Tuesday, December 25, 2018

अविरल जीवन(Life is continuous)-8

अविरल जीवन (Life is continuous)-8 
        गर्भावस्था समाप्त होने पर शिशु जन्म लेता है जो समय पाकर बालक, किशोर, युवा, प्रोढ़ और वृद्धावस्था को प्राप्त होता है | जीवन एक ही है परन्तु उसी एक जीवन में यह सब शरीर की भिन्न-भिन्न अवस्थाएं हैं | वृद्धावस्था में शरीर जर्जर हो जाता है | यह जीर्ण शीर्ण शरीर भी उस जीवन के अविरल प्रवाह को नहीं रोक पाता है | हाँ, वृद्ध शरीर अवश्य ही असहाय हो जाता है और अंततः मृत्यु को प्राप्त हो जाता है परन्तु जीवन नहीं मरता | शारीरिक मृत्यु हो जाने के बाद भी जीवन बिना रुके झुके किसी अन्य स्त्री के गर्भ में पल बढ़ रही नई देह में प्रवेश पाकर पुनः स्पंदित होने लगता है |
          अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर अविरल चल रहा यह जीवन जीता कौन है ? कोई न कोई तो इस अविरल बह रहे जीवन के साथ चल रहा है, वह कौन है, इस जीवन का संगी-साथी कौन है ? गीता के दूसरे अध्याय के ऊपर वर्णित इस 13 वें श्लोक में भगवान इस प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं | वे कह रहे हैं कि जीवन एक ही है, शरीर की अवस्थाएं भिन्न – भिन्न अवश्य है | शरीर में हो रहे अवस्था परिवर्तन को देखकर धीर पुरुष मोहित नहीं होता | यह पुरुष ही विभिन्न शरीरों के माध्यम से अविरल बह रहे इस जीवन को जीता है |
             भगवान कह रहे हैं कि शरीर की बदल रही अवस्थाओं को देखकर धीर पुरुष मोहित नहीं होता | धीर पुरुष अर्थात जिसके पास धैर्य है | धैर्यवान पुरुष शरीर की दिन प्रतिदिन बदल रही अवस्थाओं को देखकर दुःखी नहीं होता | शरीर के प्रति मोह रखने के कारण अवस्थाओं में परिवर्तन ही व्यक्ति को दुःखी करता है | हमें यह समझना होगा कि जीवन परिवर्तित नहीं हो रहा है बल्कि सभी परिवर्तन केवल शरीर में हो रहे हैं | अधीर पुरुष शारीरिक मोह में पड़े रहते हैं और इसी कारण से इस शरीर को ही जीवन का अंतिम सत्य मानकर एक ही जीवन होने की अवधारणा में विश्वास रखते हुए परमात्मा के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम् ||

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