Monday, October 9, 2017

भज गोविन्दम् - श्लोक सं.7(कल से आगे-3)-

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.7(कल से आगे-3)-
       गीता के 8 वें अध्याय का छठा श्लोक कहता है कि –
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् |
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ||
अर्थात हे कुन्तीपुत्र अर्जुन, मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भाव का स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह उसी भाव को ही प्राप्त होता है, जिस भाव का उसने जीवन भर स्मरण किया है |
      लो कर लो बात | भगवान ने भी स्पष्ट कर दिया है कि अंत समय में अगर यह भाव है कि बछड़ा झाड़ू खाकर घर में नुकसान कर रहा है, तो फिर मुक्ति कहाँ से होगी ? और हम है कि मान रहे हैं कि अंत समय में अजामिल ने नारायण, नारायण कहकर अपने पुत्र को बुलाया और भगवान  नारायण प्रकट हो गए, वैसे ही हम कर लेंगे | हम अजामिल नहीं है | अजामिल बड़ा ज्ञानी और परमात्मा का भक्त था परन्तु दुर्भाग्य से गलत रास्ते पर चला गया | संतों ने सलाह दी कि अपने पुत्र का नाम नारायण रख ले, उसको नाम लेकर पुकारोगे तो पुनः परमात्मा का स्मरण हो चलेगा | हमने जीवन भर धन, काम आदि के अतिरिक्त किसी बात का विचार ही नहीं किया और सोच रहे हैं कि अपने पुत्र का नाम नारायण रख लेने से अंत समय में उसका नाम पुकारेंगे तो उद्धार हो जायेगा | भ्रम में नहीं रहें, उद्धार कदापि नहीं होगा क्योंकि अंत समय में वाही स्मरण में आएगा जिसका जीवन भर स्मरण किया है |
                 जीवन भर हमने झाड़ू की चिंता की है, उसे ही बचाने में लगे रहे, स्वयं को बचाना भूल गए, तो अब अंत समय में परमात्मा का चिंतन कैसे होगा ? इसीलिए बुजुर्ग अन्त-काल तक भी चिंता ग्रस्त ही रहते हैं, चिंता मुक्त तो परमात्मा का चिंतन करने वाला कोई एक ही हो सकेगा, जिसने जीवन भर परमात्मा का स्मरण किया होगा |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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