रामकथा-कुछ अनछुए प्रसंग-6
बाली के जाने के बाद आई तारा, बाली की पत्नी।पति के शव पर विलाप करते हुए मानव राम को खूब खरी खोटी सुनाई, आखिर स्वर्ग की एक अप्सरा जो ठहरी । "हे पत्नी वियोग में व्याकुल होने वाले राम! क्यों मारा मेरे पति को? आप तो इस वियोग से स्वयं पीड़ित हो।सब कुछ जानते समझते हुए भी मेरे पति को दूर कर दिया न मुझसे।अपनी पत्नी को पाने के लिए तुम्हें सुग्रीव का सहारा क्या केवल बाली की जान की कीमत पर ही मिल सकता था? यह किया क्या तुमने ? सीता को के वियोग से मुक्ति पाने के लिए तारा को पति वियोग दे दिया।यह सब कर क्या तुम अपने शेष जीवन में सुखी रह सकते हो।सीता को तुम भी अधिक दिन अपने पास में नहीं रख सकोगे, यह मेरा श्राप है।" राम निश्चल होकर सुन रहे हैं,तारा का विलाप करना जारी है। थोड़ा शांत होने पर राम तारा को समझाते हैं-"छिति जल पावक गगन समीरा।" तारा तत्काल समझ जाती है, कौन हैं यह? 'हे भगवान!क्या बोल दिया मैंने?'
राम कहते हैं, 'आप नही बोली, मैंने आपसे बुलवाया है।आप व्यर्थ में ही परेशान न हो।' तारा का श्राप फिर एक बार राम को आश्वस्त कर देता है, अपनी माया को समेट लेने के प्रति।
परंतु राम के इस कृत्य, तारा को दिए वैधव्य का फल सीता क्यों भुगते? यही प्रश्न इस रामकथा में सबसे महत्त्वपूर्ण है।परमात्मा का यह कर्म रहस्य बड़ा ही जटिल है।हम सब आपस में एक दूसरे से संबंधित है और अपने कर्मों के फल भुगतने और एक दूसरे को भुगताने के लिए एक साथ इकट्ठा हुए हैं।राम ने तो छुपकर बाली को मार डाला और बाली द्वापर में इस कर्म का फल उन्हें भुगता भी देगा। तारा पति विरह में राम को श्राप दे चुकी है कि सीता का वियोग भी उनको एक बार और सहन करना पड़ेगा। परंतु राम के कर्म के कारण सीता क्यों पति वियोग सहन करे? यहीं आकर कर्म का रहस्य समझ से परे हो जाता है।अतःअब जानने का प्रयास करेंगे सीता के उस कर्म के बारे में,जिसके कारण गर्भवती महारानी सीता वनवास भोगने को मजबूर कर दी गई।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
बाली के जाने के बाद आई तारा, बाली की पत्नी।पति के शव पर विलाप करते हुए मानव राम को खूब खरी खोटी सुनाई, आखिर स्वर्ग की एक अप्सरा जो ठहरी । "हे पत्नी वियोग में व्याकुल होने वाले राम! क्यों मारा मेरे पति को? आप तो इस वियोग से स्वयं पीड़ित हो।सब कुछ जानते समझते हुए भी मेरे पति को दूर कर दिया न मुझसे।अपनी पत्नी को पाने के लिए तुम्हें सुग्रीव का सहारा क्या केवल बाली की जान की कीमत पर ही मिल सकता था? यह किया क्या तुमने ? सीता को के वियोग से मुक्ति पाने के लिए तारा को पति वियोग दे दिया।यह सब कर क्या तुम अपने शेष जीवन में सुखी रह सकते हो।सीता को तुम भी अधिक दिन अपने पास में नहीं रख सकोगे, यह मेरा श्राप है।" राम निश्चल होकर सुन रहे हैं,तारा का विलाप करना जारी है। थोड़ा शांत होने पर राम तारा को समझाते हैं-"छिति जल पावक गगन समीरा।" तारा तत्काल समझ जाती है, कौन हैं यह? 'हे भगवान!क्या बोल दिया मैंने?'
राम कहते हैं, 'आप नही बोली, मैंने आपसे बुलवाया है।आप व्यर्थ में ही परेशान न हो।' तारा का श्राप फिर एक बार राम को आश्वस्त कर देता है, अपनी माया को समेट लेने के प्रति।
परंतु राम के इस कृत्य, तारा को दिए वैधव्य का फल सीता क्यों भुगते? यही प्रश्न इस रामकथा में सबसे महत्त्वपूर्ण है।परमात्मा का यह कर्म रहस्य बड़ा ही जटिल है।हम सब आपस में एक दूसरे से संबंधित है और अपने कर्मों के फल भुगतने और एक दूसरे को भुगताने के लिए एक साथ इकट्ठा हुए हैं।राम ने तो छुपकर बाली को मार डाला और बाली द्वापर में इस कर्म का फल उन्हें भुगता भी देगा। तारा पति विरह में राम को श्राप दे चुकी है कि सीता का वियोग भी उनको एक बार और सहन करना पड़ेगा। परंतु राम के कर्म के कारण सीता क्यों पति वियोग सहन करे? यहीं आकर कर्म का रहस्य समझ से परे हो जाता है।अतःअब जानने का प्रयास करेंगे सीता के उस कर्म के बारे में,जिसके कारण गर्भवती महारानी सीता वनवास भोगने को मजबूर कर दी गई।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
Nice
ReplyDeleteयहाँ पर बात में रुचि बढ़ जाती है पाठक की
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