Monday, December 10, 2018

माँ विंध्यवासिनी

वाराणसी से 170 किलोमीटर की दूरी पर मिर्ज़ापुर जिले में एक शहर है, विंध्याचल ।  यह शहर गंगा नदी के किनारे स्थित है।पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व तपोभूमि के रूप में वर्णित है। विंध्याचल की पहाड़ियों में गंगा की पवित्र धाराओं की कल-कल करती ध्वनि, प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरती है। विंध्याचल शहर से होकर भारतीय मानक समय (I S T) की रेखा गुजरती है।यहां पर आदिशक्ति विंध्यवासिनी का प्रसिद्ध मंदिर है।मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, माँ विन्ध्यवासिनी ने महिषासुर का वध करने के लिए अवतार लिया था।कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तप करता है, उसे अवश्य सिध्दि प्राप्त होती है।ऐसी मान्यता है कि सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता।
        त्रेता युग में भगवान श्रीरामचन्द्र सीताजीके साथ विंध्याचल आए थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वर महादेव से इस शक्तिपीठ की माहात्म्य और बढ गया है। द्वापर युग में मथुरा के राजा कंस ने जब अपने बहन-बहनोई देवकी-वसुदेव को कारागार में डाल दिया और वह उनकी सन्तानों का वध करने लगा। तब वसुदेवजीके कुल-पुरोहित गर्ग ऋषि ने कंस के वध एवं श्रीकृष्णावतार हेतु विंध्याचल में लक्षचण्डी का अनुष्ठान करके देवी को प्रसन्न किया। जिसके फलस्वरूप वे गोकुल में नन्दराय के यहाँ अवतरित हुई।
          श्रीमद्भागवत महापुराण के श्री कृष्ण जन्म वृत्तान्त में भी यह बात वर्णित है कि देवकी के आठवें गर्भ से अवतार लिए श्रीकृष्ण को वसुदेवजीने कंस के भय से रातों रात यमुनाजीके पार गोकुल में नन्दजीके घर पहुँचा दिया तथा वहाँ यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं भगवान की शक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा ले आए। आठवीं संतान के जन्म का समाचार सुन कर कंस कारागार में पहुँचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर जैसे ही पटक कर मारना चाहा, वैसे ही वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुँच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित किया। कंस के वध की भविष्यवाणी करके भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई।
      इस पावन तीर्थ स्थल पर भी भीड़ बहुत रहती है, जिसका फायदा पंडे उठाने का प्रयास करते हैं।जिसके कारण श्रद्धालुओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।जिस स्थल पर विंध्यवासिनी का निवास है, वहां श्रद्धालुओं के भक्ति भाव को ठेस नहीं पहुंचे, सभी का यह प्रयास रहना चाहिए।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम् ।।

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