Thursday, December 20, 2018

अविरल जीवन (Life is continuous)-3

अविरल जीवन (Life is continuous)-3
            दूसरे शिशु ने उत्तर दिया-“इस बारे में बहुत अधिक तो नहीं जानता परन्तु इतना अवश्य जानता हूँ कि इस दुनिया से बाहर की दुनिया में प्रकाश कहीं अधिक है | वहां हम अपने पैरों पर खड़े होकर चल भी सकते हैं और इस छोटे से मुंह से सब कुछ खा पी भी सकते हैं | कुछ दूसरी इन्द्रियों से नए अनुभव भी हमें प्रसव के बाद ही होंगे जिन्हें हम अभी अनुभव नहीं कर सकते |”
     यह सुनकर पहला शिशु कुछ उत्तेजित हो गया और बोला – “कैसा पागलपन है यह ? यह बहुत ही बेहूदा बात है | स्वयं के पैरों से चलना, असंभव | अपने मुंह से खाना तो और भी असंभव | ऐसा होना कल्पना में भी असंभव है | हमें अभी जितना भोजन हमारे पोषण के लिए आवश्यक है, वह हमें गर्भ में इस शिशु नाल से मिल ही रहा है | हाँ, हमारी यह शिशु नाल छोटी अवश्य है | इस आधार पर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि प्रसव के उपरान्त जीवन हो ही नहीं सकता | जीवन इस गर्भ में शिशु नाल के रहते हुए ही संभव है, बाद में नहीं |”
        दूसरा शिशु यह सुनकर मुसकुराया और बोला-“तुम सत्य कहते हो भाई कि हम पोषण गर्भ में इस शिशु नाल से प्राप्त कर रहे हैं, परन्तु मेरी सोच तुमसे भिन्न है | मेरा मानना है कि बाहर की दुनियां यहाँ की दुनिया से बहुत ही अलग है | यहाँ से बाहर निकल जाने के बाद इस शिशु नाल की भी शायद हमें आवश्यकता ही नहीं रहेगी |”
        पहले ने उत्तर दिया –“क्या बेवकूफों जैसी बातें कर रहे हो | अगर बाहर जीवन है, तो फिर वहां से भीतर कोई वापिस क्यों नहीं आता ? भैया ! यही सत्य है कि प्रसव ही हमारे जीवन का अंत है | प्रसव के बाद केवल अन्धकार, नीरवता और विस्मरण के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं रहेगा |” प्रसव हमें नए जीवन की और तो क्या, वह हमें कहीं पर भी नहीं ले जाता | इस संसार में केवल यह जीवन ही एक मात्र जीवन है, इसके उपरांत कोई जीवन नहीं है |”
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||

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