Wednesday, December 26, 2018

अविरल जीवन(Life is continuous)-9

अविरल जीवन (Life is continuous)-9 
            नदी का अविरल प्रवाह जल की उपलब्धता पर निर्भर करता है | जल के अभाव में जल प्रवाह भी रूक जाता है और नदी के नदी होने का अस्तित्व भी मिट जाता है | इसी प्रकार जीवन का प्रवाह भी जीव पर आधारित है | जब तक जीव शरीर में है तभी तक उस शरीर में जीवन है | जीव के शरीर को त्यागते ही उसमें से जीवन भी निकल जाता है और अभी तक जीवित कहलाने वाला शरीर निर्जीव शरीर कहलाने लगता है | इसका अर्थ हुआ कि जीवन जीव की उपस्थिति पर आधारित है | अब प्रश्न उठता है कि जीव क्या है ? जीव की उपस्थिति ही शरीर में स्पंदन पैदा करती है और उस स्पंदन का नाम ही जीवन है | जीव भी शरीर की तरह ही प्रकृति का एक सृजन है | जीव ही इस भौतिक संसार का आधार है, अकेला शरीर नहीं | शरीर का अस्तित्व और उसके होने की सार्थकता भी जीव के कारण है अन्यथा जीव के अभाव में शरीर की कोई उपयोगिता नहीं है | जीव का सृजन प्रकृति अवश्य करती है परन्तु जब तक उसके साथ एक और तत्व आकर सम्मिलित नहीं होता तब तक अकेला जीव उस भौतिक शरीर में जीवन तो ला सकता है परन्तु उसे सक्रिय नहीं कर सकता | निष्क्रिय शरीर सजीव होकर जीवन को अभिव्यक्त तो कर सकता है परन्तु अपने सृजन का उद्देश्य पूरा नहीं कर सकता | शरीर में स्थित जीव के उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसमें परमात्मा के एक अंश का आ मिलना आवश्यक है | परमात्मा के उस अंश को आत्मा कहा जाता है | आत्मा केवल कहा ही जाता है, वास्तव में वह परमात्मा ही है।आत्मा जीव के साथ संयोग कर जीवात्मा बनाता है और जीवात्मा युक्त शरीर में जीवन आ जाने से वह सक्रिय भी हो उठता है | सक्रिय शरीर ही के कारण जीव अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो सकता है, अन्यथा नहीं |
              इतने विश्लेषण के बाद यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि शरीर क्या है ? उस शरीर में जीव के प्रवेश करने पर ही जीवन आता है, जीवन अविरल बहता रहता है, शरीर समाप्त हो सकता है, जीवन और जीव नहीं | शरीर में जीव के प्रवेश पाने के बाद भी उसमें परमात्मा के अंश आत्मा के प्रवेश करने से ही जीवन में सक्रियता आ सकती है | सक्रिय जीवन से ही जीव अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता है | जीव और आत्मा का संयोग होने पर वह जीवात्मा कहलाता है | अतः जीवात्मा ही जीवन का एकमात्र आधार है | शरीर में जीवात्मा रहते हुए भी दोनों एक दूसरे से भिन्न हैं | उनका एक होना कभी भी संभव नहीं है क्योंकि शरीर में अवस्था परिवर्तन होता रहता है जबकि जीवात्मा और जीवन, दोनों ही अवस्था परिवर्तन से अछूते रहते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम् ||

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