Saturday, December 22, 2018

अविरल जीवन (Life is continuous)-5

अविरल जीवन (Life is continuous)-5 
              उन मित्रों के लिए जिन्हें भारतीय संस्कृति से पाश्चात्य संस्कृति अधिक विकसित अनुभव होती है, यह दृष्टान्त एक कहानी मात्र हो सकती है | शिशु मां के गर्भ में रहते हुए क्या और कैसी हलचल करता है, हम सब जानते हैं | इस बारे में केवल मां ही ईश्वर के बाद वह शख्सियत है जो गर्भ में पल रहे शिशु के बारे में सर्वाधिक ज्ञान रखती है | वार्तालाप चाहे वाक् इन्द्रिय से नहीं किया गया हो, परन्तु यह भी सत्य है कि कुछ कहने के लिए मुंह से ही कुछ बोल कर कहना आवश्यक नहीं है, मौन रह कर भी बहुत कुछ कहा और सुना जा सकता है | सन्देश में जितनी गंभीरता मौन रहकर कहने और सुनने में होती है उतनी भौतिक इन्द्रियों का उपयोग करते हुए कहने और सुनने में नहीं होती | अतः निःसंदेह इस दृष्टान्त के भीतर एक महत्वपूर्ण सन्देश छुपा हुआ है, जिसको प्रकट करने के लिए हमें गंभीरता से इसका विश्लेषण करने की आवश्यकता है |
        दृष्टान्त में दो शिशुओं के मध्य हुआ वार्तालाप उन सभी की आँखें खोल देने के लिए पर्याप्त है, जो यह सोचते हैं कि भौतिक शरीर की मृत्यु हो जाना ही इस जीवन का समाप्त हो जाना है | इस जीवन के बाद कहीं पर भी कोई अन्य जीवन है ही नहीं | ऐसे लोग तो परमात्मा के अस्तित्व को भी स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं | अस्तित्व परमात्मा का है अथवा नहीं यह विवाद का विषय हो सकता है परन्तु इस सत्यता से कोई इनकार नहीं कर सकता कि कोई एक शक्ति अवश्य है, जिसके कारण से यह संसार चल रहा है | विज्ञान इस शक्ति को प्रकृति कहता है और बुद्धिजीवी इस बात को स्वीकार करते हुए परमात्मा के अस्तित्व को नकारते हैं | भारतीय दर्शन इससे भी बहुत आगे जाकर कहता है कि प्रकृति का अस्तित्व भी तो किसी अन्य के अस्तित्व पर टिका हुआ होगा और वह अन्य कोई और नहीं, साक्षात् परम पिता परमात्मा ही है | उस परमात्मा से ऊपर तो क्या, उसके समकक्ष भी भला कोई अन्य कैसे हो सकता है ?
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम् ||

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