Tuesday, December 11, 2018

सारनाथ-वाराणसी

वाराणसी से 14 किलोमीटर की दूरी पर एक पवित्र स्थल है -सारनाथ।सारनाथ में भगवान बुद्ध के मंदिर हैं। बहुत ही सुंदर स्थान है, सारनाथ। गगनचुम्बी बुद्ध प्रतिमा एक पार्क में स्थित है, जो दूर से ही दिखाई पड़ जाती है। पार्क व्यवस्थित है, साफ सफाई और व्यवस्था पवित्र स्थान के अनुसार ही है। मंदिर और बौद्ध विहार की व्यवस्था प्रशंसनीय है। इन सभी की व्यवस्था तिब्बती लोगों के हाथ मे है, जो कि भगवान बुद्ध के अनुयायी हैं।
       श्रीमद्भागवत महापुराण में दशावतार का उल्लेख है, उसके अनुसार भगवान बुद्ध परमपिता के नवें अवतार हुए हैं आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण थे। एक राजघराने में पैदा हुए और पले बढ़े सिद्धार्थ नाम के पुरुष ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश भी किया, पुत्र भी हुआ परंतु सांसारिक दुखों से जीवन को कैसे मुक्त रखा जाए, उसका यह प्रश्न उनके लिए सदैव अनुत्तरित ही रहा। सत्य की खोज में उन्होंने राज पाट, घर बार, पत्नी पुत्र सब कुछ छोड़ छाड़ कर जंगल में जाने का निश्चय किया। जंगल मे कई गुरुकुल और आश्रमों को छान डालने के बाद भी उनका प्रश्न अनुत्तरित ही रहा।पांच पंडितों के बतलाये अनुसार सब कर्म कांड भी किए, यहां तक कि कठोर व्रतादि कर शरीर को कष्ट भी दिया परंतु सब व्यर्थ। दुःख से मुक्त हो जाने की कोई राह नहीं मिली। थक हारकर  सब क्रियाओं से मुक्ति पा लेने का निश्चय किया, सब इच्छाओं का त्याग कर दिया,यहां तक कि जीवन में दुःख नहीं रहे,इस इच्छा का भी त्याग कर दिया।सब इच्छाओं का त्याग करते ही आत्म बोध को उपलब्ध हो गए।सुबह सुबह सुजाता के हाथों मिली खीर ने कई दिन से भूखे सिद्धार्थ को भीतर तक तृप्त कर दिया। क्षुधा तृप्ति के बाद, सुजाता ने नाम पूछा परंतु आज तो सिद्धार्थ विगत सब कुछ भूल चुका था।सुजाता ने ही उस तृप्तात्मा को नाम दिया-बुद्ध। शांत सौम्य बुद्ध की तो जैसे वाणी ही चली गयी।मौन ही मौन, बाहर भीतर मौन,संसार के सभी दु:खों से दूर । मौन व्यक्ति क्या तो बोले और किससे बोले? उठ कर चल देते हैं, बिना किसी लक्ष्य के।
      आज यही सिद्धार्थ, बुद्ध बनकर लौटता है और पहुंचता है, वाराणसी। वहीं मिलते है, वही पांच पंडित। बुद्ध के शांत भाव पूर्ण व्यक्तित्व को देखकर समझ जाते हैं कि इस व्यक्ति को वह सब कुछ मिल गया है, जो विभिन्न क्रियाओं को करने के बाद भी उन्हें आज तक नहीं मिल पाया। पांचों पूछ बैठे,बुद्ध शांत । बहुत आग्रह पर आत्मज्ञान होने के बाद पहली बार बोलते हैं तथागत उन्हीं पांच पंडितों से जिन्होंने कभी सिद्धार्थ को ज्ञान दिया था।आज उसके ठीक विपरीत पांचों पंडित उनसे ज्ञान ले रहे हैं । पहली बार आज पांचों पंडितों ने धार्मिक ग्रंथों से ऊपर उठकर नई सोच के लिए अपने मस्तिष्क के द्वार खोले।सुनकर चकित रह गए, सब कुछ पाना इतना सरल है ।जीवन के सार की बात सुनी पहली बार कि इच्छाओं से मुक्ति ही दुःखों से मुक्ति है।पांचों पंडितों ने तथागत को प्रणाम किया और आज सर्वप्रथम परम ज्ञान का सार सुनकर बोल पड़े -"जीवन का सार समझाने वाले,आभार है आपका ।हमारा प्रणाम स्वीकार करें, हे सारनाथ।" वाराणसी में यह स्थान जहाँ पांचों पंडितों ने बुद्ध से ज्ञान लिया,वह कहलाया सारनाथ। इसी दिन से सारनाथ बन गया,तथागत का उपदेश स्थल।वाराणसी में आदि देव काशी विश्वनाथ और परमात्मा के नवें अवतार भगवान बुद्ध दोनों विराजते हैं।परम सौभाग्य है, हम भारतीयों का कि हमनें इस पावन भारत भूमि पर जन्म लिया।
जय काशी विश्वनाथ।बुद्धं शरणं गच्छामि।।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम् ।।

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