रक्षा और देश को स्वतंत्रता दिलाने में किन योद्धाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।आज मैं उनमें से ही एक योद्धा के बारे में बात करने जा रहा हूँ, जो एक नारी होते हुए भी स्वाभिमान और देश के लिए जीवन भर संघर्ष रत रही। बचपन में मां चल बसी, एक मात्र पुत्र भी अपने जीवन के प्रथम तीन माह भी सांस न ले सका और इतना ही नहीं,पुत्र वियोग से निकल ही नहीं पाई थी कि पति चल बसे। ऐसे में अपनी मातृभूमि की रक्षा करने का भार नाज़ुक कलाइयों पर आ गया।भारत भूमि वीरों की भूमि है।यहां पर नारियां जौहर भी करती है और शत्रुओं के दांत खट्टे भी। चलिए!आज बात करते हैं,उस नारी योद्धा की जिसने वाराणसी की धरा पर जन्म लिया।
वाराणसी, केवल भगवान और भक्तों की नगरी ही नहीं है अपितु यहां की वीर प्रसूताओं ने योद्धाओं को भी पैदा किया है। आपका सिर गर्व से आसमान को छूने लगता है, जब आपका सामना होता है,"मैं अपनी झांसी नही दूँगी" कहने वाली वीर योद्धा नारी की जन्म स्थली पर लगी उनकी मूर्ति से।क्या मूर्ति बनाई है, कलाकार ने? लगता है घोड़े पर सवार हुई यह वीर नारी अपने हाथ में लहरा रही इस नंगी तलवार से सामने पड़ने वाले सभी शत्रुओं के सर काट डालेगी।दत्तक पुत्र भी पीठ पर सवार होकर अपनी मां का हौसला बढ़ा रहा प्रतीत होता है।सतत नमन करते रहने का मन करता है, इस मूर्ति को। बूढ़ी हो रही बाजुएं भी फड़क उठती है, इस वीर नारी की गाथा को पढ़कर, जिसे एक पत्थर पर यहां उकेरा गया है।"खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी",सुभद्रा कुमारी चौहान जी, सत्य को काव्य के माध्यम से इतने शानदार रूप में आपके अतिरिक्त कोई अन्य प्रस्तुत नहीं कर सकता था। एक नारी ही दूसरी नारी के भावों को लेखनी के माध्यम से अभिव्यक्त कर सकती है।अब तो अंग्रेज़ देश छोड़कर चले गए हैं परंतु यह सत्य है कि उस 1857 की क्रांति के दौर में केवल डलहौजी ही क्यों, कोई भी शत्रु रानी लक्ष्मीबाई के रहते चैन से नहीं सो सका था। रात को सपनों में भी उन्हें रानी लक्ष्मीबाई घोड़े पर नंगी तलवार लेकर अपनी तरफ लपकती नज़र आती थी। लिखने को तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है परंतु जितना भी लिखूंगा, ऐसे महान व्यक्तित्व के सामने वह तुच्छ ही होगा। मैं अब उठता हूँ इस पावन स्थल से और चलता हूँ, पास ही स्थित गंगा घाट की ओर, गंगा घाट की उस मिट्टी को उठाकर अपने मस्तक पर लगाने को, जहाँ बचपन में मनु (लक्ष्मी बाई)खूब खेली होगी ।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
वाराणसी, केवल भगवान और भक्तों की नगरी ही नहीं है अपितु यहां की वीर प्रसूताओं ने योद्धाओं को भी पैदा किया है। आपका सिर गर्व से आसमान को छूने लगता है, जब आपका सामना होता है,"मैं अपनी झांसी नही दूँगी" कहने वाली वीर योद्धा नारी की जन्म स्थली पर लगी उनकी मूर्ति से।क्या मूर्ति बनाई है, कलाकार ने? लगता है घोड़े पर सवार हुई यह वीर नारी अपने हाथ में लहरा रही इस नंगी तलवार से सामने पड़ने वाले सभी शत्रुओं के सर काट डालेगी।दत्तक पुत्र भी पीठ पर सवार होकर अपनी मां का हौसला बढ़ा रहा प्रतीत होता है।सतत नमन करते रहने का मन करता है, इस मूर्ति को। बूढ़ी हो रही बाजुएं भी फड़क उठती है, इस वीर नारी की गाथा को पढ़कर, जिसे एक पत्थर पर यहां उकेरा गया है।"खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी",सुभद्रा कुमारी चौहान जी, सत्य को काव्य के माध्यम से इतने शानदार रूप में आपके अतिरिक्त कोई अन्य प्रस्तुत नहीं कर सकता था। एक नारी ही दूसरी नारी के भावों को लेखनी के माध्यम से अभिव्यक्त कर सकती है।अब तो अंग्रेज़ देश छोड़कर चले गए हैं परंतु यह सत्य है कि उस 1857 की क्रांति के दौर में केवल डलहौजी ही क्यों, कोई भी शत्रु रानी लक्ष्मीबाई के रहते चैन से नहीं सो सका था। रात को सपनों में भी उन्हें रानी लक्ष्मीबाई घोड़े पर नंगी तलवार लेकर अपनी तरफ लपकती नज़र आती थी। लिखने को तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है परंतु जितना भी लिखूंगा, ऐसे महान व्यक्तित्व के सामने वह तुच्छ ही होगा। मैं अब उठता हूँ इस पावन स्थल से और चलता हूँ, पास ही स्थित गंगा घाट की ओर, गंगा घाट की उस मिट्टी को उठाकर अपने मस्तक पर लगाने को, जहाँ बचपन में मनु (लक्ष्मी बाई)खूब खेली होगी ।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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