Sunday, December 16, 2018

अभ्यास और ज्ञान

अभ्यास से व्यक्ति इंद्रियों को वश में कर सकता है परंतु इस अभ्यास के लिए उसे प्रेरित करता है, ज्ञान।ज्ञान मिलता है, संतों के साथ सत्संग करने से और शास्त्रों के अध्ययन से । शास्त्रों का अध्ययन हमें भले बुरे में अंतर स्पष्ट करता है, धर्म अधर्म और पाप पुण्य में अंतर स्पष्ट करता है। शास्त्रों के अध्ययन से उपजी जिज्ञासा को संत अथवा गुरु शांत करते हैं।जब एक बार प्राप्त ज्ञान को मनुष्य विवेक में परिवर्तित कर लेता है, तब जाकर वह बार बार के अभ्यास से अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण स्थापित करते हुए मन को वश में करने में सफल हो सकता है।
      मन और इंद्रियों के वश में होते ही कामनाओं और इच्छाओं का तूफान भी शांत होने लगता है। मन के एक बार वश में आ जाने पर फिर मनुष्य विवेक का अनादर कर ही नहीं सकता, फिर उसके द्वारा केवल सत्कर्म ही होंगे। फिर वह अधर्म के मार्ग पर जा ही नहीं सकता। मन चंचल है, यह कभी भी पुनः भटक सकता है।मन को बार बार भटकने से रोकने के लिए मनुष्य को वैराग्य धारण करते हुए निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।एक बार मन वश में हो गया इसका अर्थ यह नहीं है कि फिर इस जीवन में वह कभी भटकेगा ही नहीं। नारद ने काम को जीत लिया था फिर भी विश्वमोहिनी के जाल में उसका मन उलझ ही गया।अगर वे निरंतर मन में वैराग्य धारण किये रहते और अभ्यास रत रहते तो यह भटकाव होता ही नहीं।अतः अपने जीवन में सदैव राग से दूर रहें और इंद्रियों,मन और इच्छाओं को नियंत्रण में रखने का अभ्यास करना न छोड़ें।
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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