Thursday, October 5, 2017

भज गोविन्दम् - श्लोक सं.-6(कल से आगे)-

भज गोविन्दम् श्लोक सं.6(कल से आगे)-
            इस श्लोक में कही गयी मुख्य बात की तरफ आपका ध्यान आकर्षित कहना चाहूँगा | आदि गुरु शंकराचार्य कह रहे हैं कि ज्यों ही यह शरीर समाप्त होता है अर्थात शरीर की मृत्यु होती है, तुरंत ही सभी सगे-सम्बन्धी इस शरीर को समाप्त कर देना चाहते हैं | जो आकर्षण इस भौतिक देह में मरने से पहले था वह आकर्षण अब मरणोपरांत नहीं रहा | प्रश्न यह उठता है कि आकर्षण देह में था अथवा इसमें रहने वाली आत्मा के प्रति था ? शरीर से आत्मा के निर्वासित होते ही हम देह के प्रति आकर्षण खो बैठते हैं | अतः आपका इस परिपेक्ष्य में उत्तर होगा, कि आकर्षण इस शरीर में रहने वाली आत्मा के प्रति था | नहीं, आपका उत्तर एक दम गलत है | हम इस शरीर में स्थित विशुद्ध निर्मल आत्मा को देखते ही कहाँ हैं ? हम शरीर में स्थित उस आत्मा को देखते हैं जो शरीर के साथ बंधन स्थापित कर अब तक हमारी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर रही थी | वह आत्मा जो मन के वशीभूत होकर अपनी पूर्वजन्म की कामनाओं को पूरा करने के लिए एक नयी भौतिक देह के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित कर चुकी थी | वह जीवात्मा जर्जर हुए इस शरीर से अपनी पूर्ण होने से शेष रही कामनाओं की पूर्ति नहीं कर सकती थी | अतः उसने अपनी अपूर्ण कामनाओं को पूरा करने के लिए नए शरीर को धारण करना उचित समझा |
            शरीर में आकर्षण तभी तक है, जब तक वह हमारे सगे सम्बन्धियों के लिए उपयोगी है, अपनी पत्नी के लिए, अपने पुत्र के लिए, अपने समाज के लिए यहाँ तक कि स्वयं के लिए भी | वास्तविकता में इनमें से कोई अपना नहीं है, अपने हैं तो सिर्फ एक परमात्मा | अपने शरीर में स्थित उस निर्मल आत्मा को स्मृति में लाने का प्रयास करें जिसमें न कोई कामना जन्म लेती है और न ही कोई तृष्णा, जो कभी मर नहीं सकती, जो उस परमात्मा का ही एक अंश है | जिस दिन हमें यह बात समझ में आ जाएगी, उस समय हम स्वयं ही परमात्मा हो जायेंगे | हम परमात्मा से अथवा आपको समझाने के लिए यह कह सकता हूँ कि इस भौतिक देह में स्थित हमारी आत्मा, परमात्मा से अभिन्न है | देह की मृत्यु होने से हमारा कुछ भी समाप्त नहीं होता, केवल समाप्त होता है हमारे सम्बन्धियों का स्वार्थ पूर्ण आकर्षण | जिस दिन देह मृत हो जाएगी, इसको जला दिया जायेगा | यहाँ तक कि इस देह के प्रति जीवन भर आसक्त रही पत्नी भी इसको घृणा की दृष्टि से देखेगी | इस बात को भीतर तक उतार लें और गोविन्द की शरण हो जाएँ | यही एक मात्र रास्ता है, जो आपकी जीवात्मा को निर्मल और शुद्ध आत्मा कर परमात्मा बना सकता है | इसीलिए आदि शंकराचार्य महाराज कह रहे हैं कि –
यावत्पवनोनिवसति देहे, तावत्पृच्छतिकुशलंगेहे |
गतवतिवायौदेहापाये, भार्याबिभ्यतितस्मिन्काये ||6||
अर्थात तुम्हारी मृत्यु के एक क्षण पश्चात ही वह तुम्हारा दाह संस्कार कर देंगे | यहाँ तक कि तुम्हारी पत्नी जिसके साथ तुमने अपनी पूरी जिंदगी गुज़री, वह भी तुम्हारे मृत शरीर को घृणित दृष्टि से देखेगी |  |
|| भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढ़मते ||
कल श्लोक सं.-7
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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