जीवन क्या है ? इसको हममें से कोई कोई ही समझ पाया है अन्यथा तो हम सभी एक ही ढर्रे पर चलते हुए अपना जीवन बिता रहे हैं। बिताना ही क्या, यह कह सकता हूँ कि जीवन को एक प्रकार से ढो ही रहे हैं।शरीर की मृत्यु के साथ जीवन समाप्त हो जाएगा, यह सोचना ही हमारी सबसे बड़ी भूल है। जीवन कभी भी समाप्त नहीं होने वाला, जो इसको समाप्त होने वाला समझता है, वह इसे जीता नहीं है, बल्कि ढोता है।जब हमारे यह समझ में आ जायेगा कि जीवन अविरल है, सदैव के लिए है और बहता रहता है, तभी हम इसे सही मायने में जी पाएंगे ।
अभी तीन दिन पूर्व मैं अपने मेडिकल कॉलेज के सहपाठी मित्र राकेश के पुत्र के विवाह अवसर पर श्री गंगानगर में था। वहां पर 44 वर्ष पूर्व मेडिकल कॉलेज के सहपाठी मित्र प्रवीण,राजेन्द्र मीना,हरीश,फूल चंद,ओमप्रकाश,शशि आदि से मिला और हमने अध्ययन के समय के अन्य साथियों को याद किया।ऐसे ही अनेकों सहपाठियों में एक मित्र हैं, डॉ. जे.एन. वर्मा।मॉरीशस में रहते हैं, आध्यात्मिक चिंतक हैं।उन्होंने कुछ समय पूर्व एक कहानी भेजी थी, वह मुझे उस दिन स्मरण हो आई। वह कहानी है, दो जुड़वां गर्भस्थ शिशुओं के मध्य हो रहे वार्तालाप की। विषय था,क्या गर्भावस्था के बाद भी जीवन है? उसी कहानी ने मुझे प्रेरित किया है, 'जीवन' विषय पर लिखने के लिए। पहले सोचा था कि आश्रम जाकर इस विषय पर लिखूंगा,परंतु दुर्भाग्य से श्री गंगानगर से हरिद्वार जाने वाली ट्रेन 15/12 को रद्द कर दी गयी थी और मुझे वापिस जयपुर लौटना पड़ा। इस कारण से अब समय मिला है तो क्यों न इसका लाभ उठाते हुए अपने इस जीवन पर भी कुछ चिंतन कर लिया जाए। कल से जीवन पर नई श्रृंखला प्रारम्भ करने जा रहा हूँ,"अविरल जीवन" अर्थात Life is continuous. जीवन का प्रवाह सदैव बना रहता है, इसका प्रवाह अविरल है, तो आइए, कल से इस प्रवाह के साथ हम भी बहने का प्रयास करें।
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
अभी तीन दिन पूर्व मैं अपने मेडिकल कॉलेज के सहपाठी मित्र राकेश के पुत्र के विवाह अवसर पर श्री गंगानगर में था। वहां पर 44 वर्ष पूर्व मेडिकल कॉलेज के सहपाठी मित्र प्रवीण,राजेन्द्र मीना,हरीश,फूल चंद,ओमप्रकाश,शशि आदि से मिला और हमने अध्ययन के समय के अन्य साथियों को याद किया।ऐसे ही अनेकों सहपाठियों में एक मित्र हैं, डॉ. जे.एन. वर्मा।मॉरीशस में रहते हैं, आध्यात्मिक चिंतक हैं।उन्होंने कुछ समय पूर्व एक कहानी भेजी थी, वह मुझे उस दिन स्मरण हो आई। वह कहानी है, दो जुड़वां गर्भस्थ शिशुओं के मध्य हो रहे वार्तालाप की। विषय था,क्या गर्भावस्था के बाद भी जीवन है? उसी कहानी ने मुझे प्रेरित किया है, 'जीवन' विषय पर लिखने के लिए। पहले सोचा था कि आश्रम जाकर इस विषय पर लिखूंगा,परंतु दुर्भाग्य से श्री गंगानगर से हरिद्वार जाने वाली ट्रेन 15/12 को रद्द कर दी गयी थी और मुझे वापिस जयपुर लौटना पड़ा। इस कारण से अब समय मिला है तो क्यों न इसका लाभ उठाते हुए अपने इस जीवन पर भी कुछ चिंतन कर लिया जाए। कल से जीवन पर नई श्रृंखला प्रारम्भ करने जा रहा हूँ,"अविरल जीवन" अर्थात Life is continuous. जीवन का प्रवाह सदैव बना रहता है, इसका प्रवाह अविरल है, तो आइए, कल से इस प्रवाह के साथ हम भी बहने का प्रयास करें।
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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