Sunday, October 15, 2017

भज गोविन्दम् - श्लोक सं.9(समापन)-

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.9(समापन)-
             संत महात्माओं का संग कैसे हमें जीवन मुक्त कर सकता है, इसका एक स्पष्ट समीकरण हमें आदि गुरु शंकराचार्य जी महाराज ने इस श्लोक के माध्यम से दिया है | वे कहते हैं कि सत्संग से संसार के प्रति निःसंगता आ जाती है अर्थात भौतिक रूप से संसार में रहते हुए मानसिक स्तर पर संसार में नहीं रहना | सत्पुरुषों का संग व्यक्ति की स्वयं के बनाये संसार की अवधारणा पर चोट करता है | सम्पूर्ण संसार के अतिरिक्त हमारा सबका अपना-अपना एक निजी संसार भी है | हम अपने ही द्वारा बुने गए इस जाल को संसार कहते हैं और इसके संग जकडे हुए हैं | इस संसार की वास्तविकता से हमारा परिचय सत्संग के माध्यम से ही होता है | ज्योंही हमें संसार की वास्तविकता का ज्ञान होता है, हम उसका साथ छोड़ने लगते हैं | इसी को संसार से निःसंगता कहते हैं | संसार से निःसंगता, हमारा जो मोह इस संसार के प्रति होता है, उसको भंग करने का कार्य करती है | मोह एक प्रकार का भ्रम है, जो सत और असत में, धर्म और अधर्म में भेद नहीं होने देता | मोह के कारण हम असत को सत मान बैठते हैं और अधर्म को धर्म | संसार से निःसंगता हमारे इसी भ्रम को तोड़कर हमें निर्मोही बना देती है |
             निर्मोही होने का अर्थ है, अपने बनाये संसार से अनासक्त हो जाना | निर्मोही हो जाने के बाद स्वयं के बनाये संसार की कोई भी परिस्थिति उसे विचलित नहीं कर सकती | संत कबीर ने निर्मोही हो जाने को ‘अपना घर फूंकना’ कहा है | संत कबीर कहते हैं –
         कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाटी हाथ |
        जो घर फूंके आपणा, चले हमारे साथ ||
           निर्मोही होने पर हम सत्य और धर्म की वास्तविकता से परिचित हो जाते हैं, तब हम जीवन में आने वाले दुःख आदि विपरीत परिस्थितियों में भी विचलित नहीं हो सकते | यह संसार और उसमें हमारा मोह ही हमें प्रत्येक विपरीत परिस्थिति में विचलित कर देता है | संसार से असंगतता और निर्मोही होना हमें निश्चलता की ओर ले जाता है | हम प्रत्येक परिस्थिति में सम रहना सीख जाते हैं | जीवन में सदैव समता में रहना ही जीवन-मुक्त हो जाना है | जीवन-मुक्त हो जाना ही परम ज्ञान को उपलब्ध हो जाना है |
तभी शंकराचार्यजी महाराज कहते हैं कि-
सत्संगत्वेनिःसंगत्वं, निःसंगत्वेनिर्मोहत्वं |
निर्मोहत्वेनिश्चलतत्वं निश्चलतत्वे जीवन्मुक्तिः ||9||
 अर्थात संत महात्माओं के साथ उठने बैठने से हम सांसारिक वस्तुओं एवं बंधनों से दूर होने लगते हैं | इससे हमें सुख की प्राप्ति होती है | सब बंधनों से मुक्त होकर ही हम उस परम ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं |
||“भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढमते”||
कल श्लोक सं.10
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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