Tuesday, December 18, 2018

अविरल जीवन (Life is continuous)-1

आज गीता जयंती है।आज ही के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में दोनों ओर खड़ी सेनाओं के मध्य अर्जुन को दिव्य ज्ञान दिया। उस ज्ञान को केवल अर्जुन ही आत्मसात कर सके। आप भी अर्जुन बने और इस शास्त्र में समाहित ज्ञान को आत्मसात करने का प्रयास करें।इस पुनीत अवसर पर आप सभी को  शुभकामनाएं ।
अविरल जीवन ((Life is continuous)-1-
      इस संसार के कथित बुद्धिजीवी भारत के दर्शन का मखौल उड़ाते हुए कहते हैं कि इस देश में भगवान के अस्तित्व में विश्वास रखने के कारण यहाँ के व्यक्ति कर्म करने से जी चुराते हैं, जिसके कारण से यहाँ विकास नहीं हो पा रहा है | विकास नहीं हो पा रहा है, कहने का अर्थ है कि हम अभी भी सृष्टि की प्रारम्भिक अवस्था अर्थात आदि मानव के रूप में ही जी रहे हैं | नहीं जी, हम पहले भी पूर्ण रूप से विकसित थे और आज भी है, बस अंतर केवल इतना सा है कि विनाश की ओर जा रहे संसार के लोगों को हम अविकसित लग रहे हैं | विकास क्या है, इसकी परिभाषा भोग वादियों ने बदल कर रख दी है | विकास केवल भोग सामग्री उपलब्ध कराने के क्षेत्र में हुआ है आध्यात्मिक क्षेत्र में नहीं | जीवन में भोग हमें अशांत ही करते हैं यही कारण है कि आज हम सभी का जीवन अशांत हो रखा है | जीवन में शांति चाहिए तो भारतीय दर्शन को अपनाना होगा, पुनः उसकी और लौटना होगा |
           संसार में जितने भी प्राणी है, वे सब जीवन की अभिव्यक्ति मात्र है | प्रत्येक प्राणी का अपना एक जीवन होता है | भौतिकता वादी कहते हैं कि भौतिक देह की मृत्यु हो जाने के उपरांत प्राणी को कोई नया जीवन नहीं मिलता | इसलिए जितना सुख इस जीवन के रहते, इस संसार में रहते हुए प्राप्त कर सकते हो कर लें | न तो इस जीवन के बाद किसी को नयी देह मिलनी है और न ही कोई इस एक जीवन के अतिरिक्त भविष्य में कोई अन्य जीवन है | ‘There is no life after life’  कथित बुद्धिजीवियों का यही मत है |
                 मेरा इन कथित बुद्धिजीवियों से एक ही प्रश्न है- क्या हमें जो कुछ भी इन भौतिक नेत्रों से दिखलाई पड़ रहा है, सत्य केवल इतना सा ही है ? नहीं, सत्य को केवल इतने मात्र से ही व्यक्त नहीं किया जा सकता | सत्य आज की हमारी कल्पना से भी विराट् है | हम उस महान संस्कृति के वाहक है, उन महान ऋषि-मुनियों की संतान है, जिनकी दृष्टि दृश्य का भी उल्लंघन कर सकती है | दृश्य से परे भी कुछ है, जो हमें भौतिक चक्षुओं से दिखलाई नहीं दे सकता | किसी एक शरीर में जन्म हो जाना ही उसका एक मात्र जीवन नहीं है | जीवन तो अविरल है, जीवन की धारा तो सतत प्रवाहित होती रहती है, यह जन्म तो उसका एक छोटा सा पड़ाव है | व्यक्ति अथवा प्राणी के जन्म भिन्न-भिन्न हो सकते हैं परन्तु जीवन सदैव एक ही रहता है | जीवन तो उस नदी की अविरल बहती धारा के समान है जो कभी भी रूक नहीं सकती और अपने मूल स्रोत तक पहुँचना ही जिसका एक मात्र लक्ष्य होता है | भला पश्चिम की भोग वादी संस्कृति को मानने वाले हमारी उच्च स्तर की संस्कृति को इतनी सुगमता और शीघ्रता से कैसे समझ सकते हैं ? इस संस्कृति को समझने के लिए प्रथमतः तो उन्हें परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास करना होगा और उसके बाद ही उन्हें जीवन की अविरलता और निरंतरता समझ में आएगी अन्यथा नहीं |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||

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