Tuesday, October 3, 2017

भज गोविन्दम् - श्लोक सं.5(कल से आगे-2)-

भज गोविन्दम – श्लोक सं.5(कल से आगे-2)-
                   राजा भोज को अपनी दिवंगत पत्नी के पूर्व जीवन में अपने साथ एक मां का सम्बन्ध जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ | साथ ही उसे आश्चर्य हो रहा था, अपनी साली का वह जन्म और वर्तमान जन्म में घटने जा रहे घटनाक्रम को जानकर | राजा भोज ने कहा कि यह बात तो ठीक है परन्तु यह उत्तर तुम 25 वर्ष पहले अपने पूर्वजन्म में भी मुझे दे सकती थी | राजकुमारी ने कहा कि हाँ, अवश्य दे सकती थी | क्यों नहीं दिया, इसका भी एक महत्वपूर्ण कारण है | आज मेरी पूर्वजन्म की वह बहिन भी चली गयी है, इसलिए मैं अब इसका उत्तर दे सकती हूँ | अगर आज मेरी वह पूर्वजन्म की बहिन और आपकी रानी जीवित होती, तो इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आपको उसकी मृत्यु होने तक प्रतीक्षा और करनी पड़ती | मैंने उस प्रश्न का उत्तर अगर उस समय ही दे देती कि पूर्वजन्म में वह आपकी मां थी, तो आपका व्यवहार क्या उनके प्रति एक पति जैसा रह जाता ? क्या फिर आप उसके साथ उसे पत्नी मानकर उसी अनुरूप व्यवहार कर सकते थे ? मैं जानती हूँ, आप ही क्यों, वैसा व्यवहार कोई अन्य भी नहीं कर सकता | यही कारण है कि मैंने आपके उस प्रश्न का उत्तर उस समय तत्काल नहीं दिया |
              यह दृष्टान्त साथ ही साथ यह बात भी स्पष्ट करता है कि परमात्मा हमें पूर्वजन्म की प्रत्येक स्मृति से क्यों दूर रखता है ? केवल एक दूसरे की कामनाओं को पूरा करने के लिए ही हम नए जन्म में ऐसे ही किसी एक नए रिश्ते के साथ मिलते हैं और कामना पूर्ण होते ही पुनः बिछड़ जाते हैं | इसलिए परिवार के प्रति मोहग्रस्त होना किसी भी प्रकार उचित नहीं है | आपके बिना भी यह परिवार चलता रहेगा, फलता-फूलता रहेगा | एक दूसरे के प्रति शेष रही कामनाएं पूरा करने के लिए इस परिवार में आते रहेंगे और कामनाएं पूरा होते ही चले जायेंगे | अतः आप यह न सोचें कि आपके बिना उनकी आवश्यकताएं पूरी कौन करेगा ? आप अगर जीवन भर उनकी आवश्यकताओं को पूरा करते रहे और जब आप जर्जर अवस्था को प्राप्त होकर इसमें  असहाय हो जाओगे तब यही परिवार आपकी उपेक्षा करना प्रारम्भ कर देगा | समय रहते चेत जाएँ और अपना कर्तव्य पूरा कर परमात्मा की शरण ले लें | उसकी शरण लेना ही सबसे बड़ी शरण है |
            हाँ, हमारे जीवन की भी यही वास्तविकता है | हम यहाँ पर एक दूसरे की पूर्वजन्म में शेष रही कामनाओं को सिर्फ पूरा करने के लिए ही आये हैं | अतः यहाँ आकर भी पूर्वजन्म की तरह आसक्तियों को न बढ़ाएं | यही शंकराचार्य जी का कहना है | परिवारजनों के लिए हम असह्य हो जाते हैं, जब हम उनकी नित नई कामनाओं को पूरी नहीं कर सकते | अतः समय रहते गोविन्द की शरण में चले जाओ और अपने आप को जीवन-मुक्त कर लो | इसीलिए शंकराचार्य जी महाराज कह रहे हैं कि -
यावद्वित्तोपार्जनसक्तः, तावत् निज परिवारोक्तः |
पश्चात्धावति जर्जर देहे, वार्तापृच्छतिकोSपि न गेहे ||5||
अर्थात जिस परिवार पर तुमने अपना सब कुछ सर्वस्व न्योछावर कर दिया, जिसके लिए तुम निरंतर मेहनत करते रहे, वह परिवार तुम्हारे साथ तभी तक है, जब तक तुम उनकी जरूरतों को पूरा करते हो |
|| भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढ़मते ||
कल से श्लोक सं.6
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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