अविरल जीवन (Life is continuous)-4
“ठीक है, मैं अधिक नहीं जानता | परन्तु यह निश्चित है कि यहाँ से बाहर निकलने पर हम हमारी जननी अर्थात माँ से मिलेंगे | मां हमें अपनी गोद में लेकर हमारी बहुत अच्छी प्रकार से देखभाल करेगी | मां ही हमारे जीवन का मूलभूत आधार है |” दूसरे शिशु ने उत्तर दिया | इस बात को सुनकर पहला शिशु बोला - “मां ! कौन है यह, मां कैसी होती है ? क्या तुम मां के होने पर सचमुच में विश्वास करते हो ? हा - हा- हा, कितना हास्यास्पद है यह सब ? अगर वास्तव में मां होती है, तो बताओ वो अभी कहाँ पर है ? मुझे तो दिखाई नहीं देती |”
दूसरा शिशु कह रहा है - “वह अभी और इस समय भी हमारे पास है | उसने ही तो हमें चारों ओर से अपने सुरक्षा घेरे में ले रखा है | हम उसके घेरे में सुरक्षित रहकर यह जीवन जी रहे हैं | मां ने स्वयं के भीतर हमें समेट रखा है | हम उसी मां के ही तो अंश हैं | एक माँ के बिना इस संसार का न तो कभी अस्तित्व ही था, न है और न ही भविष्य में कभी रहेगा |”
पहला बोला –“ मैंने तो पहले कभी भी ऐसी किसी मां को नहीं देखा है | जो हमें स्वयं की आंखों से दिखाई नहीं देती, उसके अस्तित्व पर आँख मूंदकर कैसे विश्वास किया जा सकता है ? अतः यह स्वतः सिद्ध है कि इस संसार में मां नाम के किसी भी व्यक्ति का कोई अस्तित्व ही नहीं है |”
यह सुनकर दूसरा शिशु कुछ विनम्र होकर पहले शिशु से कह रहा है – “कुछ समय के लिए यह चंचलता त्यागकर शांत होकर बैठो और ध्यानपूर्वक कुछ सुनने का प्रयास करो | तुम्हें मां की स्नेहमय वाणी सुनाई पड़ेगी | तुम्हें हमारी मां की उपस्थिति का अलौकिक अनुभव होगा | तुम्हें अनुभव होगा जैसे ऊपर आकाश से कोई तुम्हें पुकार रहा है, तुम्हें प्यार कर रहा है |”
पहला शिशु मां के होने की बात सुन-सुन कर परेशान हो गया | उसे न दिखाई पड़ने वाली वस्तु, व्यक्ति आदि पर विश्वास नहीं हो रहा था | वह बोला-‘ तुम सुनो ध्यान से मां की वाणी, मुझे नहीं सुनना | शांत होकर बैठो, ध्यान लगाओ, सुनो, अनुभव करो-इतना करने की आफत क्यों मोल लूं मैं ? मां नहीं है, नहीं है, नहीं है |’ इतना कहकर पहला शिशु मुंह दूसरी ओर फेरकर शांत हो गया | दूसरे शिशु ने भी फिर उसे अधिक विवाद करना उचित नहीं समझा |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम् ||
“ठीक है, मैं अधिक नहीं जानता | परन्तु यह निश्चित है कि यहाँ से बाहर निकलने पर हम हमारी जननी अर्थात माँ से मिलेंगे | मां हमें अपनी गोद में लेकर हमारी बहुत अच्छी प्रकार से देखभाल करेगी | मां ही हमारे जीवन का मूलभूत आधार है |” दूसरे शिशु ने उत्तर दिया | इस बात को सुनकर पहला शिशु बोला - “मां ! कौन है यह, मां कैसी होती है ? क्या तुम मां के होने पर सचमुच में विश्वास करते हो ? हा - हा- हा, कितना हास्यास्पद है यह सब ? अगर वास्तव में मां होती है, तो बताओ वो अभी कहाँ पर है ? मुझे तो दिखाई नहीं देती |”
दूसरा शिशु कह रहा है - “वह अभी और इस समय भी हमारे पास है | उसने ही तो हमें चारों ओर से अपने सुरक्षा घेरे में ले रखा है | हम उसके घेरे में सुरक्षित रहकर यह जीवन जी रहे हैं | मां ने स्वयं के भीतर हमें समेट रखा है | हम उसी मां के ही तो अंश हैं | एक माँ के बिना इस संसार का न तो कभी अस्तित्व ही था, न है और न ही भविष्य में कभी रहेगा |”
पहला बोला –“ मैंने तो पहले कभी भी ऐसी किसी मां को नहीं देखा है | जो हमें स्वयं की आंखों से दिखाई नहीं देती, उसके अस्तित्व पर आँख मूंदकर कैसे विश्वास किया जा सकता है ? अतः यह स्वतः सिद्ध है कि इस संसार में मां नाम के किसी भी व्यक्ति का कोई अस्तित्व ही नहीं है |”
यह सुनकर दूसरा शिशु कुछ विनम्र होकर पहले शिशु से कह रहा है – “कुछ समय के लिए यह चंचलता त्यागकर शांत होकर बैठो और ध्यानपूर्वक कुछ सुनने का प्रयास करो | तुम्हें मां की स्नेहमय वाणी सुनाई पड़ेगी | तुम्हें हमारी मां की उपस्थिति का अलौकिक अनुभव होगा | तुम्हें अनुभव होगा जैसे ऊपर आकाश से कोई तुम्हें पुकार रहा है, तुम्हें प्यार कर रहा है |”
पहला शिशु मां के होने की बात सुन-सुन कर परेशान हो गया | उसे न दिखाई पड़ने वाली वस्तु, व्यक्ति आदि पर विश्वास नहीं हो रहा था | वह बोला-‘ तुम सुनो ध्यान से मां की वाणी, मुझे नहीं सुनना | शांत होकर बैठो, ध्यान लगाओ, सुनो, अनुभव करो-इतना करने की आफत क्यों मोल लूं मैं ? मां नहीं है, नहीं है, नहीं है |’ इतना कहकर पहला शिशु मुंह दूसरी ओर फेरकर शांत हो गया | दूसरे शिशु ने भी फिर उसे अधिक विवाद करना उचित नहीं समझा |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम् ||
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