Sunday, December 30, 2018

अविरल जीवन(Life is continuous)-13

अविरल जीवन (Life is continuous)-13
      इतने विवेचन के बाद यह स्पष्ट है कि परमात्मा का अस्तित्व स्वीकार करना केवल श्रद्धा और विश्वास पर आधारित है | उसके अस्तित्व को सिद्ध करने का प्रयास करना जल में से मख्खन निकालने के समान है।जिस प्रकार गर्भावस्था में मां दिखलाई नहीं पड़ती फिर भी मां के अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता उसी प्रकार भौतिक नेत्रों से न दिखलाई देने पर भी श्रद्धा और विश्वास के साथ माना जा सकता है कि परमात्मा का अस्तित्व है |
         इसी प्रकार जीवन के बारे में भी एक प्रकार की अस्पष्टता बनी हुई है | इसका कारण है कि हम शरीर की मृत्यु के बाद के जीवन को सही दृष्टि से देख ही नहीं पा रहे हैं | "जीवन" विषय पर कुछ प्रश्न आये हैं इस सम्बन्ध में, उनका निराकरण होने से ही जीवन को हम और अधिक स्पष्ट रूप से समझ पाएंगे | प्रथम प्रश्न है - जीवन निरन्तरता लिए हुए है अर्थात प्रत्येक देह परिवर्तन के साथ जीवन वही रहता है अथवा नई देह में जाकर नया जीवन मिलता है ? दूसरा प्रश्न है कि जब जीव का मोक्ष हो जाता है, तब भी क्या जीवन बना रहता है ? दोनों ही प्रश्न बड़े ही महत्वपूर्ण है | दोनों ही प्रश्न एक दूसरे से सम्बंधित भी है | सम्बंधित इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि जीवन के अविरल प्रवाह पर कम से कम मुझे तो किसी भी प्रकार का कोई संदेह नहीं है |   
            संसार में रहते हुए हमारे पास जो यह शरीर है, उसमें जीवन है | इस एक शरीर की मृत्यु हो जाने पर किसी दूसरे शरीर में हमारा पुनर्जन्म होता है, वहां उस दूसरे शरीर में भी निश्चित ही जीवन होगा | इस बात को तो साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से समझ सकता है | परन्तु मोक्ष हो जाने के बाद तो पुनर्जन्म होना संभव ही नहीं है, ऐसे में भला जीवन कहाँ और कैसे होगा ?
           दोनों ही प्रश्नों का उत्तर भी एक ही है | हाँ, यह सत्य है कि जीवन भी कभी नष्ट नहीं होता | जैसे आत्मा अक्षर है, परमात्मा अक्षर हैं वैसे ही जीवन भी अक्षुण्ण है | साधारण रूप से देखने पर यह कथन सही प्रतीत नहीं होता परन्तु सत्य यही है | हम जीवन को मात्र अनुभव करने की बात मानते हैं परन्तु भौतिक अनुभव से भी आगे की बात है, इस जीवन को समझना | सरलता से समझने के लिए जीवन को हम तीन रूपों में विभक्त कर सकते हैं | जीवन के तीन रूप हमारी ही मानसिकता के आधार पर बताये गए हैं अन्यथा जब जीवन एक है तो फिर इसके रूप अलग-अलग कैसे हो सकते हैं? मानसिकता के आधार पर निर्धारित इस जीवन के तीन रूपों को समझ लेने के उपरांत जीवन के बारे में हमारी बनी सभी भ्रान्तियां दूर हो जाएगी |आइए!चलते हैं, जीवन के अविरल प्रवाह को समझने।
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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